नई दिल्ली। इंडोनेशियाई द्वीप (Indonesian island) बाली में जी-20 समिट के दौरान वहां के राष्ट्रपति मेहमान नेताओं से दावत का आनंद लेने की मनुहार करते दिखे. हमारे घरों पर डिनर (Dinner) के दौरान ये अक्सर होता है, लेकिन नेताओं की मुलाकात में इसके मायने अलग हैं. इंटरनेशनल डिप्लोमेसी (international diplomacy) में दो लीडर जब मिलते हैं, तो सबसे बेतल्लुफ पल वही होते हैं, जब वे डिनर टेबल पर मिलें. खाना बढ़िया हो, तो दोस्ती की गुंजाइश बढ़ जाती है. यानी खाने की थाली भी एक तरह का खुफिया हथियार ही है.
जो पसंद है, वही परोसेंगे
किसी बड़े सम्मेलन या विदेशी नेताओं (foreign leaders) के आने पर मेजबान मुल्क पूरी एहतियात से मेन्यू तैयार करता है. पता किया जाता है कि लीडर को क्या पसंद है, वो कितना मसाला खाता है. उसे शाकाहारी भोजन पसंद है, सी-फूड. किसी खास मसाले या गंध से एलर्जी तो नहीं. यहां तक कि उसके खाने का टाइम भी देखा जाता है, उसी के मुताबिक डिनर या लंच टाइम सेट किया जाता है.
ये सब इसलिए कि आने वाली मुलाकात गर्मजोशी से भरी रहे. ऐसे में इंडोनेशियाई राष्ट्रपति अलग मसालों की बात करते दिखे तो कुछ अजीब नहीं.
आइए, जानते हैं कि कैसे थाली दुनिया के सबसे पुराने डिप्लोमेटिक टूल (diplomatic tool) में शामिल हो गई. और कैसे कई बार डिनर टेबल पर ही युद्ध का खाका खिंचते-खिंचते रहा.
बात है साल 1992 की, जब अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज एचडब्ल्यू बुश एशियाई दौरे (US President George HW Bush Asian Tour) पर थे. इसी बीच उनका जापान जाना हुआ. दावत शुरू हुई. अमेरिकी रीत के मुताबिक खाना किश्तों में परोसा जा रहा था. फर्स्ट कोर्स ठीक-ठाक रहा. जापानी नेता (Japanese leader) और अमेरिकी नेता साथ-साथ खा-मुस्कुरा रहे थे कि तभी बुश ने टेबल पर उल्टी कर दी.
थाली में ग्रिल्ड रेड मीट के साथ काली मिर्च वाला सॉस पड़ा था और दूसरी तरफ अमेरिका जैसे ताकतवर देश का राष्ट्रपति दनादन उल्टियां किए जा रहा था. थोड़ी देर बाद ही दोनों देशों की मीडिया के सामने ये बयान जारी हो गया कि खाना तो शानदार था, बस राष्ट्रपति फ्लू (presidential flu) से परेशान थे.
महंगी मछली का अंडा बना गले की हड्डी
ऐसा ही एक किस्सा अमेरिका में बराक ओबामा कार्यकाल के दौरान हुआ. ओबामा ने फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रेंकॉइस हॉलेंड को खाने का न्यौता दिया हुआ था. खूब ध्यान से मेन्यू तैयार हुआ, बस एक गड़बड़ हो गई. डिनर के लिए महंगी मछली के अंडे मंगाए गए. फ्रांसीसी राष्ट्रपति सोशलिस्ट सरकार के थे, जो महंगी चीजों से परहेज करते. मछली के अंडे चाहे जितने स्वादिष्ट रहे हों, उन्हें खाना फ्रेंच सरकार पर भारी पड़ सकता था. लिहाजा, खाना तो खाया गया, लेकिन मेन्यू से अलग.
दुनिया का सबसे ताकतवर देश अमेरिका फूड डिप्लोमेसी का खूब सहारा लेता रहा. कुछ साल पहले यहां अमेरिकी शेफ कॉर्प्स बना. अमेरिका के टॉप शेफ इसका हिस्सा हुए, जिनका काम था अलग-अलग राज्यों के अमेरिकी व्यंजनों को पूरी दुनिया के नेताओं तक पहुंचाना. कैसे? डिनर टेबल पर. ये नेवी ब्लू कपड़े पहनते, जिसपर अमेरिकी झंडा होता, साथ में उनका नाम सुनहरे अक्षरों में खुदा होता. ये मामूली रसोइया नहीं, बल्कि अमेरिका का एक हथियार बन गए.
इस तरह का चलता-फिरता हथियार लगभग हर बड़े-छोटे देश के पास है. छोटे-से-छोटा मुल्क भी अपने खास शेफ रखता है, जिसका काम डिप्लोमेटिक भेंट-मुलाकात में आने वाले विदेशी मेहमानों को जमकर खिलाना है. इन रसोइयों का नाम बहुत कम ही सामने आ पाता है ताकि सेफ्टी में कोई बाधा न पड़े.
हमारे यहां बन चुका है कुंदरू का सूप
भारत की बात करें तो यहां आने वाला लगभग हर विदेशी लीडर राष्ट्रपति से जरूर मिलता है. राष्ट्रपति भवन में लगभग 8 सालों तक एग्जीक्यूटिव शेफ रह चुके मछिंद्र कस्तुरे ने मेन्यू में कई अनोखी चीजें शामिल कीं, जैसे कुंदरू का सूप. बता दें कि भूतपूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल डायबिटिक थीं, और इलाज के लिए रोज कुंदरू खाया करतीं. कुंदरू की सब्जी कोई कितनी खाए, ये देखते हुए कस्तुरे ने इसका सूप तैयार कर डाला. ये सूप कई डिप्लोमेटिक मीटिंग्स के दौरान भी परोसा गया और सराहा गया.
बढ़िया खिलाकर, बढ़िया रिश्ता बनाने की ये नीति कितनी कारगर होती है, इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि कुछ साल पहले मिनिस्ट्री ऑफ एक्सटर्नल अफेयर्स ने डिप्टोमेट्स के साथ-साथ उनके पार्टनर्स को भी मेज पर बैठने की ट्रेनिंग देने की बात की थी. फॉरेन सर्विस इंस्टीट्यूट ने कहा कि अफसरों के अलावा उनके जीवनसाथी भी अक्सर डिनर में शामिल होते हैं, तो उन्हें भी इसकी ट्रेनिंग मिलनी चाहिए. उन्हें पता होना चाहिए कि नेताओं या ब्यूरोक्रेट्स के साथ खाने की टेबल शेयर करते वक्त कैसा व्यवहार रहे.
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