भोपाल। प्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव का घमासान तेज हो गया है। सभी दलों के प्रत्याशी घोषित हैं। यहां तक कि वोटरों के घरों की कुंडी भी सुबह से लेकर देर शाम तक खटकाई जाने लगी हैं, पर इन सबके बाद भी चुनावी मैदान से प्रमुख मुद्दे गायब हैं। न युवाओं की बात हो रही है, न रोजगार की, कर्मचारी भी चर्चा में नहीं हैं। बिजली, पानी, सड़क, शिक्षा की बात भी नहीं हो रही है। वहीं पिछली बार के चुनाव में जो दावे किए गए थे वे भी हवा में विलीन हो गए हैं। प्रदेश में इस बार पहली मर्तबा ऐसा हो रहा है कि नगरीय निकाय चुनाव मुद्दा विहीन हैं। पिछली बार की तरह इस बार न तो सड़क है और न ही पानी और बेरोजगारी। कर्मचारियों के मुद्दे तो कहीं दिखाई ही नहीं दे रहे हैं। असल मुद्दों से भटक कर इस बार सब वादों की खिचड़ी में मुफ्त का घी डाल रहे हैं। बात ठीक भी है, जब मुफ्त की ही खिचड़ी बनानी है तो उसमें फिर घी की कमी क्यों रखी जाए।
अभी तक घोषणा पत्र पेश नहीं
चुनाव मैदान में किस्मत आजमा रहे प्रत्याशी मतदाताओं को रिझाने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं। राजनीतिक दलों की सक्रियता भी तेज हो सभाए, रोड-शो जारी हैं, लेकिन इन कन चुनावों में बड़े मुद्दे दरकिनार हैं। न युवाओं की बात हो रही है, न रोजगार की। किसान और कर्मचारी भी चर्चा में नहीं हैं। स्थानीय मुद्दे भी गायब ही हैं। चुनावी सभाओं में नेता एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप जरूर लगाते हैं, लेकिन मुद्दों के मामले में गंभीर नहीं दिखते। बड़े दलों ने तो इस चुनाव के लिए घोषणा-पत्र पेश करने का वादा किया था, लेकिन कोई भी दल अभी तक घोषणा पत्र पेश नहीं कर सका।
मूलभूत मुद्दे भी गायब
हैरानी की बात यह है कि इस बार के चुनाव में मूलभूत मुद्दे भी पूरी तरह गायब हैं। निकाय चुनावों में सड़क, बिजली, पानी, किसानी से जुड़े मुद्दों पर चर्चा होती है, मगर इस बार ऐसा नहीं है। भोपाल की बात करें तो यहां जल कर बढ़ा दिया गया, लेकिन आधी आबादी आज भी रोजाना पेयजल के लिए तरस रही है। अन्य शहरों की भी कुछ ऐसी ही स्थिति है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, राजधानी भोपाल में 25.47 फीसदी आबादी झुग्गी में रहती है। गरीबी के लिहाज से देखें तो मध्यप्रदेश में 36.65 प्रतिशत आबादी की स्थिति ठीक नहीं है। इस पर बात नहीं। ज्यादातर शहरों में स्मार्ट सिटी के नाम पर शुरू किए गए काम आज भी आधे अधूरे बड़े शहरों में ही प्रोजेक्ट पूरे नहीं हो सके। नालों का चैनलाइजेशन नहीं हो पाया, बारिश के दिनों में इन्हीं नालों से शहरों में बाढ़ के हालात पैदा होते हैं। नगरीय निकायों को पूरी तरह अतिक्रमण मुक्त किए जाने की बात होती है, पर यह कम होने के बजाय बढ़े हैं। सड़कें कई जगह ऊबड़ खाबड़ हैं। गड्ढे भी समय रहते नहीं भरे जाते बारिश के दिनों में जनता की परेशानी बढ़ जाती है। लेकिन इन पर कोई बात नहीं हो रही है।
शहरों में कई समस्याएं
प्रदेश के शहरों और नगरों में समस्याओं का अंबार लगा हुआ है। लेकिन चुनाव प्रचार के दौरान नेता इन पर बात ही नहीं कर रहे हैं। प्रदेश के शहरों का लगातार आकार बढ़ रहा है। ऐसे में एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचने के लिए दूरी भी बढ़ी है। लेकिन सुव्यस्थित शहरी परिवहन सेवा लोगों को आज तक मुहैया नहीं हो सकी है। गर्मी के असर से इस बार किसानों की फसलें खराब हुई है, लेकिन कृषि विभाग के पास बीमा या मुआवजे के लिए कोई योजना नहीं है। नेताओं के भाषणों में किसानी का कोई जिक्र नहीं है। प्रदेश में बेरोजगारों की संख्या भी लाखों में है। चयनित शिक्षक नियुक्ति के लिए परेशान हैं। निकाय चुनाव में नेताओं के लिए यह मुद्दा खास नहीं है। वे एक-दूसरे पर आरोप मढ़ रहे हैं। रिटायर मुख्य सचिव केएस शर्मा का कहना है कि शहर सरकार का गठन होना है, इसलिए उम्मीदवारों दलों को यह बताना चाहिए कि उनका विकास का क्या एजेंडा होगा। किस तरह काम करेंगे। लोगों की उम्मीद का रहती है कि शहर का बेहतर विकास हो। स्थानीय समस्याओं पर भी ध्यान दिया जाना जरूरी है। यह चुनाव दलगत आधार पर होते हैं, इसलिए दलों की जिम्मेदारी भी बन जाती है. लेकिन अभी तक चुनाव में ऐसा कुछ देखने को नहीं मिला।
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