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गांव-गांव से इंदौर आए ब्लैक फंगस के शिकार

May 24, 2021


सस्ते में इलाज कराया…महंगी बीमारी ले आए मरीज
कोरोना से जीते तो ब्लैक फंगस के शिकार हुए लोगों की दर्दीली दास्तान
इन्दौर, निलेश राठौर।
तेजी से फैल रहे ब्लैक फंगस (Black fungus) ने भले ही देश से लेकर प्रदेश में भी बड़ी संख्या में लोगों को अपना शिकार बनाया हो, लेकिन मध्यप्रदेश के इंदौर शहर में सबसे पहले ब्लैक फंगस (Black fungus) को पहचानकर उसका उपचार करना शुरू किया। इंदौर के एमवाय अस्पताल (MY Hospital) में जहां शहरी मरीजों के साथ मालवा-निमाड़ के ग्रामीण अंचलों के मरीज अपना उपचार करा रहे हैं, वहीं विभिन्न अस्पतालों में ब्लैक फंगस के करीब 200 मरीजों का उपचार चल रहा है। ब्लैक फंगस के बारे में कहा जा रहा है कि दवाइयों का हाईपावर डोज दिए जाने के कारण ब्लैक फंगस ने उन्हें जकड़ लिया, मगर अग्निबाण ने जब इस बात की सच्चाई जानने के लिए पीडि़त मरीजों के परिजनों से बात की तो सच कुछ और ही निकलकर सामने आया कि सस्ता इलाज कराने वाले मरीजों से लेकर घर में ही सामान्य दवाइयों से कोरोना को हराने वाले मरीजों को भी ब्लैक फंगस (Black fungus) ने अपना शिकार बनाया है।
एमवाय (MY Hospital) में भर्ती मरीजों में 5 मरीजों के परिजनों से हमने बात की, जिनमें ग्रामीण क्षेत्रों के मरीज हैं। उनमें एक व्यक्ति की संक्रमित आंख को डॉक्टरों ने सफल सर्जरी द्वारा निकाला तो वहीं बाकी मरीजों में किसी को गले, किसी को नाक में तो किसी को आंख, मसूड़ों में ब्लैक फंगस का संक्रमण है, जिसका उपचार किया जा रहा है। अस्पताल में भर्ती मरीज के परिजनों को अपने संक्रमित व्यक्ति की जितनी चिन्ता सता रही है उससे ज्यादा चिन्ता उन्हें ब्लैक फंगस के उपचार में लगाए जाने वाले इंजेक्शनों की है। यह इंजेक्शन खैरात, यानी मुफ्त में तो दूर पैसे देकर भी उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं। हालांकि एमवाय में भर्ती इन मरीजों को शासन की सहायता से इंजेक्शन की जुगाड़ कर राहत दी जा रही है।


इंदौर से ज्यादा गांवों के मरीज

कोविड सेंटर में कोरोना को हराया लेकिन ब्लैक फंगस घर ले आया
खरगोन जिले के महेश्वर में रहने वाले संतोष पाटीदार पिछले माह 25 अप्रैल को कोरोना महामारी से ग्रसित हुए थे। संतोष पाटीदार के पुत्र धर्मेन्द्र ने बताया कि कोरोना से संक्रमित होने के बाद उन्होंने पिता का इलाज घर पर ही शुरू किया, मगर स्वास्थ्य में लाभ नहीं होने पर 2 मई को उन्होंने कोरोना संक्रमित पिता को महेश्वर के कोविड सेन्टर में भर्ती करवाया, जहां पर 10 मई तक उनका कोरोना का इलाज किया गया। कोरोना रिपोर्ट नेगेटिव आने के बाद जब संतोष अपने घर पहुंचे तो उन्हें बाद में आंख, नाक में सूजन आने लगी। डॉक्टरों की सलाह पर एमआरआई करवाई, जिसमें ब्लैक फंगस पाया गया। इस पर उन्हें इन्दौर के एमवाय में 12 मई को भर्ती किया गया, जहां उन्हें काफी हद तक आराम है। उनकी आंख और नाक की सूजन भी कम हो गई है। उनके दांतों की सर्जरी की गई जो सफल रही है, जिससे उन्हें आराम मिला है। अस्पताल में लगाए गए नि:शुल्क इंजेक्शन से संतोष पाटीदार स्वस्थ हो रहे हैं।
घर में ही इलाज कर कोरोना से जीती तो ब्लैक फंगस से हारी
मजदूरी कर अपने परिवार का भरण-पोषण करने वाले राजेन्द्र मालवीय निवासी नीमच की मां शांतिबाई का घर में ही इलाज चलता रहा। उसी दौरान शांतिबाई के गले में एक छाला हो गया। परिवारवालों ने इसे दवाइयों का साइड इफेक्ट समझा, मगर छाला फूटने के बाद इतनी तेजी से उसने गले में अपना संक्रमण बढ़ाया कि उन्हें 11 मई को बुजुर्ग मां को एमवाय अस्पताल इन्दौर लाना पड़ा, जहां पर प्राथमिक जांचों के बाद डॉक्टरों ने उनके गले में ब्लैक फंगस के संक्रमण को पहचान लिया। 19 मई तक लगातार चले इलाज के बाद 20 मई को शांतिदेवी का गले का ऑपरेशन किया गया, जो सफल रहा। मालवीय के बताया कि उनका दो भाइयों का परिवार है। मेहनत-मजदूरी करके अपना परिवार चला रहे हैं। महंगे दामों पर मिलने वाले इंजेक्शन तो नहीं खरीद सकते, मगर एमवाय में मिले सरकारी इलाज के चलते उनकी मां अब शीघ्र ठीक हो जाएगी।

कई अस्पतालों के चक्कर लगाए…महंगा खर्च देखकर एमवाय की शरण में आए, तब तक ब्लैक फंगस निगल गया एक आंख
झोकर जिला मक्सी में नमकीन और मिठाइयों का व्यवसाय करने वाले लोकेन्द्र राठौर को पिछले माह की 19 तारीख को कोरोना संक्रमित होने पर शाजापुर के कोविड सेन्टर में भर्ती करवाया गया, जहां 11 दिन बाद टेस्ट रिपोर्ट नेगेटिव आने पर 30 अप्रैल को डिस्चार्ज कर दिया गया, लेकिन एक-दो दिन बाद ही उन्हें ऑक्सीजन की कमी के साथ आंखों में दर्द होने लगा। एक सप्ताह तक परिजन इसे दवाइयों का साइड इफेक्ट समझकर टालते रहे, लेकिन जब दर्द बढऩे लगा तो उन्हें शाजापुर के अस्पताल में भर्ती कर आंखों के दर्द का सामान्य इलाज शुरू किया। जब पीडि़त को कुछ आराम नहीं मिला तो परिजनों ने निर्णय लिया कि उन्हें इन्दौर के अस्पताल में दिखाया जाए। तब 12 मई को लोकेन्द्र्र राठौर को परिजन अपने साथ इन्दौर लेकर आए और सबसे पहले उन्हें चोइथराम अस्पताल में दिखवाया, जहां पर डॉक्टरों ने जांच के बाद इलाज का खर्च करीब साढ़े 6 लाख रुपए बताया। इस पर परिजन मरीज को लेकर एमवाय अस्पताल आए, जहां पर ज्यादा भीड़ होने से मिल क्षेत्र स्थित रसोमा चौराहा पर एक निजी अस्पताल में लेकर गए, जहां डॉक्टरों ने महंगे इंजेक्शनों की जरूरत बताई तो दूसरे ही दिन 13 मई को पीडि़त को एमवाय अस्पताल लेकर पहुंचे। यहां डॉक्टरों ने उन्हें भर्ती कर लिया। एमवाय में सभी प्रकार की जांच होने के बाद डॉक्टरों ने आंख की स्थिति देखकर न्यूरो सर्जन की सलाह के बाद 15 मई को आंख के ऑपरेशन की तारीख दी, मगर अस्पताल में टल रहे ऑपरेशन से परेशान परिजनों ने पूर्व सांसद सुमित्रा महाजन, महापौर मालिनी गौड़, सोनू राठौड़ और कई नेताओं से गुहार की। अगले दिन एमवाय में लोकेन्द्र की राइट साइड की ब्लैक फंगस संक्रमित आंख का ऑपरेशन कर डॉक्टरों ने उसे निकाला। हालांकि अभी भी ब्लैक फंगस के इलाज के लिए लगाए जाने वाले इंजेक्शन नहीं मिलने से परिजन चिंतित हो रहे हैं।

जितना मरीज का वजन उतने इंजेक्शन
ब्लैक फंगस (Black fungus) के शिकार मरीजों को उनके वजन के अनुसार इंजेक्शन लगाना पड़ते हैं। इन मरीजों को दिए जाने वाले इंजेक्शन की मात्रा 1 किलो वजन पर 50 एमजी रहती है, यानी मरीज का वजन यदि 50 किलो है तो 50 एमजी के 50 इंजेक्शन देना होंगे। वैसे एक व्यक्ति का सामान्य वजन 60 से 70 किलो होता है, जिस पर मरीज को प्रतिदिन 6 से 7 इंजेक्शन लगना अनिवार्य होता है।
14 से 21 दिन लगते हैं इलाज में
ब्लैक फंगस (Black fungus) से पीडि़त मरीज के उपचार में लगे डाक्टरों की मानें तो इस बीमारी से पूरी तरह निजात पाने के लिए 14 या 21 दिन लगते हैं। मगर यदि मरीजों की आंखें या अंग निकाले जाते हैं तो समय बढ़ सकता है।
लगातार लगना चाहिए दवाइयों के डोज
ब्लैक फंगस (Black fungus) का भी इलाज शुरुआती दौर में शुरू हो गया तो ठीक, नहीं तो बाद में संक्रमित अंग को शरीर से अलग ही करना पड़ता है। ब्लैक फंगस में कारगर दवाइयों का डोज लगातार मरीजों को दिया जाना होता है। यदि उसकी चेन टूटती है तो जितने दवाइयों के डोज लगे हैं वह सब शून्य हो जाते हैं।
गरीबों का रहनुमा बना इंदौर का एमवाय…बड़े-बड़े अस्पतालों के चक्कर लगाए, लेकिन एमवाय में जाकर इलाज करवा पाए
नलखेड़ा में पिछले माह मो. जिया उल हक अजमेरी ने अपनी पत्नी यास्मिन का 4 दिन नलखेड़ा से लेकर उज्जैन के निजी अस्पतालों में इलाज करवाया, जहां यास्मिन ने कोरोना को तो हरा दिया, लेकिन बाद में उसकी नाक और मसूड़े में कुछ परेशानी होने लगी। इस पर उज्जैन के ही तीन-चार डॉक्टरों को दिखाया गया, जिन्होंने सलाह दी कि इन्हें इन्दौर के किसी बड़े अस्पताल में इलाज के लिए लेकर जाओ। इस पर मो. जिया उल हक अपनी पत्नी को लेकर इन्दौर आए और बाम्बे हास्पिटल में डॉक्टरों को दिखाया, जहां महंगे खर्च के चलते वहां से पीडि़ता को पहले सुपर स्पेशलिटी अस्पताल ले गए, जहां डाक्टरों ने ठीक समय पर उसकी बीमारी को पहचानकर तत्काल एमवाय अस्पताल में अलग से बनाए गए ब्लैक फंगस वार्ड में भर्ती कराया। यहां पर सरकार की ओर से बेहतर इलाज के लिए मुहैया करवाई जा रही सुविधाओं के चलते उसका दूसरे ही दिन नाक का ऑपरेशन कर दिया गया। ब्लैक फंगस से पीडि़त यास्मिन अब स्वस्थ है और उसका इलाज एमवाय में चल रहा है।
2 लाख के इंजेक्शन बाजार से खरीदकर लगाए, अब न बाजार में न अस्पताल में मिल रहे हैं इंजेक्शन
पिछले माह कोरोना से संक्रमित हुए इन्दौर निवासी हुसैनी मोईज भानपुरावाला के पुत्र नोमान भानपुरावाला ने अग्निबाण से चर्चा में बताया कि उनके पिताजी को विगत 19 अप्रैल को कोरोना संक्रमण हो गया था। इसका उन्होंने होम आइसोलेशन में रहते हुए इलाज करवाया। कोरोना इलाज के बाद हुसैनी मोईज को नाक में एक छोटी सी फुंसी हो गई जो दर्द कर रही थी। परिवार वालों ने यह समझकर ध्यान नहीं दिया कि कोरोना की हैवी डोज वाली दवाइयों के कारण शरीर में गर्मी बढ़ गई होगी और उससे नाक में फुंसी हो गई होगी, मगर जब दर्द हद से ज्यादा बढऩे लगा तो जो डॉक्टर कोरोना का इलाज कर रहा था उसने बताया कि यह ब्लैक फंगस नामक नामक बीमारी हो सकती है। हुसैनी को 2 मई को एमवाय अस्पताल में भर्ती करवाया इस दौरान परिवार वालों ने बाजार से खरीदकर करीब 28 इंजेक्शन लगवाए जो उन्हें दवाइयों की दुकानों पर 7 से 8 हजार रुपए में एक मिला। 2 लाख रुपए से अधिक के इंजेक्शन लगने के बाद हुसैनी अब स्वस्थ हैं।
साढ़े तीन लाख के 45 इंजेक्शन पत्नी को लगवा चुके हैं…अब भी खरीदने को तैयार हैं मो. जिया उल हक
कोरोना महामारी के इलाज के लिए जिस प्रकार रेमडेसिविर इंजेक्शनों का टोटा शहर में बना हुआ था। वर्तमान समय में कोरोना के बाद मरीजों में पाई जाने वाली ब्लैक फंगस की बीमारी में कारगर साबित होने वाले इंजेक्शन एम्फोटेरिसिन-बी की उपलब्धता नहीं होने से ब्लैक फंगस से पीडि़त मरीजों के परिजनों को काफी परेशानी हो रही है। अपनी पत्नी का ब्लैक फंगस का इलाज करवा रहे मो. जिया उल हक ने अग्निबाण से चर्चा में बताया कि वह अभी तक पत्नी यास्मिन को 45 इंजेक्शन खरीदकर लगवा चुके हैं। एक इंजेक्शन बाजार में उन्हें करीब 7 हजार 500 रुपए का मिला। कुल इंजेक्शनों की कीमत करीब 3 लाख 38 हजार रुपए होती है, मगर जब से एमवाय में ऑपरेशन हुआ उसके बाद से उन्होंने इंजेक्शन नहीं खरीदे हैं। अब सरकार की तरफ से ही इंजेक्शन नि:शुल्क लगाए जा रहे हैं, मगर दो दिन से इंजेक्शन की उपलब्धता नहीं होने पर पत्नी को इंजेक्शन नहीं लग पाए हैं वह अभी भी बाजार से इंजेक्शन खरीदने के लिए प्रयासरत हैं।

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