भोपाल। केंद्र व भाजपा में सत्तारूढ़ भाजपा के लिए 2023 और 2024 चुनौतीपूर्ण हैं। हालांकि, भाजपा पूरी तरह आशान्वित है कि 2023 में पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों और 2024 के आम चुनाव में वह फिर अपना परचम फहराएगी, लेकिन मप्र के चुनाव को लेकर कराए गए एक सर्वे को लेकर मातृसंस्था संघ और भाजपा दोनों कुछ चिंतित नजर आ रहे हैं। माना जा रहा है कि इसीलिए आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत अचानक एमपी में सक्रिय हो गए हैं। भागवत इसी साल होने वाले मप्र विस चुनाव से पहले अलग-अलग क्षेत्रों का दौरा कर रहे हैं। इसी महीने वे प्रदेश के तीन अलग-अलग क्षेत्रों में आ चुके हैं। अप्रैल में वे भोपाल, बुरहानपुर और जबलपुर का दौरा कर चुके हैं। बुरहानपुर में उन्होंने निमाड़ के मिजाज को समझने की कोशिश की है। जबलपुर से महाकौशल को समझ रहे हैं। दरअसल, हाल के दिनों में कथित रूप से भाजपा के अंदरखाने से जो रिपोर्ट आई है, उससे पार्टी घबराई हुई है। सियासी जानकारों का कहना है कि यही वजह है कि एमपी में संघ प्रमुख सक्रिय हो गए हैं।
ग्राउंड स्तर पर पार्टी की स्थिति क्या
प्रदेश में करीब 18 साल से भाजपा की सरकार है। 2018 के चुनाव में कांग्रेस सत्ता पर काबिज हुई, लेकिन 15 माह बाद ही उसकी सरकार गिर गई। इसके बाद से फिर भाजपा सत्ता में है। पार्टी के लोगों का मानना है कि उनकी सुनी नहीं जा रही है। सत्ता पर अफसरशाही हावी है। सरकार की तरफ से निकाली गई विकास यात्रा को कई जगह लोगों के विरोध का सामना करना पड़ा। कहीं सड़क नहीं तो कहीं पानी नहीं होने को लेकर लोगों में नाराजगी है।
नाराज लोगों को साधने की कोशिश
भाजपा के सर्वे में कई पुराने नेता और कार्यकर्ताओं के भी नाराज होने की बात सामने आई है। इसके लिए भाजपा ने 14 नेताओं को कार्यकर्ताओं की नाराजगी का कारण जानने और फीडबैक लेने के लिए सर्वे कराया था। कई पुराने नेताओं की पूछ परख नहीं हो रही है। अब उनको अपनी अगली पीढ़ी के रास्ते भी पार्टी में बंद दिखाई दे रहे हैं। इसके चलते नेता बगावती हो गए हैं। इसके संकेत भी मिलने लगे हैं।
शेखावत व त्रिपाठी ने दिखाए तेवर
इंदौर में तीन बार से विधायक रहे भंवरसिंह शेखावत कह चुके हैं कि पार्टी में उनकी पूछ परख नहीं हो रही है। विंध्य में पार्टी के विधायक नारायण त्रिपाठी ने अलग पार्टी बनाने का एलान कर दिया है।
मंत्री भी लगा चुके आरोप
पार्टी में लंबे समय से कई नेता पार्टी के काम में जुटे हुए हैं। चुनाव का समय आने के बावजूद उनको कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई है। पार्टी के कई बड़े नेता आरोप लगा रहे है कि अधिकारी उनकी सुनते नहीं है। छोटे कार्यकर्ताओं की तो छोड़े दीजिए खुद सरकार में मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया ने आरोप लगाया कि चीफ सेक्रेटरी उनकी सुनते नहीं हैं। इस तरह अधिकारियों पर कार्यकर्ता और नेता कह चुके है कि उनकी हमारी सुनी नहीं जाती है।
भाजपा को सत्ता विरोधी लहर का डर
प्रदेश में भाजपा करीब 18 साल से सत्ता में है। 2018 में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के चेहरे पर पार्टी ने चुनाव लड़ा था, लेकिन नतीजे उत्साह जनक नहीं रहे। इस बार संगठन और सरकार दोनों मिलकर सत्ता वापसी के लिए जोर लगा रहे हैं। वहीं, सरकार और संगठन में समन्वय नहीं होने से पार्टी की स्थिति ज्यादा खराब है। इसको लेकर पार्टी की चिंता बढ़ी हुई है।
एमपी में संघ का बड़ा आधार
नागपुर के बाद संघ का मध्य प्रदेश में बड़ा आधार है। इसलिए आरएसएस यहां सत्ता गंवानी नहीं चाहता है। यहां हर जिले में शाखाएं लग रही हैं। आरएसएस चाहता है कि संघ का विस्तार इसी तरह जारी रहे। इसके लिए प्रदेश में भाजपा सरकार जरूरी है। इसलिए 2018 की गलती को संघ और भाजपा दोहराना नहीं चाहते।
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