भोपाल। नानाजी देशमुख पशुचिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय के विज्ञानिकों को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने एक महत्वपूर्ण शोध की जिम्मेदारी सौंपी है। इनमें उन्हें मध्यप्रदेश के ग्रामीण आंचलों में जाकर वहां मिलने वाले पशुओं के गुण-दोष के आधार पर उनकी प्रजातियों की पहचान करनी होगी। इतना ही नहीं क्षेत्र के आधार पर इनके आहार, आवास, बीमारी और इलाज जैसे सभी पहलुओं पर अध्ययन कर इन्हें देशभर में पहचान दिलानी होगी। मध्यप्रदेश में आज भी छोटे और बड़े पशुओं की कई ऐसी प्रजातियां मौजूद हैं, जिनकी अब तक पहचानी नहीं गई हैं। आम प्रजातियों की तुलना में कहीं बेहतर गुण मौजूद हैं। इस काम को अब जबलपुर वेटरनरी विश्वविद्यालय, राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो करनाम के मदद से पूरा करेगा। वेटरनरी विश्वविद्यालय के विज्ञानिक और मुख्य अन्वेशक डा.मोहन सिंह ठाकुर बताते हैं कि मध्यप्रदेश में गाय, भैंस, मुर्गी, बकरी समेत अन्य स्वदेशी पालतु पशुओं की प्रजातियों का सर्वे किया जाएगा। इनमें मुख्य तौर पर क्षेत्रीय प्रजातियों का भौगिक सर्वे होगा, जिसमें उनके रहने, खाने सहित अन्य सभी पहलुओं का अध्ययन कर उनकी प्रजातियों की पहचान होगी। आइसीएआर के राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो के सहयोग से विवि के विज्ञानियों को इन पशुओं की जनसंख्या की जानकारी दर्ज करने के अलावा उनके प्रजनन विधि, शारीरिक माप, उत्पादन क्षमता को विस्तार से अध्ययन करेंगे। अभी तक क्षेत्रीय पशुओं की प्रजातियां पूरी तरह से बिखरी हुई हैं। इनका कोई डाटा भी उपलब्ध नहीं है, जिसकी मदद से इन पर शोध किया जाए सकें।
इसलिए करना पड़ा शोध
पशुओं में लगातार हो रहे शोध के दौरान विज्ञानिकों को सबसे ज्यादा दिक्कत प्रजातियों की पहचान को लेकर होती है। देशी पशुओं में आज गिनती की प्रजातियां ही चिंहित है। ऐसे में इनकी पहचान किए बिना न तो पर पर शोध किया जा सकता है और न ही पशुपालकों को इसका फायदा पहुंचाया जा सकता है। खासतौर पर गाय, भैंस, बकरी, मुर्गी की क्षेत्रीय प्रजातियों की पहचान करना जरूरी हो गया है। जबकि मध्यप्रदेश के अधिकांश क्षेत्र की जलवायु, आहार और आवास के आधार पर बांटी है। अब इनकी पहचान एक बड़ी चुनौती हो गई है। इस पर जबलपुर वेटरनरी विवि के एनिमल जेनेटिक्स एंड ब्रीडिंग एक्सपर्ट काम करेंगे। वे पांच साल के दौरान इस शोध पर काम करेंगे।
यह होगा फायदा
प्रजातियों की पहचान के बार उनकी खासियत के आधार पर शोध होगा। उनकी संख्या बढ़ाने और उससे होने वाले फायदों से पशुपालकों को जोड़ा जाएगा। क्षेत्रीय प्रजातियां होने की वजह से आहार और आवास आसानी में उपलब्ध होगा। क्षेत्रीय पशुपालकों को भी इस शोध से सीधी तौर पर जोड़ा जाएगा। इन्हें होने वाली बीमारियों और प्रतिरोधक क्षमता पर विस्तार से काम होगा।
पशुओं से जुड़े अनुसंधानों को आगे बढ़ाने और उसके बेहतर परिणाम हासिल करने के लिए प्रदेश में पशुओं की प्रजातियों की क्षेत्रीय स्तर पर पहचान जरूरी है। राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो करनाम की मदद से हम शोध करने जा रहे हैं। यह प्रोजेक्ट मध्यप्रदेश के लिए सबसे महत्वपूर्ण है।
प्रो.एसपी तिवारी, कुलपति, जनेकृविवि
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