नई दिल्ली (New Delhi) । भारतीय जनता पार्टी (BJP) नेतृत्व केंद्र सरकार (Central government) के द्वारा इस कार्यकाल में समान नागरिक संहिता (UCC) को आगे बढ़ाने की संभावना नहीं है। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को खत्म करने और अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के बाद यूसीसी भाजपा के वैचारिक एजेंडे में आखिरी है। एक रिपोर्ट में सरकार और पार्टी के सूत्रों के हवाले से कहा है कि भाजपा अभी इस मुद्दे को जीवित रखेगी।
आपको बता दें कि 28 जून को भोपाल में एक रैली के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी ने इस मुद्दे पर पहली बार खुलकर बोला था। इसके बाद उम्मीदें की जाने लगी कि इसे जल्द ही कानून का रूप दिया जा सकता है। पार्टी के साथ-साथ सरकार के शीर्ष पदाधिकारियों ने कहा कि किसी कानून के लिए गहन शोध और व्यापक परामर्श की आवश्यकता होगी। यही कारण है कि 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले इसके लागू होने की संभावना नहीं है।
इस मुद्दे को जीवित रखने के लिए कई भाजपा नेताओं ने यूसीसी की आवश्यकता पर बयान दिए हैं। शुक्रवार को झारखंड से भाजपा के लोकसभा सांसद सुनील कुमार सिंह द्वारा पेश एक निजी विधेयक ‘पूरे देश में समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए उपयुक्त कानून’ को सूचीबद्ध किया गया था। हालांकि, इस मुद्दे पर चर्चा नहीं हो सकी।
एक रिपोर्ट में पहले कहा था कि संघ परिवार का मानना है कि राज्य यूसीसी को अपने दम पर लागू कर सकते हैं। सूत्र ने कहा, “इसे अगले कार्यकाल में लिया जा सकता है, लेकिन प्राथमिकता इसे राज्यों में लागू करने की है।” आपको बता दें कि भाजपा शासित राज्यों (उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और गुजरात) में पहले ही यूसीसी लाने के प्रयास शुरू कर दिए गए हैं। उत्तर प्रदेश और असम ने अभी तक इस मुद्दे पर कोई महत्वपूर्ण कदम नहीं उठाया है।
सूत्रों का कहना है, ”पार्टी उत्तराखंड में इसे पहले देखना चाहती है। राज्य सरकार द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट अंतिम चरण में है। जल्द ही किसी भी समय इसे प्रस्तुत करने की उम्मीद है। हम देखेंगे कि इसे कैसे लागू किया जाता है और इसका प्रभाव क्या होगा। एक बार जब उत्तराखंड इसे लागू करना शुरू कर देगा, तो अन्य भाजपा शासित राज्य भी इसका अनुसरण कर सकते हैं।”
एक सरकारी सूत्र ने कहा, ”यह अनुच्छेद 370 या तीन तलाक नहीं है। यूसीसी विभिन्न जातियों और समुदायों के समाज के विभिन्न वर्गों से संबंधित एक जटिल मुद्दा है। इसके लिए कहीं अधिक व्यापक परामर्श और अधिक गहन शोध की आवश्यकता होगी। देश के आकार और इसकी विविधता को देखते हुए उस प्रक्रिया को इतनी जल्दी पूरा करना आसान नहीं होगा।”
भारत सरकार के विधि आयोग ने पहले ही यूसीसी पर परामर्श शुरू कर दिया है। इसने यूसीसी पर जनता के विचार जानने के लिए 14 जून को एक सार्वजनिक नोटिस जारी किया था और सुझाव प्रस्तुत करने की इसकी विस्तारित समय सीमा 28 जुलाई को समाप्त हो गई। इसमें शहरों में परामर्श करने की भी योजना है।
संघ परिवार की ओर से भी सावधानी बरतने की चेतावनी दी गई है। इस महीने की शुरुआत में आदिवासियों के बीच काम करने वाले आरएसएस के वनवासी कल्याण आश्रम ने उन सुझावों का स्वागत किया कि आदिवासियों को कानून के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए। उसने जनजातीय समुदायों से यह भी आग्रह किया कि वे अपनी आपत्तियां और आशंकाएं विधि आयोग के समक्ष व्यक्त करें और सोशल मीडिया चर्चा से प्रभावित न हों।
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