उज्जैन। धार्मिक और पौराणिक महत्व के साथ पुराने शहर के रमणीय स्थल विष्णुसागर की अनदेखी के कारण वह उजाड़ हो गया है। इसे संवारने के लिए कभी साढ़े तीन करोड़ रुपए खर्च किए गए थे। राम जनार्दन मंदिर के पास सप्त सागरों में से एक प्राचीन विष्णुसागर की हालत इन दिनों पूरी तरह खराब हो गई है। देखरेख के अभाव में पुराने शहर का यह पौराणिक और रमणीक स्थल अपनी पहचान खोता जा रहा है।
यहाँ लगाए गए झूले पूरी तरह से टूट चुके हैं, जिनके कारण बच्चों के जख्मी होने का खतरा रहता है, कुर्सियाँ भी टूटने की कगार पर है। तालाब में लगाया गया लाइटिंग फाउंटेन भी बंद है। परिक्रमा पथ इस वक्त असामाजिक तत्वों के कब्जे में हैं। यहाँ झाडिय़ों में दिनभर प्रेमी जोड़े और नशा करने वाले युवक बैठे रहते हैं। इन लोगों के कारण परिक्रमा करने वाले लोगों को असहज स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। अगर यही हाल रहा तो इतिहास को अपने में समेटे विष्णुसागर का अस्तित्व ही खो जाएगा। यहाँ पर कुछ श्रद्धालु बैठे हुए थे पूछने पर उन्होंने बताया कि वे रोजाना ही यहाँ आते हैं, लेकिन कुछ साल पहले तक यहाँ काफी अच्छा माहौल रहता था लेकिन अब धीरे-धीरे यह जगह भी दुर्दशा का शिकार हो गई है। यहाँ लंबे समय से कोई कार्य नहीं हुआ है। असामाजिक तत्वों के कारण मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं को भी परेशानी होती है। यहाँ लगी फिसलपट्टी खतरनाक स्थिति में पहुँच गई है। इसके बीच में एक बड़ा गड्ढा हो गया है। इसके कारण यहाँ फिसलने वाले बच्चे चोटिल हो सकते हैं। इसके अलावा झूले, चकरी सब टूट चुके हैं। इनको सुधारने की सुध कोई नहीं ले रहा। यहाँ व्यायाम की मशीनें भी लगी थी वह भी खराब हो चुकी है। विष्णु सरोवर में सुंदरता के लिए बोटिंग और फाउंटेन भी लगाए गए थे वह भी बंद हैं। यहाँ से सामने तालाब में उतरने के लिए सीढिय़ाँ है। किनारे पर लाइटिंग फाउंटेन भंगार स्थिति में पड़ा हुआ है। किसी समय शाम को यह चलाया जाता था। इसके साथ ही भजन भी बजते थे, लेकिन अब ऐसा कुछ नहीं हो रहा। पास ही मोटरबोट भी पड़ी है। इसके अलावा विष्णुसागर के पास ही प्राचीन राम जनार्दन मंदिर है। पुरातत्वविदों के अनुसार राम-जनार्दन मंदिर भी वर्षों पुराना है। मराठा काल में वर्ष 1748 में इसका निर्माण हुआ था। प्राचीन विष्णु सागर के तट पर विशाल परकोटे से घिरा मंदिरों का समूह है। इनमें एक श्रीराम मंदिर एवं दूसरा विष्णु मंदिर है। इसे सवाई राजा एवं मालवा के सूबेदार जयसिंह ने बनवाया था। इस मंदिर में 11वीं शताब्दी में बनी शेषशायी विष्णु तथा 10वीं शताब्दी में निर्मित गोवर्धनधारी कृष्ण की प्रतिमाएँ भी लगी हैं। यहाँ श्रीराम, लक्ष्मण एवं जानकी की प्रतिमाएँ वनवासी वेशभूषा में उपस्थित हैं। समय रहते इस प्राचीन स्थान को संवारना बेहद आवश्यक है।
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