नई दिल्ली (New Delhi) । क्या इस बार के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) में 40 साल पुरानी पारिवारिक-सियासी दुश्मनी का खात्मा होने जा रहा है? बात गांधी परिवार (Gandhi family) की हो रही है, जिससे आने वाले वरुण गांधी (Varun Gandhi) को कांग्रेस (Congress) में शामिल होने का पहला खुलेआम ऑफर दिया गया है. पीलीभीत से वरुण का टिकट कटा तो कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि वो गांधी होने की कीमत चुका रहे हैं. सवाल ये है कि क्या BJP और अपनी ही सरकार को हर मुद्दे पर घेरने वाले वरुण गांधी कांग्रेस में जा सकते हैं? मेनका गांधी और सोनिया गांधी के बीच शुरू हुई पारिवारिक रार अब वरुण और राहुल तक भी जारी है.
दरअसल, पीलीभीत से बीजेपी ने वरुण गांधी का पत्ता काट कर जितिन प्रसाद को उम्मीदवार बनाया गया. इसके बाद अब सबकी नजरें वरुण गांधी के अगले कदम पर है. क्योंकि अपनी ही पार्टी और सरकार के खिलाफ बोलने वाले वरुण को लेकर बीजेपी ने अपनी चाल चल दी है. वरुण पीलीभीत से बीजेपी के सांसद हैं और जब उनका टिकट कटा तो कांग्रेस ने फायरब्रांड बीजेपी नेता को ऑफर देकर यूपी की राजनीति को गरमा दिया है. कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने बीजेपी पर निशाना साधते हुए वरुण गांधी को कांग्रेस में शामिल होने का जिस तरह न्योता दिया वो काफी अहम है.
कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने बीजेपी पर निशाना साधते हुए वरुण गांधी को कांग्रेस में शामिल होने का ऑफर दिया है. अधीर रंजन चौधरी ने कहा, ‘वरुण गांधी को कांग्रेस में शामिल होना चाहिए. अगर वह कांग्रेस में आते हैं तो हमें खुशी होगी. वरुण गांधी एक कद्दावर और बेहद काबिल नेता हैं.’ उन्होंने कहा कि उनका गांधी परिवार से संबंध है इसलिए बीजेपी ने उन्हें टिकट नहीं दिया. हम चाहते हैं कि अब वरुण गांधी कांग्रेस में शामिल हो जाएं.
2009 में पहली बार सांसद ने वरुण
बता दें कि वरुण गांधी 2004 में BJP में शामिल हुए और 2009 में पहली बार सांसद भी बन गए. साल 2013 में वरुण गांधी को भाजपा का राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया और इसी साल पार्टी ने उन्हें पश्चिम बंगाल में भाजपा का प्रभारी भी बनाया. ये वो वक्त था जब यूपी की सियासत और भाजपा में वरुण का नाम प्रमुख नेताओं में था. यहां तक कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की दौड़ में भी उनका नाम लिया जाता था. लेकिन पार्टी और सरकार के खिलाफ उनकी तरफ से दिए गए बयानों ने पार्टी में उनकी स्थिति कमजोर कर दी और पिछले 10 सालों से पार्टी ने उन्हें कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं दी गई.
वरुण का बीजेपी से मोहभंग हो रहा है?
वरुण गांधी के बयानों से सवाल उठे कि क्या उनका बीजेपी से मोहभंग हो रहा है? वरुण ने जिस तरह से हर बड़े मुद्दे पर सरकार और पार्टी को घेरा और सबसे बड़ी बात राहुल के सुर से सुर मिलाया, उससे सवाल उठने लगा कि क्या दोनों भाई एक साथ आने जा रहे हैं?
वरुण गांधी ने कहा था कि मैं न पंडित नेहरू के खिलाफ हूं, न कांग्रेस के खिलाफ हूं. हमारे देश की राजनीति जोड़ने की राजनीति होनी चाहिए. जो लोग धर्म के नाम पर वोट ले रहे हैं, जो लोगों को दबाए, वो राजनीति नहीं करनी. ताकत वो जो लोगों को उठाने के लिए इस्तेमाल नहीं होती, ये राजनीति हम होने नहीं देंगे.
इसके बाद सवाल उठने लगे कि क्या राहुल के सुर में सुर मिलाने वाले वरुण बीजेपी से बगावत करने जा रहे हैं? क्या वरुण गांधी कांग्रेस का हाथ थामेंगे? अगर वरुण गांधी कांग्रेस में आते हैं तो उत्तर प्रदेश में पार्टी की फायरब्रांड नेता की तलाश खत्म हो सकती है. कई जानकारों का मानना है कि इससे उत्तर प्रदेश में पार्टी की स्थिति थोड़ी मजबूत भी हो सकती है. लेकिन सवाल ये है कि क्या वरुण कांग्रेस में आएंगे और क्या राहुल गांधी उन्हें गले लगाएंगे?
वरुण गांधी ने खरीदे थे 4 से नामांकन पत्र
सवाल ये भी है कि गांधी परिवार के 2 बड़े नेताओं के सुर एक हैं तो क्या दल भी एक होगा? ये बड़ा सवाल है. सवाल पीलीभीत की सीट को लेकर भी है. क्योंकि कुछ दिन पहले वरुण गांधी ने अपने सहयोगी के जरिए 4 सेट नामांकन पत्र खरीदा था. सभी कार्यकर्ताओं को हर गांव से 2 गाड़ी और 10 मोटरसाइकिल तैयार रखने को कहा था. लेकिन बीजेपी की तरफ से जितिन प्रसाद का नाम प्रत्याशी के तौर पर तय करने के बाद वरुण ने खामोशी अख्तियार कर ली है.
बीजेपी ने वरुण पर बनाया दवाब?
जानकारी के मुताबिक अनौपचारिक बातचीत में वरुण ने अपने नजदीकी और खास लोगों को ये बता दिया है कि उनके साथ छल किया गया है. ऐसे में अब वह चुनाव नहीं लड़ेंगे. माना जा रहा है कि भाजपा ने आखिरी वक्त में ऐसा दबाव बनाया कि वरुण गांधी चाहकर भी चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाएंगे. कारण, एक ही लिस्ट में बीजेपी ने मेनका गांधी की उम्मीदवारी फाइनल कर दी यानी वह एक बार फिर सुल्तानपुर से चुनाव लड़ेंगी जबकि वरुण गांधी का टिकट काट दिया.
पीलीभीत में चुनाव पहले चरण में है और सुल्तानपुर में चौथे चरण में. ऐसे में वरुण गांधी अगर निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर उतरते हैं तो उनकी मां मेनका गांधी के चुनाव पर असर पड़ सकता है. बीजेपी इसे कतई सहजता से नहीं लेती. ऐसे में एक ही लिस्ट में बीजेपी ने ऐसा काम किया कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे का मुहावरा फिट हो जाए. हांलाकि समाजवादी पार्टी की तरफ से वरुण गांधी को लेकर समर्थन के दावे किए जा रहे हैं.
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