औरों को क्या परखूं आइना-ए-आलम में
मुहताज-ए-शनासाई जब अपना ही चेहरा है।
भोपाल के मशहूर और दानिश्वर उर्दू सहाफी (पत्रकार) मुशाहिद सईद खान साहब इन दिनों सख्त अलील (बीमार) हैं। सहाफत को अपना अज़्म (कमिटमेंट) और खिदमते ख़ल्क़ का जरिया मानने वाले मुशाहिद भाई गुजिश्ता कुछ अरसे से यूरोलॉजिकल (मूत्र संबंधी) दिक्कतों से जूझ रहे थे। लेकिन खुद की बजाए मआशरे की ज़्यादा फि़कर करने के जज़्बे के चलते मजऱ् कुछ ज़्यादा ही बढ़ गया। बदकिस्मती से जिस तजरबेकार डाक्टर को दिखाया उसकी दवा से रिएक्शन हो गया और सहाफी की हालत तश्वीकनाक हो गई। लिहाज़ा ये शाहजहानाबाद के एक प्राइवेट अस्पताल में दाखिल हुए। यहां यूरिनरी ट्रेक्ट इंफेक्शन के इलाज के दौरान की गई सोनोग्राफी में इनकी एक आंत में ओवरलेपिंग भी पाई गई। इस दरम्यान मुशाहिद भाई तेज़ बुखार के चलते बहुत लागिर (कमज़ोर) हो गए। अपने अहलेखाना (परिवार) की जि़म्मेदारी निभाते हुए ये सरकारी हेल्थ बीमा का प्रीमियम नहीं भर सके थे। सो, इलाज का भारी भरकम खर्च भी इन्हें ही उठाना पड़ रहा है।
वैसे भी एक निहायत ईमानदार सहाफी की माली हालत बहुत लिमिटेड होती है। डाक्टरों के मुताबिक इंफेक्शन से बरी होने में अभी इन्हें हफ्ता दस दिन और अस्पताल में दाखिल रहना होगा। उधर आंत में सूजन का इलाज पहले दवाओं से किया जाएगा। गर फायदा नहीं हुआ तो सर्जरी करना होगी। कमसुखन मुशाहिद भाई आमतौर से अपना दर्द किसी से नहीं कहते। वो बहुत खामोशी और नफासत के साथ पत्रकारिता करने के लिए जाने जाते हैं। उन्हें 37 बरस इस पेशे में हो गए हैं। उर्दू एक्शन और आफताब-ए-जदीद में मुलाज़मत के बाद इन दिनों ये उर्दू अखबार नदीम में स्पेशल कोररस्पोंडेंट हैं। सहाफत के इस तवील सफर में सैकड़ों नेता-अभिनेताओं और तमाम खास-ओ-आम को तवज्जो देने वाले पत्रकार को इस मुसीबत का सामना अकेले ही करना पड़ रहा है। अलबत्ता विधायक आरिफ मसूद भर ने ही इनसे राब्ता किया है। शुस्ता उर्दू और अपनी धारदार खबरों के लिए उर्दू सहाफत में नाम कमाने वाले इस ईमानदार सहाफी की मदद के लिए उर्दू इदारों और सरकार को पहल करनी चाहिए। मुशाहिद भाई आप जल्द सहत्याब हों सूरमा येई दुआ करता है।
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