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वक्फ संशोधन बिल : लोकसभा में 232 के मुकाबले 288 से पास, टीडीपी-जेडीयू ने दिया साथ, केंद्र ने एक तीर से साधे कई निशाने

  • April 03, 2025

    नई दिल्ली. वक्फ संशोधन विधेयक (Wakf Amendment Bill) लोकसभा (Lok Sabha) में पास हो गया है. देर रात 1.56 बजे लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला (Om Birla) ने ये ऐलान किया. बिल के पक्ष (side) में 288 वोट (288 votes) पड़े, जबकि विरोध (Oppose) में 232 वोट पड़े. अब इसे राज्यसभा (Rajya Sabha) में भेजा जाएगा. बीजेपी की सहयोगी पार्टियों ने इस विधेयक का खुलकर समर्थन किया.वहीं, विपक्ष ने बिल का विरोध किया. केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि अल्पसंख्यकों के लिए भारत से ज्यादा सुरक्षित दुनिया में कोई जगह नहीं है और वे सुरक्षित हैं, क्योंकि बहुसंख्यक पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष हैं. वक्फ (संशोधन) विधेयक-2025 पर लगभग 12 घंटे तक चली बहस का जवाब देते हुए केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री रिजिजू ने कहा कि पारसी जैसे छोटे अल्पसंख्यक समुदाय भी भारत में सुरक्षित हैं और यहां सभी अल्पसंख्यक गर्व के साथ रहते हैं.

    बिल पर बहस के दौरान अमित शाह ने लोकसभा में कहा कि हमने वक्फ से छेड़खानी नहीं की है. वक्फ बोर्ड और वक्फ परिषद के लिए संशोधन किया है. इसकी फंक्शनिंग प्रशासनिक है. वक्फ बोर्ड को धार्मिक क्रियाकलाप नहीं करना है. हम मुतवल्ली को छू भी नहीं रहे हैं. वहीं, असदुद्दीन ओवैसी ने संसद में वक्फ बिल का विरोध किया और कहा कि ये अनुच्छेद 25, 26 का उल्लंघन है. उन्होंने आगे कहा कि वक्फ बिल मुस्लिमों के साथ अन्याय है.


    बिल को पास कराने के साथ ही बीजेपी ने एक कदम से 6 निशाने साध लिए हैं. दरअसल, धर्मनिरपेक्षता का चश्मा लंबे वक्त से बीजेपी और बीजेपी सरकार के फैसलों के खिलाफ पहनकर विपक्ष खुद को सेक्युलरिज्म का सियासी चैंपियन दिखाता रहा, लेकिन लोकसभा में वक्फ बिल पर बीजेपी ने वो बैटिंग की है, जिससे राजनीति के मैदान में फिलहाल ये साफ हो गया कि 1- सेक्युलरिज्म की वो परिभाषा नहीं चलेगी, जो विपक्ष चाहता आया है. 2- मुस्लिमों से जुड़े हर फैसले को मुस्लिम विरोध के कठघरे में खड़ा करने की राजनीति अब नहीं चलती. 3- मुस्लिमों को खतरा बताकर वोट की सियासी हांडी हर बार नहीं चढ़ने वाली है. 4- मुस्लिमों से जुड़े मुद्दे पर प्रदर्शन के बहाने फैसले बदलवाने की मंशा अब कामयाब नहीं होती. 5- नीतीश और नायडू के समर्थन के दम पर चलती सरकार को कमजोर समझना विपक्ष को भूलना होगा. 6- विपक्ष को ये बात भी समझनी होगी कि भले इस बार सीट उनकी बढ़ी हैं, लेकिन पीएम मोदी के हाथ से फैसलों की ताकत ढीली नहीं पड़ी है.

    ऐसे में ये भी सवाल हैं कि क्या एक बिल से मोदी सरकार ने देश में धर्मनिरपेक्षता की राजनीति का गणित बदल दिया? क्या एक बिल से मोदी सरकार ने दिखाया कि मुस्लिमों को डराकर वोट की सियासत नहीं चलेगी? क्या एक बिल ने बता दिया कि मुस्लिमों के हित में बदलाव का मतलब सेक्युरिज्म का विरोध नहीं होता? क्या सरकार ने दिखा दिया कि सीटें घटने से संसद में आक्रामक फैसले लेने की गति नहीं घटी है? क्या वक्फ बिल पर मुहर के साथ अब देश में सियासत की नई सेक्युलरिज्म देखी जाएगी?

    फैसला लेने में पीएम मोदी का कोई सानी नहीं
    विपक्ष को ये लगता रहा होगा कि बिहार में नीतीश कुमार और आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू के सांसदों के भरोसे चलती सरकार वक्फ पर फैसला लेने में हिचकिचाएगी, लेकिन 240 सीट के साथ भी संसद में बीजेपी वैसी ही दिखी जैसे 303 सीट के साथ रही थी. 2019 में जब मोदी सरकार दूसरी बार सत्ता में आई तो 6 महीने के भीतर सरकार ने तीन तलाक, आर्टिकल 370 से आजादी और CAA कानून तीनों को पास करा दिया. तब बीजेपी के पास अपने दम पर 303 सीट का बहुमत था. अबकी बार जब 2024 में सरकार बनी तो बीजेपी की खुद की सीटें 240 ही आईं, लेकिन कुछ ही महीने में वक्फ संशोधन बिल को पेश करके उस पर आखिरकार अब मुहर लगा ली. बिल पर मुहर सबूत है कि बहुमत भले सरकार के पास अपने दम पर ना हो, लेकिन सर्वमत से फैसला लेने में पीएम मोदी का कोई सानी नहीं.

    क्या चुनावी राजनीति में इसका असर दिखेगा?
    वक्फ बिल का असर क्या आगे चुनावी राजनीति में दिखेगा? ये सवाल इसलिए क्योंकि आगे बिहार का चुनाव है, फिर पश्चिम बंगाल का चुनाव एक साल से कम वक्त में है. इस चुनावी सियासत को गृहमंत्री अच्छे से समझते हैं, तभी तो जब टीएमसी ने बिल पर सदन में सवाल उठाया, विरोध किया तो अमित शाह का जवाब चर्चा में आया.

    विपक्ष के आरोपों को सरकार ने किया खारिज
    सवाल ये है कि जहां विपक्ष के नेता कहते रहे कि सड़क पर उतरकर विरोध होगा. क्या उनकी इस राजनीति में खुद मुस्लिमों ने साथ नहीं दिया है. क्या इसकी वजह ये है कि जहां विपक्ष ये कहता रहा कि वक्फ बोर्ड में गैर मुस्लिम बहुसंख्यक हो जाएंगे, मस्जिद-दरगाह पर कब्जा हो जाएगा, सरकार मुस्लिमों की संपत्ति छीन लेगी, ऐतिहासिक वक्फ स्थल की परंपरा प्रभावित होगी, वहां सरकार ने लगातार मुखरता इन सारे दावों को खारिज करके सच बताया. नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू को विपक्ष और मुस्लिम संगठनों ने क्या-क्या याद नहीं कराया, लेकिन जब आज समर्थन और विरोध की बारी आई तो जेडीयू और टीडीपी दोनों ने विरोधियों के सपनों पर पानी फेर दिया

    मुस्लिम वोट की सियासत का गणित बदला?
    नीतीश कुमार के पलटने का इतिहास देखकर इस बार विपक्ष को लगा होगा कि इफ्तार पार्टियां करते सुशासन बाबू क्या पता फिर पलटेंगे, इसीलिए ओवैसी की पार्टी के नेता तक नीतीश कुमार को मुस्लिम वोट के नाम पर बीजेपी के खिलाफ जगाने में अंत तक जुटे रहे, लेकिन सबका सपना टूट गया. नीतीश की पार्टी ने बता दिया कि मुस्लिम वोट की सियासत का गणित बदल चुका है. दिल्ली, बिहार की राजधानी पटना और आंध्र प्रदेश का विजयवाड़ा. इसी से आप समझ लीजिए कि नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू को बिल के विरोध में लाने के लिए विपक्षी दलों से लेकर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड तक ने कितने डोरे डाले, कितना दबाव बनाया, यहां तक कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रदर्शन तक में नीतीश नायडू का नाम लिखकर ही पोस्टर तक लगाए गए, ताकि ये बिल का विरोध कर दें, लेकिन सरकार ने ऐसा गणित बिल पर सेट किया कि विपक्ष की नहीं चली, बल्कि नीतीश की पार्टी ही बीजेपी के लिए बिल पर खुलकर सदन में खेलती दिखी.

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