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    UP: योगी कैबिनेट में किन मंत्रीयों को मिल सकती है जगह? यह रही मंत्रीमडल की संभावित सूची

  • March 14, 2022

    उत्तर प्रदेश(Uttar Pradesh) में बंपर जीत के बाद योगी आदित्यनाथ का दिल्ली दौरा सोमवार शाम पूरा हो जाएगा। दिल्ली दौरे के दौरान योगी आदित्यनाथ(Yogi Adityanath) ने प्रधानमंत्री मोदी समेत गृहमंत्री अमित शाह(Home Minister Amit Shah), पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा (National President JP Nadda) समेत कई वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात की। इन मुलाकातों में ही उत्तर प्रदेश में बनने वाली सरकार की नवनिर्वाचित मंत्रिमंडल की सूची के तकरीबन ज्यादातर नाम फाइनल कर दिए गए हैं।

    भाजपा सूत्रों के मुताबिक योगी आदित्यनाथ के दिल्ली दौरे ने तकरीबन उत्तर प्रदेश के नए मंत्रिमंडल की तस्वीर साफ कर दी है। सूत्र बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री पद की शपथ के साथ में ही जिन मंत्रियों को शपथ दिलाई जाएगी उसमें कई नाम चौंकाने वाले हो सकते हैं। भाजपा से जुड़े एक वरिष्ठ पदाधिकारी बताते हैं कि योगी आदित्यनाथ के पिछले मंत्रिमंडल के कई सदस्य इस बार बाहर का रास्ता भी देख सकते हैं। हालांकि कुछ मंत्री तो चुनाव भी नहीं जीते हैं। सूत्रों का कहना है कि अनुमान तो यही लगाया जा रहा है योगी सरकार के पूर्व मंत्री जो इस बार चुनाव जीते हैं उनमें से कईयों को इस बार फिलहाल शुरुआती चरण में मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया जा सकता है। सूत्रों के मुताबिक अपने दो दिन के ताबड़तोड़ मुलाकातों के दौर में योगी आदित्यनाथ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह और जेपी नड्डा के साथ मिलकर मंत्रिमंडल के चेहरों पर चर्चा की है।



    ये नाम हो सकते हैं फाइनल
    भाजपा से जुड़े सूत्रों का कहना है कि इस बार योगी आदित्यनाथ के मंत्रिमंडल में शुरुआती दौर में ही पूर्वांचल, बुंदेलखंड, अवध, पश्चिम और तराई का प्रतिनिधित्व वहां के जीते हुए विधायकों को मिल सकता है। जिन विधायकों को उत्तर प्रदेश में नए मंत्रिमंडल में शामिल किया जा सकता है, उसमें प्रमुख नाम सुरेश खन्ना, बेबी रानी मौर्य, श्रीकांत शर्मा, बृजेश पाठक, सतीश महाना, सिद्धार्थ नाथ सिंह, सूर्य प्रताप शाही, आशुतोष टंडन, अनुराग सिंह, असीम अरुण, राजेश्वर सिंह, आशीष पटेल, नंदकुमार नंदी और नितिन अग्रवाल का नाम फिलहाल तय माना जा रहा है। इसके अलावा अपना दल और निषाद पार्टी के जीते हुए विधायकों की मंत्रिमंडल में भागीदारी का अनुमान है।

    संगठन से जुड़े एक वरिष्ठ पदाधिकारी कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में इस बार मंत्रिमंडल का गठन ऐसे जातिगत समीकरणों को साधते हुए हो रहा है, जो 2024 की राह को बहुत आसान कर दें। उनका इशारा है स्पष्ट रूप से दलितों और पिछड़ों की ओर था, जिनका इस बार पार्टी को बंपर वोट मिला है। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक वैसे तो मंत्रिमंडल का गठन सभी जाति बिरादरी और समुदायों के लोगों की बराबर भागीदारी के लिहाज से ही किया जाता है। लेकिन राजनीतिक हित और भविष्य की रूपरेखा तय करते हुए सभी सरकारें मंत्रिमंडल का गठन उसी लिहाज से करती हैं।

    केशव प्रसाद मौर्या और दिनेश शर्मा के नाम की भी चर्चा
    भाजपा से जुड़े सूत्रों का कहना है कि इस बार दिल्ली में तीन नाम भी सबसे ज्यादा चर्चा में रहे कि क्या इन्हें मंत्रिमंडल में शामिल भी किया जाएगा या नहीं। इसमें सिराथू से चुनाव हार चुके भाजपा के कद्दावर नेता केशव प्रसाद मौर्या और दिनेश शर्मा का नाम शामिल है। दोनों कद्दावर नेताओं के अलावा चर्चा में नाम भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह का ठीक चल रहा है। प्रदेश अध्यक्ष बनने से पहले स्वतंत्रदेव सिंह योगी सरकार में मंत्री थे। यह चुनाव उनकी अध्यक्षता में ही लड़ा गया और बंपर तरीके से जीत हासिल हुई। इसके अलावा चर्चा रायबरेली की विधायक अदिति सिंह और भाजपा में हाल में शामिल हुई मुलायम सिंह यादव की बहू अपर्णा यादव को भी मंत्रिमंडल में शामिल करने की है। भाजपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी कहते हैं कि जिस तरीके से उत्तर प्रदेश में महिलाओं ने पार्टी में आस्था जताते हुए बंपर तरीके से वोट किया है, उसी लिहाज से मंत्रिमंडल में महिलाओं की भागीदारी भी होगी। इसीलिए कयास लगाए जा रहे हैं कि अदिति और अपर्णा को मंत्रिमंडल में जगह मिल सकती है।

    राजनीतिक विश्लेषक आरएन तिवारी कहते हैं कि भाजपा को इस बात का बखूबी अंदाजा है कि दलितों का वोट इस बार उन्हें अच्छा खासा मिला है। इसलिए पार्टी दलितों को लुभाने के लिए और खुद से ज्यादा से ज्यादा कनेक्ट करने के लिए कोई भी मौका छोड़ना नहीं चाहेगी। यही वजह है कि इस बार उत्तर प्रदेश सरकार में दलितों की भागीदारी भी ज्यादा होने का अनुमान लगाया जा रहा है। तिवारी कहते हैं कि अगर आप उत्तर प्रदेश के आंकड़े देखें तो आपको अहसास होगा कि छोटे-छोटे दलों ने भी बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है और कई प्रत्याशी विधायक भी बने हैं। इसी आधार पर अनुमान लगाया जा सकता है कि अपने नए मंत्रिमंडल में भाजपा पिछड़ा अति पिछड़ों पर भी खूब दांव लगा सकती है।

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