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    अनूठा गांव, जहां बच्चा-बच्चा बोलता है फर्राटेदार संस्कृत, ‘Good Morning’ नहीं, ऐसे होती है दिन की शुरुआत

  • February 07, 2022


    राजगढ़: मध्यप्रदेश के राजगढ़ (Rajgarh News) जिला मुख्यालय से 45 किमी दूर बसा है झिरि गांव, जिसने अपने अलग पहचान पूरे देश में कायम की है. इस गांव में रहने वाला हर शख्स संस्कृत (Sanskrit) में ही बात करता है. फिर वो चाहे हिंदू हो या मुसलमान (Hindu and Musalman). नौकरीपेशा हो या दुकानदार. यही नहीं, गांव की घरों की दीवारों पर संस्कृत में श्लोक लिखे गए हैं.

    संस्कृत भाषा को यहां के लोगों ने पूरी तरह से अपना लिया है. यहां दिन की शुरुआत ‘गुड मॉर्निंग’ से नहीं बल्कि ‘नमो-नम:’ से होती है. एक दिलचस्प बात ये कि इस जगह के आसपास के गांवों में लोग अपनी दूसरी भाषा बोलते हैं, लेकिन इस गांव में ऐसा नहीं है. यहां का बच्चा-बच्चा संस्कृत में बात करता है. यहां संस्कृत सिखाने की शुरुआत 2002 में विमला तिवारी नाम की समाज सेविका ने की. धीरे-धीरे गांव के लोगों में दुनिया की प्राचीन भाषा के प्रति रुझान बढ़ने लगा और आज पूरा गांव फर्राटेदार संस्कृत बोलता है.

    करीब एक हजार की आबादी वाले झिरी गांव में महिलाएं, किसान और मजदूर भी एक-दूसरे से संस्कृत में बात करते हैं. दो दशक पहले यहां संस्कृत भारती से जुड़े लोगों ने इसकी शुरुआत कराई. तभी से संस्कृत भाषा लोगो के इतनी भा गई कि लोगों ने इसे पूरी तरह अपना लिया. ग्रामीण कहते हैं कि यह भाषा मीठी लगती है. इसमें बोलचाल से अपनापन लगता है. यही नहीं यहां से जो हमारी बहनों की शादी दूसरे गाँवों में हुई है, वहां भी जाकर वो लागों को संस्कृत सिखा रही हैं.


    झिरि गांव के घरों के नाम भी संस्कृत में हैं. कई घरों के बाहर ‘संस्कृत गृहम’ लिखा गया है. गांव की 70 फीसदी आबादी संस्कृत बोलती है. यहां के नौजवान इस भाषा को लेकर खासी मेहनत कर रहे हैं. वह स्कूल के अलावा गांव के बच्चों को मंदिर, गांव के चौपाल में इकट्ठा करके संस्कृत सिखाते हैं. इतना ही नहीं, गांव में शादी-विवाह के अवसर पर महिलाएं संस्कृत भाषा में गीत गाती हैं.

    मध्यप्रदेश के झिरी गांव की तरह कर्नाटक में भी मत्तूर गांव भी ऐसा ही है, जहां के लोग संस्कृत में बात करते हैं. यहां रहने वाला भी हर एक शख्स संस्कृत में ही बात करता है. एक दिलचस्प बात ये कि इस जगह के आसपास के गांवों में लोग कन्नड़ भाषा बोलते हैं, लेकिन मत्तूर में ऐसा नहीं है. यहां का बच्चा-बच्चा संस्कृत में बात करता है. मत्तूर गांव तुंग नदी के किनारे बसा है, जो कि बेंगलुरू से 300 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.

    इस गांव में संस्कृत प्राचीन काल से ही बोली जाती है. लेकिन समय के साथ यहां के लोग भी कन्नड़ भाषा बोलने लगे थे, मगर पेजावर मठ के स्वामी ने इसे संस्कृत भाषी गांव बनाने का आह्वान किया था. इसके बाद से सारे लोग आपस में संस्कृत में बातें करने लगे. अब हर दुकानदार, किसान, महिलाएं यहां तक कि स्कूलों में पढ़ने वाले छोटे बच्चे भी फर्राटेदार संस्कृत में बात करते हैं. यहां दुनिया की सबसे प्राचीन भाषा को लोगों ने अपने रुटीन में शामिल कर लिया है.

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