मिटा दे अपनी हस्ती को अगर कुछ मर्तबा चाहे,
कि दाना ख़ाक में मिल कर गुल-ओ-गुलज़ार होता है।
डॉ. जवाहर कर्नावट हिंदी ज़बान की खिदमत में दिलोजान से मसरूफ रहते हैं। अगर ये कहा जाए के जवाहर भाई ने हिंदी ज़बान और हिंदी अदब के फऱोग़ के लिए पूरी उमर ही खपा दी है। कौमी ज़बान की खातिर इनकी तमाम कोशिशों को एजाज़ देने के लिए मरकज़ी सरकार के वजारत-ए-खारजा (विदेश मंत्रालय) ने डॉ. जवाहर कर्नावट को विश्व हिंदी संम्मान देने का एलान किया है। भोपाल के लिए ये बड़े फक्र की बात है। ये अवार्ड भारत सहित बैरूनी मुमालिक (विदेशों) के चुनिंदा हिंदी के उस्तादों को दिया जाता है। इने ये एजाज़ फिजी में कल से शुरु हो रहे दो दिनी विश्व हिंदी सम्मेलन में दिया जाएगा। यूं तो कर्नावट साब के पास हिंदी की तारीख और हिंदी अदब से बावस्ता ढेर सारा रिफरेंस है बाकी उन्होंने बतौर-ए- खास हिंदी सहाफत (हिंदी पत्रकारिता) की तारीख (इतिहास) पर बहुत जानदार रिसर्च की है। उन्होंने दुनिया के 25 मुल्कों में हिंदी सहाफत के इतिहास की गहरी और भोत बारीक स्टडी करी है।
डाकसाब बताते हैं कि बाहरी मुल्कों में हिंदी सहाफत का उम्दा इतिहास और रिवायत रही है। कर्नावट साब ने 1999 से एशिया, अफ्रीका, यूरोप, जनूबी अमेरिका, और ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप के मुख्तलिफ मुल्कों का सफर किया। वहां इन्होंने गुजिश्ता 120 बरसों के दरम्यान 25 मुल्कों में हिंदी में शाया हुए 150 से ज़्यादा रिसालों और अखबारों को जमा कर बैरूनी मुमालिक की हिंदी सहाफत को मंजऱे आम पे लाने का काम किया। इस काम के लिए इन्होंने दूसरे मुल्कों की लाइब्रेरियों, म्यूजिय़म, अभिलेखागारों को खंगाल डाला और इन दुर्लभ हिंदी रिसालों को जमा किया। ये वो सामग्री है जिससे अभी तक हिंदी के सहाफी महरूम रहे हैं। डॉ जवाहर कर्नावट ने विदेशों की इन हिंदी पत्रिकाओं का अध्ययन करके एक किताब भी तैयार करी है। इसे जल्द ही नेशनल बुक ट्रस्ट शाया करने वाला है। इनके इस अनूठे संग्रह की नुमाइश देश विदेश में कई शहरों में लग चुकी है। लोकसभा टीवी ने इनके इस खास संग्रह पर एक प्रोग्राम भी बनाया था। उनका ये कलेक्शन 2023 की लिम्का बुक ऑफ रिकाड्र्स में शरीक किया गया है। आपको हिंदी की सेवा के लिए कई इनामात से नवाजा जा चुका है। भोत भोत मुबारक हो जवाहर भाई। आप इसी तरा भोपाल और मुल्क का नाम रोशन करते रहिए।
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