कानपूर: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में दूसरे चरण के मतदान (Second Phase Voting) में 9 जिलों की 55 विधानसभा सीटों पर 62.82 फीसदी मतदान हुआ है. ये पिछले विधानसभा चुनाव (Assembly Election) में हुए इन सीटों पर मतदान के मुकाबले क़रीब 7 फीसदी कम है. लेकिन 3 मुस्लिम बहुल सीटों पर 72 फीसदी से ज्यादा वोटिंग हुई. यानि औसत से क़रीब 11 फीसदी ज्यादा वोट पड़े हैं.
पिछले चुनाव में इन 55 सीटों पर 65.53 फीसदी वोटिंग हुई थी. पहले चरण में भी करीब पिछले चुनाव के मुकाबले 3 फीसदी कम मतदान हुआ था. लेकिन पहले चरण मे भी कई मुस्लिम बहुल सीटों पर औसत से क़रीब 10-11 प्रतिशत ज्यादा वोट पड़े थे. चुनाव विश्लेषक अब ये अनुमान लगाने में जुट गए हैं कि कम मतदान किसके लिए फायदेमंद है और किसके लिए नुकसानदेह.
दरअसल यूपी में मतदान के प्रतिशत में थोड़ा सा भी ऊपर नीचे होने से सत्ता के समीकरण बदलने का इतिहास रहा है. पिछले दो चुनाव में मतदान घटने बढ़ने से हुए सत्ता परिवर्तन पर नज़र डालने से यह अंदाजा लगाना आसान हो जाएगा कि उत्तर प्रदेश में चुनावी ऊंट किस करवट बैठने जा रहा है. 2017 में दूसरे चरण वाली इन 55 सीटों पर 65.53 फीसदी मतदान हुआ था. 2012 में इन 55 सीटों पर 65.17 फीसदी वोट पड़े थे.
2012 की तुलना में 2017 में वोटिंग में करीब 0.36 फीसदी का इजाफा हुआ. पिछले तीन चुनावों में इन 55 सीटों के नतीजों का विश्लेषण करें तो पता चलता है कि जब-जब वोट प्रतिशत बढ़े हैं तो उस समय की विपक्षी दलों को फायदा हुआ. 2012 में सपा को 29 और 2017 में भाजपा को यहां 33 सीटों का फायदा हुआ था. इस बार इन 55 सीटों पर 3 फीसदी वोटिंग घटी है. पुराने रिकॉर्ड के हिसाब से देखें तो इस बार मुख्य विपक्ष यानि सपा गठबंधन को बड़ा फायदा होता दिख रहे है.
दूसरे चरण में जिन नौ जिलों की 55 सीटों पर 62.82 फीसदी मतदान हुआ है. इन सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं. पिछली बार यानि 2017 के विधानसभा चुनाव में मुस्लिम उम्मीदवारों की आपसी टक्कर की वजह से बीजेपी 38 सीटों पर जीती थी. जबकि सपा-कांग्रेस गठबंधन को 17 सीटें मिली थीं. सपा को 15 और कांग्रेस को दो सीटें मिली थीं. बसपा और आरएलडी का खाता तक नहीं खुला था, इस बार भी इन 55 सीटों पर सपा गठबंधन के 19, बसपा के 23, कांग्रेस 21 और ओवैसी की पार्टी के 19 मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में है.
इन चार पार्टियों के 77 मुस्लिम उम्मीदवारों के चुनाव मैदान में होने से ये माना जा रहा था कि बीजेपी को इससे फायदा होगा. क्योंकि 24 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवारों के बीच मुस्लिम वोट हासिल करने के लिए अपसी कड़ा संघर्ष है. 11 सीटों पर दो उम्मीदवार आमने हैं, 9 सीटों पर तीन तो चार सीटों पर चार-चार मुस्लिम उम्मीदवार अमने-सामने हैं. चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुतबिक रामपुर सदर पर 58.80, संभल पर 57.40, मुरादाबाद 59.48, कुंदरकी पर 65.48, अमरोहा नगर पर 65.76, बेहट पर 72.21, सहारनपुर देहात पर 70.50 और धामपुर पर 63.94 प्रतिशत मतदन हुआ है.
इन सभी विधानसभा सीटों पर 55 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं. इसी तरह 40 से 50 प्रतिशत मुस्लमि मतदाताओं वाली विधानसभा सीटों में देवबंद पर 65.00, नकुड़ पर 72.90, कांठ पर 67.07, ठाकुरद्वारा पर 72.35, नहटौर पर 59.60, नगीना पर 61.02, बिजनौर पर 61.70, चांदपुर पर 68.76, नूरुपुर पर 63.30 और बढ़ापुर पर औसतन 64.80 प्रतिशत वोट पड़े. मतदान के इस पैटर्न से माना जा रहा है कि मुस्लिम बहुल इलाकों में वोटिंग को लेकर ज्यादा उत्साह दिखा है. पहले चरण में भी मतदान की यही पैटर्न रहा था. दोनों चरणों में पिछले चुनाव से कम मतदान लेकिन मुस्लिम बहुल सीटों पर औसत से ज्यादा मतदान के निहितार्थ ढूंढे जा रहे हैं.
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