जयपुर। राजस्थान के पाली क्षेत्र (Pali Region of Rajasthan) के वैभव भंडारी (Vaibhav Bhandari) ने 10 माह के संघर्ष के बाद सम्मान के साथ मरने के अधिकार की वसीयत (लिविंग विल) बना ली है। संभवतया: यह राजस्थान (Rajasthan)का पहला मामला है। उन्होंने अगस्त 2021 में जिला कोर्ट में इसके लिए आवेदन किया और जून 2022 में यह विल रजिस्टर्ड हुई।
सुप्रीम कोर्ट ने 9 मार्च 2018 को इज्जत के साथ मरने के अधिकार को मूलभूत अधिकार का दर्जा देते हुए लिविंग विल बनाने को मंजूरी दे दी थी। जिस उम्र में युवा अपने करियर के बारे में सोचता है, उस उम्र में वैभव भंडारी ने इच्छामृत्यु के अधिकार की वसीयत बनवा ली इसे बनवाने में उन्हें 10 महीने का समय लगा. उन्होंने अगस्त 2021 में डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में इसके लिए आवेदन किया और जून 2022 में यह विल रजिस्टर्ड हुई। इस विल के तहत जिस तरह किसी आम वसीयत में शख्स मरने से पहले साफ कर देता है कि उसके न रहने पर उसकी जमीन-जायदाद का क्या होगा, उसी तरह लिविंग विल में वह पहले ही घोषित कर देता है कि अगर भविष्य में उसे कोई गंभीर बीमारी हो जाती है तो उसे दवाओं पर जिंदा रखा जाए या नहीं। इच्छामृत्यु की विल का राजस्थान का यह पहला मामला है।
इस संबंध में वैभव का कहना है कि रेयर डिजीजेस (दुर्लभ बीमारियों) पर काफी समय से काम कर रहा हूं इसमें मेरे संपर्क में ऐसे कई सारे केस हैं जिनमें लोग गंभीर बीमारी से ग्रस्त हैं। ऐसे में लगभग दो साल पहले एक ऐसा केस सामने आया जिसमें गंभीर रूप से बीमार एक लड़का जिसे लाइलाज बीमारी थी। इलाज के दौरान उसकी मृत्यु हो गई। एक पिता ने अपने बेटे को खो दिया साथ ही इलाज में हुए खर्च के चलते लाखों रुपये का कर्ज भी हो गया इस तरह की पीड़ा को देखने के बाद उन्होंने ये वसीयत बनवाई। वसीयत बनवाने का उद्देश्य लोगों में जागरूकता का प्रसार करना है।”
यह एक लिखित और प्रमाणित दस्तावेज होता है, जिसमें गंभीर बीमारी होने पर व्यक्ति किस तरह का इलाज कराना चाहता है यह लिखा होता है. यह इसलिए तैयार की जाती है जिससे गंभीर बीमारी के समय जब व्यक्ति खुद अपने जीवन का फैसला नहीं कर पा रहा होता है तो पहले से तैयार दस्तावेज के हिसाब से उसके बारे में फैसला लिया जा सके। इसमें जो व्यक्ति ‘लिविंग विल’ बनवा रहा है वह किसी व्यक्ति (परिवार, दोस्त या अन्य परिचित को) अपने गंभीर रूप से बीमार होने के स्थिति में फैसला करने का अधिकार देता है।
विदित हो कि सुप्रीम कोर्ट ने 9 मार्च 2018 को इज्जत के साथ मरने के अधिकार को मूलभूत अधिकार का दर्जा दे दिया था. यानी ये विल बनाने की मंजूरी दे दी थी। इसमें जो व्यक्ति गंभीर रूप से बीमार है या उसे कोई लाइलाज बीमारी है वह इच्छामृत्यु के लिए लिख सकता है। इसमें मेडिकल बोर्ड तय करता है। यदि बोर्ड मना कर देता है तो परिवार के पास उच्च न्यायालय जाने का ऑप्शन होता है।
इच्छामृत्यु के दो तरीके हैं। पहला एक्टिव यूथेनेशिया. इसमें मरीज को घातक पदार्थ देना शुरू किया जाता है, जिससे वह जल्द ही मर जाता है। दूसरा पैसिव यूथेनेशिया. इसमें मरीज को वे चीजें देना बंद कर दिया जाता है जिस पर वह जीवित होता है। इसके लागू होने से पहले ऐसा करना हत्या की श्रेणी में रखा जाता था।
राजस्थान के पाली जिले के रहने वाले डॉ. वैभव भंडारी कानूनी सलाहकार, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कार्यकर्ता हैं. वे स्वावलंबन नामक संस्था के फाउंडर भी हैं।
इस संस्था के माध्यम से डॉ. वैभव दिव्यांग बच्चों के लिए काम करते हैं। वह बताते हैं, संस्था बच्चों को मुफ्त शिक्षा मुहैया कराती है। लॉकडाउन के समय उनकी संस्था ने रेयर डिसीजेस से संबंधित एक्सपर्टस् के ऑनलाइन सेशंस भी करवाए हैं। इससे रेयर डिसीजेस के बारे में लोगों में जागरूकता लाने की कोशिश की गई. इसके साथ ही उनकी संस्था ने बीते दिनों एक जेनेटिक टेस्ट का कैंप भी करवाया। उन्होंने आगे कहा कि हम स्वास्थ्य से जुड़े उन मुद्दों पर काम कर रहे हैं जिनमें आसानी से काम नहीं हो रहा है।
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