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    अपराध उन्मूलन व भाषा संरक्षण की कवायद

  • October 23, 2020

    – सियाराम पांडेय ‘शांत’

    उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने अपराध नियंत्रण के लिहाज से बड़ा निर्णय लिया है। इससे लोगों को पुलिस प्रशासन तक अपनी समस्याएं बताने और उसका समाधान पाने में मदद मिलेगी, वहीं क्षेत्रीय भाषाओं का संरक्षण और विकास होगा। खड़ी हिंदी में बोलने में उन्हें हिचक होती रही है लेकिन जब उन्हें लगेगा कि फोन सुन रहा व्यक्ति न केवल उनकी भाषा और बोली को जानता है बल्कि उसमें बोल भी सकता है तो वे सहजता से अपनी बात साझा कर सकेंगे। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर पुलिस विभाग ने व्यवस्था की गयी है कि पुलिस सहायता के लिये डॉयल 112 पर फोन कर अपनी समस्या अब फरियादी की अपनी क्षेत्रीय भाषा में बताई जा सकती है। इसके पीछे परस्पर संवाद की प्रक्रिया को और बेहतर बनाने का लक्ष्य है।

    112-यूपी पर फोन करने वाला अब भोजपुरी, अवधी, ब्रज, बुन्देली आदि क्षेत्रीय भाषा में अपनी शिकायत कर सकेगा। अलग-अलग क्षेत्रीय भाषाओं में उत्तर देने के लिए उसी क्षेत्र के संवाद अधिकारियों को 112-यूपी के अधिकारियों द्वारा चुना गया है। इस बहाने 112-यूपी पर मिलने वाली सूचनाओं पर प्राथमिकता से त्वरित कार्यवाही सुनिश्चित करने की व्यवस्था को और अधिक बेहतर बनाने का प्रयास किया जाना है।

    अपर पुलिस महानिदेशक, 112-यूपी असीम अरुण की मानें तो क्षेत्रीय भाषाओं में लोगों से संवाद के लिए आपातकालीन सेवा में संवाद अधिकारियों को विशेष रूप से प्रशिक्षित किया गया है। क्षेत्रीय भाषाओं में पारंगत संवाद अधिकारियों की नियुक्ति से ग्रामीण अंचल से सहायता के लिए कॉल करने वाले लोगों खासकर महिलाओं को अपनी बात बताने में काफी सुविधा होगी। 112-यूपी में रोज 15-17 हजार लोग कॉल करते। इनमें क्षेत्रीय भाषाओं में मदद मांगने वाले लोगों की संख्या अधिक होती है। ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं अपनी क्षेत्रीय भाषा में ही समस्या बताने में सहज महसूस करती हैं। उनकी बातों का जवाब भी जब उनकी ही भाषा में 112 की ओर से दिया जाएगा तो शिकायतकर्ता में पुलिस के प्रति अपनत्व का अहसास होगा।

    गौरतलब है कि दुनिया की 6 हजार भाषाओं में से 4 हजार भाषाएं विलुप्त होने की कगार पर हैं। इसमें दस प्रतिशत वे भाषाएं भी शामिल हैं जो भारत में बोली जाती हैं। भारतीय लोकभाषा सर्वेक्षण टीम की मानें तो भारत की 780 में से 400 भाषाएं अस्तित्वहीनता की ओर अग्रसर हैं। अगर समुचित प्रयास नहीं हुए तो उनका विलुप्त होना तय है। भाषाओं को लेकर वर्ष 1971 में आया फैसला किसी भी भाषाविद और भाषा से प्रेम रखने वाले व्यक्ति के लिए किसी झटके से कम नहीं है। इस फैसले में कहा गया था कि दस हजार से कम लोग अगर किसी भाषा को बोलते हैं तो उस भाषा को पहचान नहीं दी जाएगी। प्रयास इस बात के होने चाहिए कि जो भाषा दस हजार से कम लोग बोलते हैं, उसके जानने और बोलने वालों की संख्या बढ़े।

    पीपुल्स लिंग्विस्टिक ऑफ इंडिया की रिपोर्ट डराने वाली है और वह यह है कि आगामी 5 दशक में भारत की 400 भाषाएं और बोलियां नष्ट हो जाएंगी। कदाचित ऐसा होता है तो यह देश के लिए बेहद अप्रिय और भयावह स्थिति होगी। भाषा का संबंध सभ्यता और संस्कृति से सीधे तौर पर होता है। अगर संस्कृति और सभ्यता को बचाना है तो भाषाओं और बोलियों के संरक्षण की जुगत तलाशनी होगी।

    उत्तर प्रदेश में मूलत: कौरवी यानी खड़ी बोली, ब्रजभाषा, कन्नौजी, बुंदेली, अवधी, भोजपुरी और बघेली बोली जाती है। कौरवी मेरठ, मुरादाबाद, बिजनौर, शामली, गौतमबुद्धनगर, रामपुर, बागपत और सहारनपुर जिलों में बोली जाती है तो ब्रजभाषा के क्षेत्र मथुरा, अलीगढ़, बदायूं, आगरा, मैनपुरी और बरेली आदि जिले हैं। बघेली अगर बांदा, चित्रकूट, सोनभद्र और इलाहाबाद से सटे इलाकों रीवा सतना में प्रमुखता से बोली जाती है तो बुंदेली का प्रभाव झांसी, जालौन, ललितपुर और महोबा में देखने को मिलता है। कन्नौजी भाषा कानपुर, कन्नौज, पीलीभीत, हरदोई, फर्रुखाबाद और इटावा में बोली जाती है। अवधी अगर लखनऊ, गोंडा, बस्ती, फैजाबाद, रायबरेली, बहराइच, श्रावस्ती, प्रतापगढ़, प्रयागराज, मिर्जापुर, उन्नाव, लखीमपुर खीरी, सुल्तानपुर, कानपुर और बलरामपुर जिलों में बोली जाती है तो भोजपुरी गोरखपुर, बस्ती, बलिया, देवरिया, वाराणसी, आजमगढ़, मऊ, जौनपुर, सिद्धार्थनगर और अंबेडकरनगर आदि जिलों में बोली जाती है। पुलिस का अगर क्षेत्रीय बोलियों ने जनता से संवाद का सिलसिला परवान चढ़ता है तो यह उत्तर प्रदेश में भाषाओं के संरक्षण में मील का पत्थर साबित होगा।

    भारत में मुख्य रूप से कुल 18 बोलियां हैं, जिनमें अवधी, ब्रजभाषा, कन्नौजी, बुंदेली, बघेली, हड़ौती, भोजपुरी, हरयाणवी, राजस्थानी, छत्तीसगढ़ी, मालवी, नागपुरी, खोरठा, पंचपरगनिया, कुमाउंनी, मगही आदि प्रमुख हैं। इनमें से कुछ में अत्यंत उच्च श्रेणी के साहित्य की रचना हुई है। ऐसी बोलियों में ब्रजभाषा और अवधी प्रमुख हैं। यह बोलियां हिन्दी ही नहीं, देश की भी विविधतामूलक शक्ति हैं। इनकी उपेक्षा किसी भी लिहाज से उचित नहीं है। ये भाषाएं और बोलयां ही देश को अनेकता में एकता के सूत्र देती हैं। वे अगर हिन्दी की जड़ों को गहरा बनाती हैं तो देश को मजबूती भी प्रदान करती हैं।

    उत्तर प्रदेश में सरकार ने डायल-112 में विभिन्न क्षेत्रीय भाषा के जानकार संवाद अधिकारियों की तैनाती कर और क्षेत्रीय भाषाओं में संवाद की नई पहल कर जो नायाब काम किया है, उसकी न केवल सराहना होनी चाहिए बल्कि इस तरह की पहल अन्य राज्यों में भी शुरू की जानी चाहिए जिससे अपराध पर तो अंकुश लगे ही, क्षेत्रीय भाषाओं को भी संबल मिले।

    (लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

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