वॉशिंगटन डीसी। अमेरिकी कोर्ट ने डोनाल्ड ट्रंप के उस फैसले को रद्दी की टोकरी में डाल दिया है, जिसमें उन्होंने एच1 वीजा पर बैन लगा दिया था। कोर्ट के इस फैसले के लिए जमीन भारतीय मूल के जज अमित मेहरा ने तैयार की थी, जिन्होंने डोनाल्ड ट्रंप के वीजा बैन के फैसले पर ये कहा था कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को वीजा या अप्रवासन संबंधी फैसला लेने का अधिकार है ही नहीं।
कोलंबिया के डिस्ट्रिक्ट जज अमित मेहरा ने अगस्त में मामले की सुनवाई के दौरान कहा था कि डोनाल्ड ट्रंप को वीजा बैन का फैसला लेने का अधिकार ही नहीं है. उस समय इस मामले की सुनवाई चल रही थी, जिस पर अब कैलिफोर्निया के डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के जज जैफ्रे ह्वाइट ने फैसला सुनाते हुए डोनाल्ड ट्रंप के आदेश के खिलाफ फैसला दिया है।
डिस्ट्रिक्ट जज जैफ्रे ह्वाइट ने कहा कि अमेरिका का संविधान कांग्रेस यानि संसद के प्रति उत्तरदायी है, न कि राष्ट्रपति के प्रति. उन्होंने संविधान के आर्टिकल 1 का जिक्र करते हुए कहा कि इमिग्रेशन पॉलिसी पर फैसला लेने का अधिकार कांग्रेस को है, राष्ट्रपति को सीधे तौर पर ये फैसला लेने का अधिकार नहीं है।
हालांकि आर्टिकल 2 के तहत राष्ट्रपति ऐसा फैसला ले सकते हैं, लेकिन वो फैसला राष्ट्रीय सुरक्षा पर खतरे के तहत हो सकता है, रोजगार को आधार बनाकर नहीं. उन्होंने कहा कि डोनाल्ड ट्रंप ने जो आदेश जारी किया, वो राजशाही जैसा था। जबकि अमेरिका लोकतांत्रिक देश है और इमिग्रेशन पॉलिसी जैसे मामलों पर कांग्रेस की सहमति के बिना ऐसे आदेश जारी ही नहीं किए जा सकते। 25 पन्नों के अपने फैसले में उन्होंने कहा कि डोनाल्ड ट्रंप के फैसले के लिए उचित माहौल नहीं था।
डोनाल्ड ट्रंप ने जून माह में ये कहते हुए एच1-बी, एच-2बी, एल और जे वीजा जारी करने पर रोक लगा दी थी कि इससे अमेरिकी नागरिकों के हितों की रक्षा होगी और उन्हें रोजगार मिलेगा। ट्रंप ने कोरोना महामारी की वजह से अमेरिकी नागरिकों की बेरोजगारी खत्म करने के लिए ये कदम उठाया था।
उन्होंने कहा था कि इस फैसले से अमेरिकी नागरिकों को वो नौकरियां मिल सकेंगी, जिन्हें बाहर से आए लोग करते थे और हमारे नागरिक बेरोजगार रह जाते थे। उनके इस फैसले के खिलाफ कोर्ट में अपील की गई थी, जिसके बाद अब ये साफ हो गया है कि डोनाल्ड ट्रंप का फैसला कानूनी तौर पर गलत था।
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