नई दिल्ली। अमेरिका (America) में नई सरकार (Goverment) बनने के बाद गुरुवार को पहली बार चीन (China) के साथ एक उच्चस्तरीय बैठक हुई और इसमें दोनों देशों के अधिकारी आपस में ही भिड़ गए। इस बात के कयास पहले से लगाए जा रहे थे कि ट्रंप (Trump) के वक्त में चीन और अमेरिका के रिश्ते जैसे थे, उससे भी खराब बाइडेन (Baiden) की सरकार में होंगे। गुरुवार को अलास्का में बैठक शुरू होते ही दुनिया (Duniya) के दोनों बड़े प्रतिद्वंद्वी सार्वजनिक रूप से आपस में भिड़ गए।
अमेरिका ने इस बैठक में चीन पर आरोप लगाया कि वह मीटिंग के नियमों का उल्लंघन कर रहा है। इस बैठक को लेकर पहले से ही कलह का अंदेशा था। राजनयिकों का पहले से ही कहना था कि अमेरिका अगर सोचता है कि चीन अपने रुख में कोई तब्दीली लाएगा तो यह उसका भ्रम है। इस बैठक में अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सलिवन और चीन के शीर्ष राजनयिक यांग जिएची और स्टेट कॉउंसलर वांग यी भी मौजदू थे। इस बैठक में दोनों देशों के बीच तीखी कहासुनी हुई।
ब्लिंकेन ने चीनी राजनयिकों के सामने ही दो टूक कहा, ‘हम शिनजियांग, हॉन्ग कॉन्ग, ताइवान में चीन के कृत्यों, अमेरिका पर साइबर हमले और हमारे सहयोगियों को व्यापार को लेकर धमकाने की चीन की प्रवृत्ति को लेकर गहरी चिंता जाहिर करते हैं।’
ब्लिंकेन ने कहा, इनमें से चीन की हर एक गतिविधि ने वैश्विक स्थिरता को बनाए रखने वाली नियम आधारित व्यवस्था को खतरे में डाला है। यांग ने भी चीनी भाषा में 15 मिनट तक अमेरिका को जवाब दिया। यांग ने कहा कि अमेरिका का लोकतंत्र खतरे में है और अल्पसंख्यकों के साथ बुरा बर्ताव हो रहा है। चीनी राजदूत यांग ने अमेरिका की विदेश नीति और व्यापार नीति को लेकर भी सवाल उठाए।
यांग ने कहा, अमेरिका अपनी सैन्य और आर्थिक ताकत का इस्तेमाल दूसरे देशों में दखल देने और उन्हें दबाने में करता है। अमेरिका कथित राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर सामान्य व्यापार में रुकावट डालता है और कुछ देशों को चीन पर हमला करने के लिए उकसाता है।
यांग ने कहा, अमेरिका इस योग्य नहीं है कि वो चीन के सामने बोल सके। बल्कि चीन के बारे में ऐसी बातें कहने के लिए अमेरिका 20-30 साल पहले भी हैसियत में नहीं था। यांग ने कहा कि चीन के लोगों से बात करने का ये तरीका नहीं हो सकता है।
यांग की टिप्पणी सुनकर ब्लिंकेन ने पत्रकारों को कमरे में ही रुकने दिया ताकि वे उनका जवाब भी सुनें। अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सलिवन ने कहा कि अमेरिका चीन के साथ टकराव नहीं चाहता है लेकिन वो अपने सिद्धांतों और अपने दोस्तों के लिए जरूर खड़ा होगा। उन्होंने कहा कि अमेरिका लगातार नई संभावनाएं तलाशता रहता है और मार्स रोवर लैंडिंग की सफलता इसका उदाहरण है। आम तौर पर ऐसी उच्च स्तरीय वार्ता की शुरुआती औपचारिकताएं बस चंद मिनटों की होती हैं लेकिन इस बैठक में दोनों देशों के प्रतिनिधिमंडल एक घंटे से ज्यादा एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते रहे।
अमेरिका के एक शीर्ष अधिकारी ने कहा कि चीन ने बैठक शुरू होते ही प्रोटोकॉल का उल्लंघन कर दिया था। नियमों के मुताबिक, शुरुआती संबोधन दो मिनट तक सीमित होता है लेकिन चीनी प्रतिनिधिमंडल ने तथ्यों से ज्यादा नाटकीय घटनाक्रमों पर जोर दिया। अमेरिकी अधिकारी ने कहा कि बैठक योजना के मुताबिक जारी रहेगी। उन्होंने कहा कि अक्सर इस तरह की बातें अपने देश के लोगों को ध्यान में रखते हुए की जाती हैं।
रिपब्लिकन पार्टी के सदस्य कई बार ये आशंका जाहिर कर चुके हैं कि बाइडेन सरकार चीन को लेकर आक्रामक नहीं रहेगी। हालांकि, बाइडेन की चीन को लेकर नीति अभी तक पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हुई है, खासकर टैरिफ और व्यापार को लेकर। लेकिन लोकतंत्र और मानवाधिकार के मुद्दे पर बाइडेन सरकार का रुख बेहद सख्त नजर आ रहा है।
अमेरिका का कहना है कि चीनी अधिकारियों के साथ बैठक से पहले ब्लिंकेन का एशिया दौरा ये दिखाता है कि चीन से निपटने की रणनीति में अमेरिका, यूरोप, भारत और अन्य सहयोगियों के साथ अपने रिश्ते मजबूत करने को लेकर कितना गंभीर है। इस बातचीत से पहले अमेरिका ने चीनी टेलिकॉम कंपनियों के लाइसेंस रद्द करने शुरू कर दिए थे और हॉन्ग कॉन्ग मुद्दे पर भी नए प्रतिबंधों का ऐलान किया था। यांग ने ब्लिकेंन से गुरुवार को सवाल किया कि क्या जानबूझकर बैठक से पहले नए प्रतिबंधों का ऐलान किया गया?
यांग ने कहा, मुझे लगता है कि हमने अमेरिका के बारे में अच्छा सोचा और हमें लगा कि अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल प्रोटोकॉल का पालन करेगा। यांग ने कहा, चीन अपने आंतरिक मामलों में अमेरिका के हस्तक्षेप का कड़ा विरोध करता है। अमेरिका को अपने मामले देखने चाहिए और चीन को अपने मुद्दे। सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक ऐंड इंटरनेशनल स्टडीज में एशिया मामलों के जानकार बोन्नी ग्लेसर का कहना है कि बैठक में दोनों देशों की भिड़ंत ने इस आशंका को मजबूत कर दिया है कि आरोप-प्रत्यारोप और बढ़ेंगे और दोनों पक्षों की शर्तें भी कड़ी होंगी। इस बैठक की असफलता से किसी भी पक्ष को फायदा नहीं होने वाला है।
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