कोविड-19 वैक्सीन की सिंगल डोज संक्रमित हो चुके व्यक्ति के शरीर में ज्यादा बेहतर रिस्पॉन्स करती है। ऐसे लोगों में संक्रमित न हुए लोगों की तुलना में एंटीबॉडी (Antibodies) का ज्यादा अच्छा रिस्पॉन्स देखा गया है। AIG हॉस्पिटल्स ने सोमवार को इसे लेकर एक स्टडी जारी की है। AIG हॉस्पिटल्स की 260 हेल्थकेयर वर्कर्स पर आधारित ये स्टडी ‘इंटरनेशनल जर्नल ऑफ इंफेक्शियस डिसीज’ में प्रकाशित हुई है।
स्टडी में शामिल हुए हेल्थकेयर वर्कर्स को 16 जनवरी से 5 फरवरी के बीच वैक्सीनेट किया गया था। यह स्टडी उन सभी मरीजों में इम्यूनोलॉजीकल मेमोरी रिस्पॉन्स (immunological memory response) को समझने के लिए की गई थी। इसमें शामिल होने वाले सभी मरीजों को कोविशील्ड वैक्सीन के डोज दिए गए थे।
AIG हॉस्पिटल्स के चेयरमैन और इस स्टडी के सह लेखक डी। नागेश्वर रेड्डी के मुताबिक, आंकड़े कहते हैं कि कोरोना संक्रमण की चपेट में आ चुके लोगों को वैक्सीन के दो डोज लेने की जरूरत नहीं है। ऐसे लोगों में एंटीबॉडी बनाने और मेमोरी सेल्स के रिस्पॉन्स के लिए एक डोज ही काफी है। जिन लोगों को पहले कभी इन्फेक्शन नहीं हुआ है उनके लिए दोनों डोज जरूरी हैं।
डॉ. रेड्डी ने कहा कि देश में वैक्सीन की कमी के बीच ये स्टडी काफी महत्वपूर्ण साबित हो सकती है। ऐसे में हम कम समय में ज्यादा से ज्यादा लोगों को वैक्सीनेट कर पाएं और वैक्सीन के डोज से वंचित आबादी के लिए वैक्सीन बचा पाएंगे।
उन्होंने कहा कि एक बार अपेक्षित आबादी को वैक्सीनेट करके हर्ड इम्यूनिटी हासिल कर ली जाए तो संक्रमित होकर एक डोज लेने वाले लोग बाद में दूसरी डोज भी ले सकेंगे। डॉ. रेड्डी ने कहा कि हमें उपलब्ध वैक्सीन का डिस्ट्रीब्यूशन रणनीतियों के तहत करना चाहिए। वैक्सीन (Vaccine) देने की योजना ऐसी होनी चाहिए ज्यादा से ज्यादा लोगों को कम से कम वैक्सीन का एक सिंगल डोज दिया जा सके।
बता दें कि वैक्सीन की कमी के कारण ही केंद्र सरकार (central government) ने 13 मई को ही कोविशील्ड की दोनों डोज के बीच गैप 6-8 सप्ताह से बढ़ाकर 12-16 सप्ताह करने का फैसला किया था। यानी कोविशील्ड की पहली डोज लेने के बाद दूसरी डोज 12 से 16 सप्ताह के बीच लेने की सिफारिश की गई थी।
केंद्र सरकार ने वैक्सीन डोज के बीच दूसरी बार गैप बढ़ाया है। इससे पहले दोनों डोज के बीच गैप 28 दिन से बढ़ाकर 6 से 8 सप्ताह तक करने का निर्देश जारी किया गया था। स्वास्थ्य मंत्रालय (Ministry of Health) का कहना था कि ये फैसला बिल्कुल विज्ञान पर आधारित है और इससे लोगों में संक्रमण का अतिरिक्त खतरा नहीं बढ़ेगा ।
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