इन्दौर। आज पुष्य नक्षत्र (Pushya Nakshatra) होने की वजह से शहर में लोकमान्य नगर (Lokmanya Nagar) और राऊ (Rau) के आयुर्वेदिक अस्पतालों (Ayurvedic Hospitals) में जन्म से लेकर 12 साल तक के नाबालिग बच्चों को स्वर्णप्राश (Swarnaprash) दवा पिलाएंगे। यह दवा पिलाने के लिए अस्पताल प्रबन्धन को हर महीने पुष्य नक्षत्र का इंतजार करना पड़ता है। अष्टांग आयुर्वेद कॉलेज के प्रिंसिपल और डीन के अनुसार आयुष मंत्रालय के निर्देश पर विगत 6 साल से पुष्य नक्षत्र में स्वर्णप्राश दवा पिलाई जाती है। हर नक्षत्र पर लगभग 300 नाबालिग बच्चों को यह दवा पिलाई जाती है।
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पुष्य नक्षत्र का भारतीय ज्योतिष ही नहीं, बल्कि सनातन संस्कृति से लेकर आयुर्वेद में भी बड़ा विशेष महत्व है। पुष्य नक्षत्र महूर्त में सोना- चांदी सहित धनतेरस, दीपावली के पहले वाले पुष्य नक्षत्र पर नए बही खाते खरीदने अथवा शुरू करने का रिवाज है। इसी तरह कुछ विशेष औषधि के लिए पुष्य नक्षत्र का इतंजार करना पड़ता है।
औषधियों का असर बढ़ जाता है
हमारे वैज्ञानिक महाऋषियो और आयुर्वेद विशेषज्ञों के अनुसार 12 राशि 9 ग्रहों, 27 नक्षत्रों की खगोलीय स्थितियों के कारण धरती के मानव जीवन पर ही नहीं, बल्कि पृथ्वी पर मौजूद पंचतत्व सहित पेड़-पौधे, जीव-जंतु, जानवर, औषधीय दवाओं जड़ी-बूटियों के अलावा स्वर्ण, चांदी, रत्नों पर भी विशेष असर पड़ता है।
शरीर में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है
आयुर्वेद चिकित्सको के अनुसार पुष्य नक्षत्र को स्वर्णप्राश दवा पिलाने से पीने वालों के शरीर में इम्यूनिटी यानी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। आयुष मंत्रालय के निर्देशानुसार हर पुष्य नक्षत्र को जन्म से लेकर 12 साल तक के बच्चों को स्वर्णप्राश दवा पिलाई जाती है।
पहले इस नक्षत्र में स्वर्ण भस्म चटाई जाती थी
प्राचीनकाल से ही शारीरिक क्षमता ताकत और दवाओं का असर बढ़ाने के लिए आयुर्वेदिक औषधीय जड़ी-बूटियों के अलावा स्वर्ण-चांदी जैसी धातुओं का विशेष नक्षत्रों में इस्तेमाल किया जाता था। जब सोना सस्ता था, तब बच्चों को अथवा मरीजों को पुष्य नक्षत्र में स्वर्ण भस्म शहद के साथ चटाई जाती थी, मगर अब महंगाई के चलते यह सम्भव नहीं है। इसलिए आयुर्वेदिक स्वर्णप्राश औषधि की दवा पिलाई जाती है, जिसमे विटामिन, मिनरल के अलावा आंशिक रूप से स्वर्ण धातु मौजूद रहती है।
-एपीएस चौहान, डीन प्रिंसिपल अष्टांग आयुर्वेद कॉलेज , इन्दौर
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