नई दिल्ली (New Delhi) । दुनिया में एक ऐसी जगह भी है, जहां करीब 10000 मानसिक रोगियों (mental patients) के मस्तिष्क (brain) स्टोर करके रखे गए हैं. लेकिन सवाल ये है कि ऐसा क्यों किया गया? इसकी आज के वक्त में क्या उपयोगिता है? इसे दुनिया का सबसे बड़ा संग्रह बताया जा रहा है. ये संग्रह 1945 से 1980 के दशक के शुरुआती वर्षों के हैं. ये जगह यूनिवर्सिटी ऑफ डेनमार्क (university of denmark) में है. मस्तिष्क मानसिक रोगियों की मौत के बाद उनके शव से निकाले गए थे. इन्हें सफेद रंग की फॉर्मेलिन की बाल्टियों में जमा करके रखा गया है.
एक रिपोर्ट के मुताबिक, ब्रेन कलेक्शन के प्रमुख पैथोलॉजिस्ट मार्टिन विरेनफेल नीलसेन ने बताया कि इस प्रक्रिया को ऑटोप्सी होने के बाद पूरा किया जाता है. जो जांच की गई उन्हें भी सुरक्षित रखा गया है. उन्होंने कहा, ‘ऐसा मुमकिन है कि आज से 50 साल बाद या उससे भी ज्यादा वक्त के बाद कोई आएगा, जो हमसे ज्यादा जानता होगा.’
मर्जी के बिना निकाले गए मस्तिष्क
आज के वक्त में मेंटल हेल्थ पर चर्चा अधिक बढ़ गई है. पुराने वक्त में ऐसा नहीं था. रिपोर्ट के अनुसार, डेनमार्क में मनोविज्ञान संस्थानों के मरीजों के मस्तिष्क उनकी मर्जी के बिना निकाले गए थे. इतिहासकारों का कहना है कि किसी ने भी इस पर सवाल नहीं किया कि इन संस्थानों में क्या हुआ होगा. मानसिक बीमारी झेल रहे लोगों के पास काफी कम अधिकार थे. उनका इलाज उनकी मर्जी के बिना किसी भी तरीके से हो सकता था.
1990 में डेनिश एथिक्स काउंसिल ने फैसला लिया कि इन मस्तिष्कों का इस्तेमाल रिसर्च के लिए किया जाएगा. ऐसा कहा गया कि अगर आप मानसिक बीमारी के बारे में अधिक जानना चाहते हैं तो ये मददगार साबित होगा. बीते कुछ सालों में इससे डिमेंशिया और डिप्रेशन समेत कई बीमारियों को समझने में मदद मिली है. फिलहाल मानसिक बीमारियों से जुड़े चार प्रोजेक्ट ऐसे हैं, जिनके लिए ये संग्रह मददगार साबित हो रहा है. इससे ये जानने में भी मदद मिल रही है कि मानव मस्तिष्क में अभी तक कितना परिवर्तन आया है.
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