जो तूफ़ानों में पलते जा रहे हैं
वही दुनिया बदलते जा रहे हैं।
कैंसर जैसे खतरनाक जानलेवा मर्ज का नाम सुनते ही अच्छे-अच्छों के होश फाख्ता हो जाते हैं। मैं आपका तार्रुफ भौपाल की उस खातून से करा रहा हूं जिसने कैंसर को एक नहीं 3 बार मात दी है। इस कैंसर वारियर का नाम है उर्मिल गुप्ता। गेस राहत महकमे से सुबुकदोष (रिटायर्ड) हो चुकीं उर्मिल जरा अलग मिट्टी की बनी हैं। इनके शौहर बीएचईएल से रिटायर्ड अनिल गुप्ता इनका हर कदम पे साथ देते हैं। मिनाल रेसीडेंसी में रोज-322 नम्बर के बंगले पे जिसकी भी नजर पड़ती है वो कुछ देर उसे देखता ही रह जाता है। घर के इस अनूठे फलसफे पे आगे बात करेंगे पेले उर्मिल गुप्ता की कैंसर से लड़ाई का जिक्र कर लेते हैं। साल 2004 में इनकीं जिन्दगी में तब भूचाल आ गया जब बायप्सी टेस्ट में इन्हें कैंसर डायग्नोज हुआ। फिर शुरु हुआ तकलीफदेह कीमो और रेडिएशन का सिलसिला। इस दरम्यान भयंकर रूहानी और जिस्मानी दर्द को बर्दाश्त करते हुए जिन्दगी के दिन कटने लगे। कोई 2 बरस में उर्मिल ने अपनी हिम्मत और वक्त पे इलाज से बीमारी पे जीत हासिल कर ली। जैसे तैसे जिन्दगी की गाड़ी पटरी पे आई ही थी के साल 2008 में कैंसर रिलेप्स हो गया। फिर इलाज का दौर चला। उर्मिल ने तय किया के मुझे जीना है और हर हाल में कैंसर को हराना है। इसका फायदा हुआ और कैंसर हार गया और उर्मिल जीत गईं। इस दरम्यान बीमारी से ध्यान हटाने की नीयत से इन्होंने अपने घर पर ही कबाड़ से जुगाड़ और बेस्ट आउट ऑफ वेस्ट कॉन्सेप्ट पे काम शुरू कर दिया।
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