– डॉ. रमेश ठाकुर
आदिवासी बाहुल्य प्रदेश छत्तीसगढ़ की कमान आदिवासी नेता विष्णुदेव साय को जबसे सौंपे जाने का ऐलान सार्वजनिक हुआ है, छत्तीसगढ़िया फूले नहीं समा रहे। खुश होना वैसे बनता भी है। आखिर इतने वर्षों बाद उनकी ख्वाहिशें पूरी जो हुई हैं। स्थानीय लोग शुरू से चाहते थे कि कोई आदिवासी समाज ही व्यक्ति प्रदेश का मुख्यमंत्री बने। ऐसा व्यक्ति जो 33 फीसदी आदिवासी समाज का चहेता हो और सामाजिक समूह को लेकर साथ चले। लंबे राजनीतिक अनुभव के अलावा पहचान जमीनी स्तर की हो। ऐसा राजनेता जो उनके बीच सदैव रहा हो। फिलहाल, ये सभी च्वाइस विष्णुदेव साय में आकर सिमट जाती हैं। विष्णुदेव साय प्रदेश के सर्वमान्य नेताओं में गिने जाते हैं। यही कारण है कि आदिवासी समुदाय चाहे कांगेस से ताल्लुक रखता हो, या अन्य किसी और सियासी दल से, सभी विष्णुदेव साय की नियुक्ति से खुश हैं। छत्तीसगढ़ नक्सलवाद से जकड़ा हुआ है। सभी चाहते हैं कि उन बंधक बेड़ियों से उन्हें कोई मुक्त करवाए।
विष्णुदेव बेदाग और ईमानदार नेता हैं। पंचायत से लेकर केंद्र तक की महत्वपूर्ण सियासी जिम्मेदारियां उन्होंने संभाली हुई हैं। साय बेशक सांसद बनकर केंद्र की राजनीति में पहुंच गए हों पीछे, लेकिन उनका जुड़ाव स्थानीय स्तर पर कभी कम नहीं हुआ। गांव-कस्बों की टूटी नल-नालियों की परवाह हमेशा करते रहे। केंद्रीय मंत्री भी बने, लेकिन उनके भीतर से ग्राम प्रधान कभी नहीं निकला? वह इसलिए क्योंकि उनकी राजनीति की शुरुआत ही ग्राम प्रधानी से हुई। निश्चित रूप से साय जैसे जमीनी नेता अपने क्षेत्र, समुदाय और प्रदेश में नया इंकलाब लिखने का माद्दा रखते हैं। निश्चित रूप से वह अपने प्रयासों में सफल होने की कोशिश करेंगे। प्रदेश पर इस वक्त करीब 82,125 करोड़ रुपये का कर्ज है। इसके सिवाए महंगाई-बेरोजगारी की स्थिति से तो सभी वाकिफ हैं ही। इन सभी चुनौतियों से भी विष्णुदेव साय को बड़े साहस से लड़ना होगा। हालांकि उन्हें केंद्र सरकार का साथ भरपूर मिलेगा, क्योंकि डबल इंजन की सरकार में प्रयासों में गति आना स्वाभाविक होता है।
बहरहाल, छत्तीसगढ़ की 33 फीसदी आदिवासी समुदाय के लिए साय मात्र मुख्यमंत्री ही नहीं बनेंगे, बल्कि वो उनके उम्मीदों के सौदागर भी बनेंगे, जो प्रदेश गठन के बाद अभी तक पूरी नहीं हुई। प्रदेशवासियों की शुरू से मांग रही है कि उनका मुख्यमंत्री उन्हीं के बीच का हो, ताकि उनकी जरूरतों और समृद्ध विरासत को आगे बढ़ा सके। ऐसे लक्ष्यों को पूरा करने में साय फिलहाल फिट बैठते दिखाई पड़ते हैं, क्योंकि उन्होंने अपने राजनीतिक करियर से लोगों के बीच वैसी ही छाप छोड़ी है। तभी, चुनाव कैंपेन के दौरान गृहमंत्री अमित शाह ने वोटरों को इशारा भी किया था कि विष्णुदेव साय को बड़ा आदमी बनाएंगे, उनके लिए कुछ बड़ा सोचा हुआ है। हालांकि, तब लोगों ने उनकी बात को ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया था, सोचा कि चुनावों में नेता बहुत कुछ बोलकर चले जाते हैं। पर, इतना नहीं भूलना चाहिए कि नरेन्द्र मोदी-अमित शाह अलग किस्म की गारंटी देते हैं। जहां से लोग सोचना बंद कर देते हैं, ये जोड़ी वहीं से सोचना आरंभ करती है। द्रौपदी मुर्मू को जब राष्ट्रपति का उम्मीदवार घोषित किया गया था, तभी आदिवासी समाज समझ गया था कि कोई तो है जो उनके विषय में सोचता है?
ये भी तय है कि छत्तीसगढ़ को आदिवासी मुख्यमंत्री देने के बाद मोदी-शाह की राजनीतिक लड़ाई यहीं नहीं धमेंगी। अगली फाइट ओडिशा के लिए शुरू होगी। ओडिशा भी आदिवासी बाहुल्य प्रदेश है। छत्तीसगढ़ के बाद वहां के लोगों को भी आदिवासी मुख्यमंत्री देने का संदेश दिया जाएगा, क्योंकि वहां भी चुनाव नजदीक हैं। जहां तक साय की बात है तो छत्तीसगढ़ की राजनीति में वो सम्मानीय चेहरा हैं। अजित जोगी के बाद लोग साय से बहुत उम्मीदें करते हैं, क्योंकि साय चार मर्तबा सांसद, दो बार विधायक, केंद्रीय राज्यमंत्री और दो-दो बार भाजपा प्रदेश अध्यक्ष का दायित्व संभाल चुके हैं। इसके अलावा उनके पास संगठनात्मक कार्य का लंबा-चौड़ा अनुभव भी है। इस बार वो कुनकुरी विधानसभा से निर्वाचित हुए हैं। जहां उन्होंने अपने अपोजिट उम्मीदवार को अच्छे मार्जिन से मात दी। अपने दम पर जिले की सभी सीटें भाजपा को जितवाई। जबकि, कुनकुरी में अभी तक कांग्रेस की तूती बोलती रही थी।
बहरहाल, प्रदेश के नए मुख्यमंत्री बनने जा रहे है साय से भाजपा का शीर्ष नेतृत्व कभी नाराज भी हुआ था, नाराजगी इस कदर थी कि उन्हें प्रदेश अध्यक्षी से भी हटा दिया गया था। बावजूद इसके उनकी निष्ठा पार्टी के प्रति जरा भी कम नहीं हुई। साय लगातार पार्टी गतिविधियों में सक्रिय रहे। संगठन को मजबूत करते गए। नए लोगों को भाजपा से जोड़ते रहे। धीरे-धीरे उन्होंने अपने क्षेत्र में ऐसा संगठन खड़ा किया कि मौजूदा चुनाव में दूसरे दलों का सूफड़ा तक साफ करवा दिया। वैसे, अगर उनके शुरुआती राजनीतिक जीवन पर नजर डालें तो आगाज 1989 में हुआ। सबसे पहले वह अपने ग्राम के सरपंच बनें, उसी दौरान उनका संघ से जुड़ाव हुआ, जिले, कस्बों व गांवों में शाखाएं स्थापित करवाईं। प्रचारक की भूमिका में आए। धीरे-धीरे संघ के बड़े नेताओं की नजरों में आ गए। संघ का प्रचार उन्होंने आदिवासियों के बीच में भी जबरदस्त किया। कई नक्सलियों का हृदय परिवर्तन कर भाजपा और संघ के प्रति प्यार पैदा किया। यही कारण है कि नक्सल प्रभावित सोच वाले व्यक्तियों ने भी इस बार दिल खोलकर भाजपा को वोट किया।
छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद बड़ा मुद्दा है। साय के मुख्यमंत्री बनने के बाद कितना बदलाव आएगा, इस पर अभी कुछ नहीं कहा जा सकता। लेकिन साय को उम्मीद है कि उन्हें भटके रास्तों से वापस सही रास्तों पर लाने का प्रयास करेंगे। साय पर भाजपा ने पहली दफे भरोसा करके 1990 में ‘तपकरा’ विधानसभा से उतारा था, जहां उन्होंने जीत हासिल की थी। इसके बाद साय रायगढ़ लोकसभा क्षेत्र से लगातार तीन बार के सांसद चुने गए। 2014 में वो मोदी-शाह के प्रिय बन गए। उनके संबंध अन्य दलों के नेताओं से भी मधुर हैं। सभी को साथ लेकर चलने में विश्वास करते हैं।
फिलहाल, मुख्यमंत्री के रूप में उनका पहला वर्ष काफी चुनौतियों से भरा होगा, क्योंकि चुनावों में जो वादे किए हैं उन्हें जमीन पर उतारना होगा। हालांकि मुख्यमंत्री पद के लिए घोषित होने के बाद उन्होंने सबसे पहले चुनावी वादों को पूरा करने का ही प्रण लिया है। किसानों की समस्याएं, सरकारी योजनाओं को लागू करना, शिक्षा, सुरक्षा और चिकित्सा ऐसे मसले हैं जिनको अगर अन्य राज्यों से तुलना करें, तो छत्तीसगढ़ अब भी काफी पिछड़ा है। इसके अलावा सबसे बड़ी परीक्षा तो नक्सलवाद को कम करने होगी। खत्म करना तो आसान नहीं होगा? कम हो जाए, वो भी गनीमत रहेगी। कुल मिलाकर छत्तीसगढ़ियों को नए मुख्यमंत्री से हजारों उम्मीदें रहेंगी, देखने वाली बात होगी कि साय देशवासियों की उम्मीदों पर कितना खरा उतरते हैं।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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