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    Uttarkashi Tunnel: पहाड़ी पानी पीकर प्‍यास बुझाई, टनल में फंसे मजदूर ने बताया अंदर कैसे काटे 17 दिन

  • November 29, 2023

    नई दिल्‍ली (New Dehli)। उत्तरकाशी (Uttarkashi)में सुरंग (tunnel)में फंसे सभी 41 श्रमिकों को सुरक्षित (Safe)बाहर निकाल लिया गया है। यह रेस्क्यू ऑपरेशन (rescue operation)काफी चुनौतीपूर्ण (challenging)रहा। कई असलफताओं के बाद आखिरकार टीम को सफलता मिली और सभी श्रमिकों की जान बची। टनल में फंसे एक श्रमिक ने पूरी घटना के बारे में बताया है। इन 17 दिनों में उन्होंने फोन पर लूडो खेलकर समय बिताया। टनल में आने वाले पानी से स्नान किया। मुरमुरे और इलायची से अपनी भूख को मिटाया। झारखंड के खूंटी जिले के रहने वाले चमरा ओरांव ने इंडियन एक्सप्रेस के साथ बातचीत में पूरी घटना के बारे में विस्तार से बताया है।


    ओरांव ने कहा कि ताजी हवा की गंध एक नए जीवन की तरह महसूस हुई। उन्होंने 41 मजदूरों को बचाने का श्रेय 17 दिनों तक अथक प्रयास करने वाले बचावकर्मियों और ईश्वर को दिया है। ओरांव ने कहा, “जोहार! हम अच्छे हैं। हम भगवान में विश्वास करते थे और इससे हमें ताकत मिली। हमें भी विश्वास था कि 41 लोग फंसे हैं तो कोई न कोई हमें बचा लेगा। मैं अपनी पत्नी से बात करने के लिए इंतजार नहीं कर सकता। तीन बच्चे खूंटी में मेरा इंतजार कर रहे हैं।”ओरांव ने कहा कि वह प्रति माह 18,000 रुपये कमाता है।

    ओरांव ने उस दिन की घटना को याद करते हुए कहा कि वह 12 नवंबर की सुबह काम कर रहे थे। तभी उन्होंने जोरदार आवाज सुनी और मलबा गिरते देखा। ओरांव ने कहा, “मैं अपनी जान बचाने के लिए भागा लेकिन गलत दिशा में फंस गया। जैसे ही यह पता चल गया कि हम लंबे समय के लिए फंस गए हैं तो हम बेचैन हो गए। लेकिन हमने मदद के लिए चुपचाप प्रार्थना की। मैंने कभी उम्मीद नहीं खोई।”

    ओरांव ने कहा कि करीब 24 घंटे बाद अधिकारियों ने मुरमुरे और इलायची के बीज भेजे। ओरांव ने कहा, “जब हमने पहला निवाला खाया, तो हमें लगा कि कोई ऊपर वाला हमारे पास आया है। हम बहुत खुश थे। हमें आश्वासन दिया गया था कि हमें बचा लिया जाएगा, लेकिन समय गुजारने की जरूरत थी। इसलिए हमने खुद को फोन पर लूडो में डुबो दिया। फोन चार्ज करने के लिए बिजली की सुविधा थी। नेटवर्क नहीं होने के कारण हम किसी को कॉल नहीं कर सकते थे। हमने आपस में बात की और एक-दूसरे को जाना।”

    यह पूछे जाने पर कि वह फ्रेश होने के लिए क्या करते थे। ओरांव ने कहा: “हमने प्राकृतिक पहाड़ी पानी का उपयोग करके स्नान किया। फ्रेश होने के लिए हमने एक जगह तय कर ली थी। ओरांव ने कहा कि वह शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ हैं। अब वह घर पहुँचेंगे और तय करेंगे कि वह आगे क्या करेंगे।

    दूसरी ओर झारखंड के ही एक दूसरे श्रमिक 26 वर्षीय विजय होरो के परिवार को यकीन है कि वे नहीं चाहते कि वह अब वह बाहर यात्रा जाएं। उनके भाई रॉबिन ने कहा, “विजय ने एम्बुलेंस से मुझसे बात की। वह बहुत खुश था। उन्होंने हमसे कहा कि चिंता न करें, वह अच्छी स्थिति में हैं। हम दोनों शिक्षित हैं। हम झारखंड में नौकरी पाने की कोशिश करेंगे, लेकिन अगर हमें पैसे की जरूरत होगी तो हम कहीं और कम जोखिम वाली नौकरियां तलाशेंगे।”

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