काहिरा। यमन (Yemen), सोमालिया (Somalia) और सीरिया (Syria) जैसे युद्धग्रस्त देश (War-torn countries) कॉप 27 (coop 27) से निराश हैं। हर साल यहां हजारों लोग बाढ़ और सूखे की वजह से मारे जाते हैं, खासतौर पर हानि व क्षति कोष में इन देशों की मदद के लिए मदद के विशेष प्रावधान नहीं होना इन देशों को जलवायु संकटों (climate crises) के प्रति और ज्यादा कमजोर बनाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि इन देशों की वैकल्पिक तरीकों से मदद की जानी चाहिए, नहीं तो दुनिया के सामने अभूतपूर्व मानवीय संकट होगा, जहां करोड़ों लोग भूख और बीमारी से मारे जाएंगे।
असल में इन देशों में व्याप्त अराजकता की वजह से इन तक मदद पहुंचाने का कोई जरिया नहीं है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव युवा सलाहकार समूह के अध्यक्ष निसरीन एल साइम (Nisreen El Saim) ने कहा कि जलवायु वित्त तक पहुंच के लिए इन देशों के पास संस्थागत ढांचा नहीं है। वहीं, रेड क्रॉस की अंतरराष्ट्रीय समिति के महानिदेशक रोबर्ट मार्डिनी (robert mardini) ने कहा कि जो देश व्यवस्था बनाने और फैसले लेने के लिए जिम्मेदार हैं, उनका मानना है कि युद्धग्रस्त देशों में जहां कोई जवाबदेह सरकार नहीं उन्हें जलवायु संकट से निपटने के लिए दी गई वित्तीय सहायता आखिर में हथियारों व दूसरे संघर्ष के तरीकों में बर्बाद होगी।
मार्डिनी ने कहा कि यह चिंता जायज है, लेकिन इन देशों में जलवायु संकट की स्थिति भयावह है और लाखों लोग प्रभावित हो रहे हैं। ऐसे में सीधे वित्तीय मदद देने के बाजाय दुनिया को एकजुट होकर दूसरे तरीकों से मदद पहुंचानी चाहिए।
उन्होंने बताया कि यमन में करीब यमन में करीब 1.9 करोड़ लोग अकाल से जूझ रहे हैं। उनके पास खाने को कुछ भी नहीं है। पूरी तरह से अंतरराष्ट्रीय मदद पर निर्भर हैं। इनमें करीब 13 लाख गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाएं हैं, जो कुपोषण की शिकार हैं। पांच वर्ष से कम उम्र के 22 लाख बच्चे भयानक कुपोषण से जूझ रहे हैं। अगर इन देशों को सीधे मदद नहीं दी जा सकती, तो संयुक्त राष्ट्र के विश्व खाद्य संगठन जैसे निकायों के जरिये मदद दी जा सकती है। विश्व खाद्य संगठन का कहना है कि दुनियाभर में बढ़ रहे मानवीय संकटों की वजह से मार्च 2023 तक संगठन को एक अरब डॉलर की दरकार है, लेकिन अभी तक कुछ करोड़ डॉलर ही जमा हुए हैं।
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