नई दिल्ली (New Delhi) । टीके (Vaccines) या फिर किसी उपचार की खोज (treatment search) के लिए बच्चे (children), किशोर (teens) और बुजुर्गों (elderly) पर वायरस का प्रयोग अब गैरकानूनी (illegal) होगा। केवल 18 से 45 वर्ष की स्वस्थ आबादी पर ही ट्रायल किया जा सकेगा। ट्रायल में प्रतिभागी बनाने से पहले वैज्ञानिकों के दल या फिर फार्मा कंपनी को सभी का बीमा भी कराना होगा। साथ ही, अध्ययन के दौरान उन्हीं जीवित विषाणुओं से प्रतिभागियों को संक्रमित किया जाएगा, जिनका दुष्प्रभाव होने पर दवा या इलाज उपलब्ध हो।
आगामी दिनों में यह सभी नियम नियंत्रित मानव संक्रमण अध्ययन (सीएचआईएस) पर लागू होंगे। नई दिल्ली स्थित भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने नियमों का मसौदा तैयार किया है जो न सिर्फ देश के मेडिकल कॉलेजों, बल्कि सभी शोध केंद्र और निजी कंपनियों पर लागू होगा। आईसीएमआर के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, भारत में हर साल 30% मौतें संक्रामक रोगों से हो रही हैं। अभी तक नियंत्रित मानव संक्रमण अध्ययन काफी सीमित हैं, लेकिन इन्हें बढ़ावा मिलना जरूरी है, क्योंकि इनसे बेहतर परिणाम मिल सकते हैं। सरकार ने अब इन अध्ययनों को नियम कानून के दायरे में लाने की प्रक्रिया शुरू की है। इसमें बच्चे, किशोर और बुजुर्ग शामिल नहीं होंगे।
भारत में नई है प्रक्रिया
सीएचआईएस में एक स्वस्थ व्यक्ति को जानबूझकर रोगजनकों के संपर्क में लाया जाता है। यानी सामान्य भाषा में कहें तो व्यक्ति पर जीवित विषाणु का प्रयोग किया जाता है, ताकि मनुष्यों में संक्रामक रोगों के रोगजनक, संचरण, रोकथाम और उपचार की समझ को बढ़ावा दिया जा सके। भारत में अभी यह प्रक्रिया काफी नई है। हालांकि, दुनिया के कई देश इस मॉडल पर डेंगू, मलेरिया, जीका वायरस जैसी संक्रामक बीमारियों को लेकर खोज कर रहे हैं।
अभी तक दो बार अध्ययन
हाल ही में केंद्र सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) ने नियंत्रित मानव संक्रमण मॉडल का उपयोग करके नए इन्फ्लूएंजा टीके विकसित करने का प्रस्ताव दिया है। इससे पहले, हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक कंपनी ने टाइफाइड का टीका विकसित करने के लिए इस मॉडल का उपयोग किया है।
संस्थान में होगा अध्ययन
मसौदे में शामिल नए नियमों के अनुसार, जरूरी है कि इस तरह का अध्ययन केवल किसी संस्थान में ही होना चाहिए। जहां भी यह अध्ययन होगा वहां एक उच्च स्तरीय प्रयोगशाला और अस्पताल होना जरूरी है। जिन वैज्ञानिक या शोधकर्ताओं को क्लीनिकल ट्रायल का अनुभव होगा, उन्हीं को इसकी अनुमति दी जाएगी।
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