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    UP Election : बसपा को मिले एक करोड़ 18 लाख वोट, फिर भी मात्र एक सीट

  • March 12, 2022

    लखनऊ। एक करोड़ 18 लाख वोट (one crore 18 lakh votes) पाने के बाद भी बसपा (BSP) का यूपी में बमुश्किल खाता खुल पाया। मात्र एक सीट पर बसपा को जीत मिली जबकि यूपी (UP) में दलित वोटरों की संख्या (Number of Dalit Voters) ही लगभग तीन करोड़ है। बड़ी संख्या में दलित वोट बैंक शिफ्ट होने से बसपाई रणनीतिकारों की नींद उड़ गई है। बड़ा सवाल भविष्य की योजानाओं को लेकर खड़ा हो गया है।

    यूपी का चुनाव परिणाम आया तो भाजपा सिरमौर हो गई। बड़ा परिवर्तन यह हुआ कि बसपा पूरी तरह से सिमट गई। केवल रसड़ा सीट ही बसपा के खाते में आई। यानी किसी तरह से बस खाता ही खुल पाया। अहम बात यह है कि बसपा दलितों के दम पर हुंकार भरती रही है। उसका सबसे बड़ा वोट बैंक भी दलित वोटर ही रहे हैं। इसके साथ बसपा सोशल इंजीनियरिंग कर परिणामों को प्रभावित करती रही है। यहां तक कि इसकेदम पर एक बार पूर्ण बहुमत से सत्ता प्राप्त कर चुकी है। इस चुनाव में सारे समीकरण ध्वस्त हो गए। यूपी में कुल 15 करोड़ दो लाख वोटर हैं।


    बसपा को इस चुनाव में 12.9 फीसदी वोट मिला। उसे कुल एक करोड़ 18 लाख 73 हजार 137 वोट मिले। यूपी में दलित वोटरों की संख्या लगभग तीन करोड़ है। ऐसा नहीं है कि सभी दलित ही हमेशा बसपा को मिलते रहे हैं पर इनमें एक बड़ा वर्ग हमेशा बसपा के साथ रहा है। इस बार इतनी बड़ी संख्या में वोट शिफ्ट होने की बात सामने आ रही है। हालांकि यह भी सही है कि बसपा का काडर वोटर यानी जाटव वर्ग तो इस बार भी काफी बसपा के साथ ही रहा पर अन्य दलित छिटक गए।

    इस बार सबसे कमजोर
    वर्ष 2017 के चुनाव की बात करें तो बसपा को 22.23 फीसदी वोट यानी एक करोड़ 92 लाख 81 हजार 340 मत मिले थे। 2014 के लोकसभा चुनाव में भी बसपा को 19.60 प्रतिशत वोट मिले थे। हालांकि उस चुनाव में बसपा एक भी सीट हासिल नहीं कर पाई थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा के वोट प्रतिशत में तो कोई बढ़ोतरी नहीं हो पाई लेकिन लेकिन सपा के साथ गठबंधन का उसे फायदा मिला। बसपा ने 10 सीटें जीतीं। 2017 के विस चुनाव में बसपा का मत प्रतिशत 22.24 प्रतिशत हो गया लेकिन कमाल यह रहा कि उसके केवल19 सीटें ही मिलीं। इस बार यह प्रतिशत लगभग दस प्रतिशत कम हो गया और सीट एक मिली।

    स्थायी शिफ्टिंग का बड़ा डर
    अब बसपा सुप्रीमो मायावती (BSP supremo Mayawati) के सामने यह चिंता है कि दलित वोटर स्थायी रूप से कहीं दूसरे दलों में शिफ्ट न हो जाएं। मायावती ने हार के बाद पेश की अपनी सफाई में भी यह चिंता जाहिर की है। उन्होंने जहां भाजपा और सपा पर तो निशाना साधा ही है वहीं खास तौर पर कांग्रेस को कटघरे में खड़ा किया है। जोर देकर कहा है कि कांग्रेस घोर जातिवादी पार्टी है। उसने बाबा साहब डा. आंबेडकर को हमेशा अपने रास्ते का रोड़ा मानकर सीधे चुनाव में कभी कामयाब नहीं होने दिया। उन्होंने कांग्रेस जैसी जातिवादी पार्टियों से अपने समाज के लोगों को दूर रहने की सलाह दी।

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