नई दिल्ली । पिछले दो दशकों में दुनियाभर में लगाए गए युद्ध प्रतिबंधों (War sanctions) का असर वैश्विक अर्थव्यवस्था (Global Economy) पर दिखाई पड़ रहा है। इसके प्रभाव से भारत भी अछूता नहीं रहा है। इसके चलते देश में इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट, फूड एंड वेबरेज, पेट्रोलियम, परिवहन, ट्रेवल और आतिथ्य जैसे 15 क्षेत्रों का आर्थिक विकास कार्य प्रभावित हुआ है।
राष्ट्रीय लोक वित्त एवं नीति संस्थान द्वारा उर्जित आर. पटेल के निर्देशन में हुए अध्ययन से पता चलता है कि प्रतिबंधों के चलते भारत को दुनिया के बाकी देशों के साथ व्यापारिक रिश्तों को तय लक्ष्य तक पहुंचने में लंबा समय लग रहा है। रिपोर्ट कहती है कि प्रतिबंधों के बीच निवेश लक्ष्य प्रभावित हो रहे हैं। दूसरे देशों के साथ व्यापार करने में अधिक परिवहन लागत चुकानी पड़ रही है और परियोजनाओं को तय समय पर पूरा नहीं किया जा सका है।
चाबहार बंदरगाह का उदाहरण दिया
रिपोर्ट में ईरान के चाबहार बंदरगाह का उदाहरण दिया गया है कि किस तरह से लंबी वार्ता के बाद भी अभी तक परियोजना पूरी नहीं हो पाई है। बंदरगाह निर्माण के लिए वर्ष 2003 में वार्ता शुरू हुई लेकिन उसके तत्काल बाद अमेरिका ने ईरान पर प्रतिबद्ध लगा दिए, जिससे रुकावट आई। वर्ष 2015 में ईरान परमाणु समझौते के तहत अमेरिका द्वारा प्रतिबंधों में ढील दिए जाने के बाद पुनः वार्ता शुरू हुई।
इसके बाद 2016 में ईरान, अफगानिस्तान और भारत द्वारा त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। उसके बाद 2017 में अफगानिस्तान को भारतीय गेहूं की पहली खेप चाबहार में उतारी गई। वर्ष 2018 में अमेरिका ने परमाणु समझौते से खुद को अलग कर लिया और ईरान पर अधिकतम दबाव वाले प्रतिबंधों को फिर से लागू कर दिया। इससे चाबहार बंदरगाह पर परिचालन सीमित हो गया।
10 वर्ष के समझौते के बाद रुकावट
इस वर्ष (2024) में भारत ने बंदरगाह को विकसित करने और संचालित करने के लिए ईरान के साथ 10-वर्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए तो मई में अमेरिकी विदेश विभाग ने प्रेस वार्ता कर एक तरह से चेतावनी दी कि अगर कोई भी संस्था, जो ईरान के साथ व्यापारिक सौदे पर विचार कर रही है, उसे संभावित जोखिम के बारे में पता होना चाहिए। इस तरह से 20 वर्ष के बाद भी परियोजना का पूरा नहीं किया जा सका है।
भारतीय तेल कंपनियों की बड़ी रकम फंसी
लंबे समय से रूस-युक्रेन के बीच युद्ध चल रहा है, जिसको लेकर अमेरिका और यूरोपीय संघ की तरफ से कई व्यापारिक प्रतिबंध लगाए हैं। इन्हीं के बीच भारत, रूस से कच्चा तेल खरीद रहा है लेकिन रिपोर्ट बताती है कि भारत की सार्वजनिक तेल कंपनियों के करीब 90 करोड़ डॉलर फंसे हुए हैं, जो उनके द्वारा रूसी अपस्ट्रीम तेल इक्विटी में किए निवेश का अवैतनिक लाभांश आय का हिस्सा है। अमेरिका और यूरोपीय संघ द्वारा भुगतान चैनल-संबंधी प्रतिबंधों के कारण आय की प्राप्ति न होने से भारतीय तेल कंपनियों के निवेश और सरकार के बजटीय राजस्व पर असर पड़ता है।
सेमीकंडक्टर सेक्टर भी प्रभावित हुआ
वहीं, विभिन्न देशों पर लगाए प्रतिबंधों के चलते कई कंपनियां भारत में सेमीकंडक्टर यूनिटें स्थापित करने से पिछड़ गई हैं। इसका असर भारत के सेमीकंडक्टर क्षेत्र पर साफ तौर पर देखा जा सकता है। व्यापक प्रयास के बावजूद भारत इसमें तय लक्ष्य से पीछे है।
प्रतिबंध से प्रभावित क्षेत्र और उनकी संस्था
कृषि 1
इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट 1
वित्त 4
फूड एंड बेवरेज 2
सूचना प्रौद्योगिकी 1
पेट्रोकेमिकल 3
पेट्रोलियम और पेट्रोलियम उत्पाद 1
एलएनजी टैंकर 1
समुद्री और तटीय माल ढुलाई 9
शिपिंग और समुद्री 1
दूरसंचार 1
तंबाकू उत्पाद 1
परिवहन 1
यात्रा और आतिथ्य 1
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