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    उत्तराखंड सरकार ने जगाया, शासन को पत्र भिजवाया, मगर इंदौर के अधिकारियों ने दबाया

  • October 10, 2020


    चोर ही जब हो सिरमौर
    जो बात सालों म.प्र. शासन नहीं समझ पाया उसे दूसरे राज्य ने समझाया

    इंदौर। हरिद्वार के कुशावर्तघाट की बिक्री के साथ ही खासगी संपत्ति पर मध्यप्रदेश शासन के स्वामित्व की जानकारी उत्तराखंड के मुख्य सचिव ने 31 जुलाई 2012 को मध्यप्रदेश शासन के मुख्य सचिव को पत्र लिखकर दी और मुख्य सचिव ने पत्र इंदौर के संभागायुक्त को कार्रवाई के लिए पहुंचाया लेकिन इस पत्र कार्रवाई होना तो दूर संभागायुक्त कार्यालय द्वारा पत्र को ही दबा दिया गया।

    उत्तराखंड सरकार के मुख्य सचिव आलोक कुमार जैन ने 31 जुलाई 2012 को हरिद्वार में हुए संपत्ति के क्रय-विक्रय के संबंध में पत्र लिखकर मध्यप्रदेश सरकार के मुख्य सचिव आर परशुराम को बताया कि बेची जा रही संपत्ति मध्यप्रदेश सरकार के स्वामित्व की है। अत: इस संपत्ति को किसी ट्रस्टी को बेचने का अधिकार नहीं है, लेकिन ट्रस्ट के ट्रस्टी सतीशचंद्र मल्होत्रा द्वारा स्वयं एवं अपने सचिव कमलजीतसिंह राठौर के जरिए ट्रस्ट की संपत्ति का हस्तांतरण राघवेन्द्र शर्मा को किया जा रहा है। उपरोक्त पत्र मुख्य सचिव ने एक विशेष नोट के साथ धर्मस्व विभाग के प्रमुख सचिव को 6 अगस्त 2012 को भेजा, जिसमें लिखा गया कि यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण मामला है और इसकी जांच की जाए। प्रमुख सचिव ने पत्र इंदौर के संभागायुक्त कार्यालय को भेजकर कार्रवाई के लिए कहा, लेकिन संभागायुक्त कार्यालय ने कोई कार्रवाई नहीं की, क्योंकि उपरोक्त संपत्ति की बिक्री के प्रस्ताव में तात्कालिक संभागायुक्त भी शामिल थे।

    उत्तराखंड सरकार ने चेताया था…अपनी संपत्ति बचाओ
    दरअसल कुशावर्त घाट को बेचने का जब विरोध हुआ तो गढ़वाल के संभागायुक्त ने पूरे मामले की जांच कर महत्वपूर्ण तथ्य समेटते हुए पाया कि खासगी ट्रस्ट की 27 जून 1962 को बनी ट्रस्ट डीड में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि विभाजन के पश्चात समस्त खासगी संपत्तियां मध्यप्रदेश शासन में निहित हो गई हैं, अत: उक्त संपत्ति को बेचने का अधिकार किसी ट्रस्ट को नहीं हो सकता। इन तथ्यों के साथ आयुक्त गढ़वाल ने 24 मई 2012 को अपनी रिपोर्ट उत्तराखंड के मुख्य सचिव आलोक जैन को सौंपी और आलोक जैन ने एक पत्र मध्यप्रदेश सरकार के मुख्य सचिव आर. परशुराम को भेजकर लिखा कि खासगी संपत्ति का स्वामित्व मध्यप्रदेश सरकार का होना पाया गया है इसके बावजूद उक्त संपत्ति किसी ट्रस्टी द्वारा बेची जा रही है। इस संबंध में आवश्यक कार्रवाई की जाए।

    घाट की बिक्री का जब विरोध हुआ तो मामले की जांच कर रहे गढ़वाल के आयुक्त कुणाल शर्मा ने आपत्तिकर्ताओं की सुनवाई के दौरान दस्तावेजों का परीक्षण कराया तो पता चला कि संपत्ति विक्रय करने वाले खासगी ट्रस्ट की डीड में ही इस बात का उल्लेख है कि समस्त संपत्तियां मध्यप्रदेश शासन की हैं। उक्त ट्रस्ट डीड में इस बात का कोई प्रावधान नहीं था कि ट्रस्ट संपत्तियों का विक्रय कर सके, संपत्ति के विक्रय के लिए वर्ष 1972 की ट्रस्ट डीड के जिस संशोधन को आधार बनाया जा रहा है उसका परीक्षण करने पर यह भी पाया गया कि ट्रस्ट के प्रमुख ट्रस्टी एससी मल्होत्रा को संपत्ति के विक्रय को अंतिम रूप देने के लिए अधिकृत किया गया था न कि विक्रय या अंतरण के लिए। फिर ट्रस्ट द्वारा बिना सरकार की इजाजत के संपत्ति का विक्रय कैसे किया जा रहा है।

    सेटिंग से लौट आया थानेदार…
    आजाद नगर के कुछ लोगों ने साल भर पहले थाने में पदस्थ थानेदार संजय भदौरिया पर अवैध गतिविधियों के आरोप लगाते हुए शिकायत एडीजी वरूण कपूर से की थी। जिसके बाद थानेदार को आजाद नगर से दूसरे थाने पहुंचा दिया गया। बताया जा रहा है कि भदौरिया दोबारा आजाद नगर थाने में आ गया है। रहवासी एक बार फिर डीआईजी से मामले की शिकायत करेंगे।

    धन्यवाद देना तो दूर जवाब तक नहीं दिया सरकार ने
    उत्तराखंड के मुख्य सचिव आलोककुमार जैन द्वारा मध्यप्रदेश शासन के मुख्य सचिव को 31 जुलाई 2012 को पत्र देकर संपत्तियों के स्वामित्व और विक्रय की जानकारी दी गई, लेकिन सचिव परशुराम द्वारा उत्तराखंड सरकार को धन्यवाद देना तो दूर पत्र का जवाब तक नहीं दिया गया। बाद में अग्निबाण द्वारा उक्त समाचार का लगातार प्रकाशन किए जाने के बाद मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के संज्ञान में जब यह बात लाई गई, तब उन्होंने अपने प्रमुख सहयोगी मनोज श्रीवास्तव को जांच सौंपी। श्रीवास्तव ने जब उत्तराखंड सरकार के पत्र को सहयोगी पाया तो अपनी जांच रिपोर्ट में लिखा कि 6 महीने बीत जाने के बाद भी उत्तराखंड सरकार को हमारे द्वारा कोई उत्तर नहीं दिया गया है। हमें तुरंत आयुक्त गढ़वाल कुणाल शर्मा और शासन को धन्यवाद पत्र देना चाहिए।

    शासन ने जांच में पाया कि ट्रस्ट डीड में संशोधन अवैधानिक
    शासन द्वारा राजस्व मामलों के गहन जानकार इंदौर के पूर्व कलेक्टर मनोज श्रीवास्तव द्वारा सौंपी गई जांच रिपोर्ट में बताया गया कि ट्रस्ट डीड में किया गया संशोधन अवैधानिक है। इस तरह के किसी भी संशोधन के लिए संबंधित विभाग के साथ ही मंत्रिपरिषद की सहमति भी आवश्यक है, लेकिन यह सहमति नहीं ली गई। इसके साथ कोई भी ट्रस्ट या व्यक्ति वही संपत्ति अंतरित कर सकता है, जिसका वह स्वामी हो, लेकिन राज्य शासन में निहित संपत्ति का अंतरण शासन द्वारा ही किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि चूंकि ट्रस्ट में पांच सदस्यों में से सिर्फ दो राज्य शासन के थे तथा राज्य शासन अल्पमत में था, इस कारण सरकार का ट्रस्ट पर कोई नियंत्रण संभव नहीं था। उन्होंने कहा कि ट्रस्ट द्वारा धारा 36 (1) ए के जरिए पंजीयन में ली गई छूट भी मनमानी थी।

    पॉवर ऑफ अटार्नी से ही पॉवर दे डाले मल्होत्रा और सचिव राठौर ने
    आयुक्त गढ़वाल ने ही इस बात पर आपत्ति जताई कि ट्रस्ट के ट्रस्टी सतीशचंद्र मल्होत्रा द्वारा अधिकृत ट्रस्टी के रूप में एक पॉवर ऑफ अटार्नी राघवेन्द्र शर्मा के पक्ष में निष्पादित की गई, जबकि राघवेन्द्र शर्मा ट्रस्ट के लिए अनजान व्यक्ति थे और ट्रस्ट डीड में पॉवर देने का कोई अधिकार नहीं था। इसलिए शर्मा को विक्रय या हस्तांतरण का विधिक अधिकार नहीं मिल सकता। इसके साथ ही ट्रस्ट के सचिव केएस राठौर ने भी पॉवर ऑफ अटार्नी के आधार पर एक पॉवर राघवेन्द्र शर्मा को दे डाला, जबकि पॉवर ऑफ अटार्नी प्राप्त व्यक्ति किसी अन्य को पॉवर नहीं दे सकता। इस आधार पर आयुक्त गढ़वाल द्वारा आपत्ति लेते हुए विक्रय दस्तावेजों को शून्य करने की कार्रवाई की गई।

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