भोपाल। मध्य प्रदेश के 28 विधासभा क्षेत्र में हो रहे उपचुनाव के अंतिम दौर में राजनीतिक परिदृश्य बदलता दिख रहा है। ग्वालियर-चंबल संभाग में बहुजन समाज पार्टी के नेता उत्साहित हैं। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रमाकांत पिप्पल और राष्ट्रीय कोआर्डिनेटर रामजी गौतम की सभाओं में उमड़ रही भीड़ से पार्टी नेता मान रहे हैं कि इस बार बसपा का परंपरागत मतदाता उनका समर्थन करेगा। पार्टी की चुनावी सभाओं में दिख रही भीड़ से भाजपा और कांग्रेस में भी बेचैनी है। बसपा का जनाधार मजबूत होने से नतीजे किस ओर जाएंगे, इसका समीकरण बैठाना दोनों प्रमुख दलों के लिए मुश्किल हो रहा है। इस बार के उपचुनाव यह तय करेंगे कि प्रदेश में सत्ता किस दल की रहेगी। इसे देखते हुए संघर्ष आम चुनाव की तरह हो गया है। भाजपा-कांग्रेस प्रमुख प्रतिद्वंदी हैं। तीसरे मोर्चे में बसपा ही इन्हें सीमित क्षेत्र में टक्कर दे रही है। अन्य दल मैदान में तो हैं, लेकिन नतीजों को प्रभावित करने की क्षमता नहीं हैं।समाजवादी पार्टी के दो उम्मीदवार तो मैदान ही छोड़ चुके हैं। इनमें से एक अंबाह सीट से पूर्व विधायक बंशीलाल जाटव भाजपा तो मेहगांव विधानसभा सीट से भानूप्रताप गुर्जर कांग्रेस के पक्ष में आ गए हैं। सपा के बाकी के प्रत्याशी औपचारिक रूप से चुनावी मैदान में हैं। उधर, इस बार निर्दलीयों की संख्या भी अच्छी-खासी है। वे चुनाव जीतने की स्थिति में तो नहीं दिख रहे, लेकिन कुछ हजार वोट भी हासिल कर लिए तो प्रमुख दलों की जीत-हार के समीकरण गड़बड़ा जाएंगे। पिछले चुनाव में पहुंचे थे 30 हजार तक 2018 के विधानसभा चुनाव में निर्दलीयों ने कुछ जगह दमखम दिखाया था। अंबाह, ब्यावरा और बमोरी में निर्दलीयों को दस से करीब 30 हजार तक वोट मिले थे। अन्य कई जगह इन्होंने पांच हजार से अधिक मत प्राप्त किए थे। इस बार 179 निर्दलीय मैदान में हैं। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि उपचुनाव में राज्यसभा सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थकों के भाजपा की ओर से चुनाव मैदान में होने से हालात परंपरागत नहीं हैं। निर्दलीयों के एक-दो हजार वोट भी बड़ा संकट खड़ा कर सकते हैं। इन्हें मिलने वाले वोट से भाजपा या कांग्रेस किसे नुकसान या फायदा होगा, इसका अनुमान लगाना फिलहाल आसान नहीं है। सभी के अपने-अपने दावे उपचुनाव को लेकर सभी दल अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे हैं। बसपा नेता किंगमेकर होने की उम्मीद पाले हुए हैं तो कांग्रेस को सत्ता में वापसी और भाजपा को सत्ता बरकरार रहने का भरोसा है। अपने दो नेताओं के चुनाव मैदान से हटने पर सपा नेता दोनों ही दलों पर आरोप लगा रहे हैं।
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