– योगेश कुमार गोयल
भारत के विभिन्न राज्यों में नववर्ष का स्वागत अलग-अलग तरीके से किया जाता है। हमारे यहां जो उत्साह होली, दीवाली, दशहरा, ईद, क्रिसमस, गुरुपर्व इत्यादि विभिन्न त्योहारों पर देखा जाता रहा है, बिल्कुल वैसा ही उत्साह लोगों में नववर्ष के अवसर पर भी देखा जाता है। नववर्ष की शुरूआत के अवसर पर लोग एक-दूसरे को नए साल की बधाई देते हुए खुद के लिए भी भगवान से प्रार्थना करते हैं कि नया साल उनके लिए भी शुभ एवं फलदायी हो, नए साल में सफलता उनके कदम चूमे तथा नववर्ष उनके जीवन की बगिया को खुशियों से महका दे। जिस प्रकार दुनिया के कई देशों में नया साल मनाने के विचित्र रीति-रिवाज देखने को मिलते हैं, उसी प्रकार भारत में भी विभिन्न स्थानों पर नव वर्ष मनाने की ऐसी विचित्र परम्पराएं और रीति-रिवाज देखे जाते हैं कि उनके बारे में जानकर लोग आश्चर्यचकित हो जाते हैं। बहरहाल, भारत सहित दुनियाभर में नववर्ष मनाए जाने की परम्पराएं चाहे जो भी हों, सभी का उद्देश्य एक ही है कि नया साल सुख, शांति एवं समृद्धि से परिपूर्ण हो।
पूरी दुनिया में एक जनवरी को ही नए साल के रूप में मनाया जाता है, जो वास्तव में ईसाई धर्म का नया वर्ष है। एक ओर जहां दुनियाभर में एक जनवरी को ही नया साल मनाया जाता है, वहीं दुनिया भर में भारत ही एकमात्र ऐसा देश है, जहां नव वर्ष का उत्सव अलग-अलग जगह पर अलग-अलग समय में एक से अधिक बार और विविध रूपों में अपनी-अपनी संस्कृति और परम्पराओं के साथ मनाया जाता है। हमारे यहां ईस्वी संवत् तथा विक्रमी संवत् दोनों को ही पूरा महत्व दिया जाता है। ईस्वी संवत् के अनुसार नव वर्ष की शुरूआत एक जनवरी को और विक्रमी संवत् के अनुसार नए साल की शुरूआत वैशाख माह के प्रथम दिन से मानी जाती है। इस्लाम में नववर्ष की शुरूआत हिजरी संवत् के आधार पर मानी जाती है, जो मुहर्रम के पहले दिन से शुरू होता है। इस्लामिक धार्मिक पर्व को मनाने के लिए हिजरी कैलेंडर का इस्तेमाल किया जाता है, जो एक चंद्र कैलेंडर है। भारत चूंकि एक कृषि प्रधान देश है, इसलिए हमारे यहां लगभग हर क्षेत्र में नए साल का उत्सव कृषि आधारित ही होता है। आइए जानते हैं भारत में कैसे मनाया जाता है नव वर्ष का जश्न।
कृषि प्रधान राज्यों हरियाणा तथा पंजाब में वैसे तो एक जनवरी को ही नववर्ष धूमधाम से मनाया जाता है किन्तु यहां नई फसल का स्वागत करते हुए नववर्ष वैसाखी के रूप में भी मनाया जाता है। राजस्थान में नव वर्ष के विशेष अवसर पर गुड़ से बने पकवान खाना बहुत शुभ माना जाता है ताकि वर्षभर मुंह से मधुर बोली ही निकलती रहे। महाराष्ट्र मंर इस अवसर पर एक सप्ताह पहले ही घरों की छतों पर रेशमी पताका फहराई जाती है, घरों तथा दफ्तरों को रंग-बिरंगे फूलों से सजाया जाता है और पतंगें उड़ाकर नव वर्ष का स्वागत किया जाता है। जम्मू कश्मीर में नव वर्ष के उपलक्ष्य पर अनाथ बच्चों को भरपेट भोजन कराकर नए कपड़े पहनाए जाते हैं और उनके माथे पर तिलक लगाकर आरती उतारी जाती है ताकि नव वर्ष हंसी-खुशी के साथ व्यतीत हो सके।
बिहार में नववर्ष के मौके पर विद्या की देवी सरस्वती की पूजा-अर्चना की जाती है। गरीब बच्चों को कपड़े तथा चावल का दान किया जाता है ताकि वर्ष भर घरों में सुख-शांति एवं समृद्धि बनी रही। असम में नव वर्ष की यादगार बेला में घर के आंगन में मांडणे (रंगोली) सजाए जाते हैं तथा दीप या मोमबत्तियां जलाई जाती हैं। गाय को रोटी और गुड़ खिलाया जाता है ताकि नव वर्ष हंसी-खुशी के साथ गुजरे। केरल में नव वर्ष के अवसर पर नीम व तुलसी की पत्तियां तथा गुड़ खाना शुभ माना जाता है। माना जाता है कि इनको खाने से शरीर साल भर तक स्वस्थ बना रहता है। मणिपुर में इस दिन तरह-तरह की आतिशबाजी की जाती है तथा अनेक स्थानों पर भूत-प्रेतों के पुतले बनाकर भी जलाए जाते हैं ताकि भूत-प्रेत किसी को नुकसान न पहुंचा सकें।
भारतीय कैलेंडर की गणना, सूर्य और चंद्रमा के अनुसार होती है क्योंकि माना जाता रहा है कि सम्राट विक्रमादित्य के शासनकाल में ही सबसे पहले भारत में कैलेंडर अथवा पंचाग का चलन शुरू हुआ था। चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को नवसंवत्सर कहा जाता है। यही वह समय होता है, जब किसानों को उनकी मेहनत का फल मिलता है। हिन्दू धर्म में नववर्ष का आरंभ चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से माना जाता है। हिन्दू धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी, इसलिए इसी दिन से ही नए साल का आरंभ होता है। मराठी तथा कोंकणी लोग चैत्र मास के पहले दिन ‘गुड़ी पड़वा’ के रूप में नव वर्ष का जश्न मनाते हैं। पंजाब में 13 अथवा 14 अप्रैल को ‘बैसाखी’ के रूप में पंजाबी न्यू ईयर मनाया जाता है। अमेरिका, कनाडा तथा इंग्लैंड में भी पंजाबी समुदाय के लोग लोग इसी अवसर पर जश्न मनाते हैं। सिख धर्म को मानने वाले इसे नानकशाही कैलेंडर के अनुसार मार्च में होली के दूसरे दिन मनाते हैं। जैन धर्म के लोग नववर्ष को दीवाली के अगले दिन मनाते हैं, जो भगवान महावीर की मोक्ष प्राप्ति के अगले दिन से शुरू होता है। चैत्र मास में कर्नाटक तथा आंध्र प्रदेश में तेलगू न्यू ईयर मनाया जाता है, जिसे ‘उगाडी’ के नाम से जाना जाता है। इसी प्रकार अप्रैल के मध्य में पुथंडु नामक उत्सव को तमिल न्यू ईयर के रूप में मनाया जाता है। इस अवसर पर वहां कच्चा आम, गुड़ तथा नीम के फूलों से विशेष व्यंजन बनाए जाते हैं। केरल में ‘विषु’ उत्सव नववर्ष का पहला दिन होता है, जो मलयालम माह मेदम की पहली तिथि को मनाया जाता है। उसी दिन वहां धान की बुवाई का काम शुरू किया जाता है।
चैत्र नवरात्र के पहले दिन कश्मीर में नवरेह नामक त्योहार कश्मीरी पंडित नव चंद्रवर्ष के रूप में धूमधाम से मनाते हैं। इस दिन लोग सुबह के समय सबसे पहले चावल से भरे पात्र को देखते हैं, जिसे समृद्धशाली भविष्य का प्रतीक माना जाता है। बंगाली कैलेंडर हिन्दू वैदिक सौर मास पर आधारित है और पश्चिम बंगाल में अप्रैल माह के मध्य में बैशाख महीने के पहले दिन बंगाली नववर्ष मनाया जाता है, जिसे ‘पोहला बोईशाख’ कहा जाता है। पोहला का अर्थ है पहला और बोइशाख है बंगाली कैलेंडर का पहला महीना। त्रिपुरा के पर्वतीय इलाकों में भी पोहला बोईशाख मनाया जाता है। दिवाली के अगले दिन गोर्वधन पूजा के दिन से गुजराती नववर्ष की शुरुआत मानी जाती है और गुजरात में ‘बेस्तु वर्ष’ नाम से गुजराती नववर्ष मनाया जाता है। असम का ‘बोहाग बिहू’ उत्सव तो वहां का सबसे खास त्यौहार है, जो वहां असम के नव वर्ष के रूप में अप्रैल के मध्य में मनाया जाता है। कुछ आदिवासी इलाकों में फसल में महुआ के फूल दिखाई देने पर आदिवासी उत्सव मनाया जाता है, जो उनके नव वर्ष का प्रारंभ माना जाता है। देश के कई आदिवासी इलाकों में उनके देवी-देवताओं के आराधना पर्वों के हिसाब से नव वर्ष की शुरूआत मानी जाती है। नागालैंड के नाग आदिवासी नाग पंचमी के दिन से ही अपने नववर्ष की शुरुआत करते हैं।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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