बांदा (Banda) । विषाक्त भोजन (food poisoning) के मामूली से मामूली मामलों में खाद्य पदार्थों के नमूने लेने टीम पहुंच जाती है। फिर इतना बड़ा माफिया खुद और उसके परिजन जब लगातार खाने में जहर दिए जाने का आरोप लगा रहे थे, तो जिम्मेदारों ने एक बार भी उसके खाने-पीने के चीज समान का नमूना आखिर क्यों नहीं लिया। यह वह सवाल है, जिसे अब मुख्तार (Mukhtar Ansari) के वकील अपना हथियार बनाने की तैयारी में हैं।
इससे मामले में हो रही न्यायिक व मजिस्ट्रेटी जांच के दौरान भी जिम्मेदारों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। बता दें कि 28 मार्च जिस रात माफिया हमेशा के लिए मौत की नींद सोया, उसी दिन उसने दोपहर में आखिरी बार खिचड़ी खाई थी। इसके बाद उसे उल्टियां भी हुई थीं। जेल प्रशासन ने माफिया को मेडिकल काॅलेज तो भेजा, लेकिन उस खिचड़ी की जांच क्यों नहीं कराई, जिसे खाने के बाद उसकी हालत बिगड़ी थी। इससे पहले 20 मार्च को जब कोर्ट में मुख्तार के वकील ने जहर देने का शिकायती पत्र दिया था।
उसके बाद भी जेल प्रशासन की ओर से उसके खाने पीने का कोई नमूना लेकर जांच के लिए भेजना मुनासिब न समझा गया। सूत्रों की मानें तो मुख्तार ने फोन पर अपने बेटे उमर और बहू निकहत से कहा था कि दूध पीने के बाद उसका शरीर ढीला पड़ जाता है। उससे दो-चार कदम भी नहीं चला जाता है। लिहाजा नमूनों की जांच के दायरे में मुख्तार को दिया जाने वाला दूध भी आता है।
मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर भी 26 मार्च को मुख्तार को पेट की शिकायत बताते रहे थे, लेकिन उसने क्या खाया और पिया इसकी जांच के लिए किसी भी डॉक्टर ने कागज पर पेन चलाना उचित नहीं समझा। इसके बाद आखिरी में 28 मार्च को जेल में पकी खिचड़ी ही मुख्तार का आखिरी भोजन बनी।
सूत्रों का कहना है कि अब मुख्तार के वकील व परिजन जेल प्रशासन की इसी चूक को अपना हथियार बनाने की तैयारी कर रहे हैं। वे इसको लेकर कोर्ट में याचिका दे सकते हैं। फिलहाल मेडिकल कॉलेज हो या जेल प्रशासन इस पूरे मामले में चुप्पी साधे है।
जर्दा व छेना छोड़ खिचड़ी तक पहुंची माफिया की भूख
खाने के शौकीन मुख्तार का जेल एक दौर ऐसा भी गुजरा है जब उसके लिए जर्दा (मीठा चावल) व छेना तैयार किया जाता था। इसके अलावा विदेशी फलों से वह नाश्ता किया करता था। किसी को क्या मालूम था कि उसी बांदा जेल में जिंदगी के आखिरी दिनों में माफिया को खिचड़ी और दलिया खानी पड़ेगी।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved