आज यानि 10 जून को वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat 2021)है। धार्मिक मान्यता अनुसार, जो भी महिला इस दिन सच्ची भावना से स्नान-ध्यान, दान, व्रत और पूजा-पाठ (worship) करती है, उसे समस्त देवी-देवता का आशीर्वाद निश्चित ही प्राप्त होता है। कहते हैं कि माता सावित्री अपने पति के प्राणों को यमराज से छुड़ाकर ले आई थीं। ऐसे में इस व्रत का महिलाओं के बीच विशेष महत्व (special importance) बताया जाता है। इस दिन वट (बरगद) के पेड़ का पूजन किया जाता है। इस दिन सुहागिनें वट वृक्ष का पूजन कर इसकी परिक्रमा लगाती हैं। महिलाएं सूत के धागे से वट वृक्ष को बांधकर इसके सात चक्कर लगाती हैं। इस व्रत को स्त्रियां अखंड सौभाग्यवती रहने की मंगलकामना से करती हैं।
वट वृक्ष का महत्व
धार्मिक मान्यता के अनुसार, वट वृक्ष (Banyan Tree) या बरगद के पेड़ के तने में भगवान विष्णु, जड़ में ब्रह्मा तथा शाखाओं में शिव का वास होता है। वट वृक्ष को त्रिमूर्ति का प्रतीक माना गया है। विशाल एवं दीर्घजीवी होने के कारण वट वृक्ष की पूजा लम्बी आयु की कामना के लिए की जाती है। मान्यता है कि भगवान शिव (Lord Shiva) वट वृक्ष के नीचे ही तपस्या करते हैं तथा तथागत भगवान बुद्ध (Lord Buddha) को भी बरगद के पेड़ के नीचे ही ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। अतः बौद्ध धर्म में इसे बोधि वृक्ष कहा गया है।
वट सावित्री कथा
पुराणों में वर्णित सावित्री की कथा इस प्रकार है। राजर्षि अश्वपति की एकमात्र संतान थीं सावित्री। सावित्री ने वनवासी राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को पति रूप में चुना लेकिन जब नारद (Narada) जी ने उन्हें बताया कि सत्यवान अल्पायु हैं, तो भी सावित्री अपने निर्णय से डिगी नहीं। वह समस्त राजवैभव त्याग कर सत्यवान के साथ उनके परिवार की सेवा करते हुए वन में रहने लगीं। जिस दिन सत्यवान के महाप्रयाण का दिन था, उस दिन वह लकड़ियां काटने जंगल गए और वहां मूर्छित होकर गिर पड़े।
उसी समय यमराज सत्यवान के प्राण लेने आए। तीन दिन से उपवास में रह रही सावित्री इस घड़ी को जानती थीं। वह बिना विकल हुए यमराज से सत्यवान के प्राण न लेने की प्रार्थना करने लगीं लेकिन यमराज नहीं माने। तब सावित्री उनके पीछे-पीछे ही जाने लगीं। कई बार मना करने पर भी वह नहीं मानीं, तो सावित्री के साहस और त्याग से यमराज प्रसन्न हुए और कोई तीन वरदान मांगने को कहा। सावित्री ने सत्यवान के दृष्टिहीन माता-पिता के नेत्रों की ज्योति मांगी, उनका छीना हुआ राज्य मांगा और अपने लिए 100 पुत्रों का वरदान मांगा।
तथास्तु कहने के बाद यमराज समझ गए कि सावित्री के पति को साथ ले जाना अब संभव नहीं। इसलिए उन्होंने सावित्री को अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद दिया और सत्यवान को छोड़कर वहां से अंतर्धान हो गए। उस समय सावित्री अपने पति को लेकर वट वृक्ष के नीचे ही बैठी रहीं। इसीलिए इस दिन महिलाएं अपने परिवार और जीवनसाथी की दीर्घायु की कामना करते हुए वट वृक्ष को भोग अर्पण करती हैं। उस पर धागा लपेट कर पूजा करती है ।
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