इंदौर: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) हाई कोर्ट (High Court) के जस्टिस जीएस आहलूवालिया ने एक अहम फैसले में पत्नी (Wife) द्वारा पति (Husband) के खिलाफ अप्राकृतिक यौन शोषण (Unnatural Sexual Abuse) के मामले में दर्ज कराई गई FIR को निरस्त कर दिया है. उन्होंने अपने फैसले में लिखा कि ‘यदि एक वैध पत्नी विवाह के दौरान अपने पति के साथ रह रही है, तो किसी पुरुष द्वारा अपनी ही पत्नी (जो कि 15 साल से कम उम्र की न हो) के साथ कोई भी यौन कृत्य दुष्कर्म नहीं होगा.’
जस्टिस अहलुवालिया की एकल पीठ ने अपने फैसले में लिखा कि ‘विवाह के बाद पुरुष के पत्नी के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध को दुष्कर्म नहीं माना जाएगा. खासकर पति-पत्नी के साथ रहने के दौरान पुरुष द्वारा कानूनी रूप से विवाहित पत्नी के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध दुष्कर्म की श्रेणी में नहीं आता. ऐसे मामले में पत्नी की असहमति महत्वहीन हो जाती है.’
जस्टिस अहलुवालिया ने अपने फैसले में आईपीसी की धारा 376-बी को एकमात्र स्थिति में अपवाद बताया है, जब कानूनी रूप से अलग होने के बाद या दूसरे किसी कारण से अलग रहने के दौरान पति पत्नी से यौन कृत्य करता है, तो ये ज्यादती होगी. दरअसल, जबलपुर निवासी मनीष साहू ने एमपी हाई कोर्ट में एक याचिका दायर कर बताया था कि पत्नी ने उसके खिलाफ नरसिंहपुर जिले में 24 अगस्त 2022 को एक एफआईआर दर्ज कराई थी.
इसमें कहा गया था कि उनकी शादी 8 मई 2019 को हुई थी. शादी के बाद जब दूसरी बार वह अपने ससुराल गई तो उसके पति ने उसके साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाए. इसके बाद कई बार उसने ऐसा किया. एफआईआर के अनुसार, पति ने किसी को बताने पर तलाक की धमकी दी थी. वहीं याचिकाकर्ता मनीष के वकील ने दलील दी कि पहली बार दर्ज की गई दहेज की एफआईआर में अप्राकृतिक यौन संबंध के आरोप नहीं लगाए गए थे. इसलिए दूसरी एफआईआर में लगाए गए आरोप स्पष्ट रूप से गलत हैं.
जस्टिस अहलुवालिया ने फैसले में लिखा कि पति द्वारा अपने साथ रहने वाली कानूनी रूप से विवाहित पत्नी के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध आईपीसी की धारा-377 के तहत अपराध नहीं है. इसलिए इस बात पर और विमर्श की आवश्यकता नहीं है कि क्या एफआईआर किस आधार पर दर्ज की गई थी? उन्होंने पत्नी द्वारा मनीष साहू के खिलाफ दायर एफआईआर को निरस्त कर दिया.
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