कोलंबो। जिस समय श्रीलंका सरकार विदेशी कर्जदाताओं से कर्ज चुकाने में रियायत पाने के लिए हाथ-पांव मार रही है, उसी समय देश के अंदर की कर्ज समस्या ने गंभीर रूप ले लिया है। इससे देशवासियों में बेचैनी बढ़ रही है।
खबरों के मुताबिक रानिल विक्रमसिंघे सरकार ने उम्मीद की थी कि वह देशी कर्ज के बारे में मई के अंत तक एक योजना तैयार कर लेगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। ज्यादातर मामलों में ये कर्ज बैंकों और अन्य संस्थागत निवेशकों ने सरकार को दिए हैं। अब बैंकों ने सरकारी योजना के बारे में स्पष्टीकरण मांगा है।
जबकि जमाकर्ताओं में इस संकट के नतीजों को लेकर आशंकाएं गहरा गई हैं। जिन लोगों ने बैंकों में अपने पैसे जमा करा रखे हैं, वे लगातार बैंकों से संपर्क कर रहे हैं। बहुत से लोग अपना पैसा निकालने की कोशिश में हैं। जमाकर्ताओं को डर है कि उनकी जमा राशि डूब सकती है।
एसोसिएशन ऑफ प्रोफेशनल बैंकर्स ऑफ श्रीलंका के अध्यक्ष बीएएचएस प्रीना ने कहा है कि अलग-अलग मकसद रखने वाले लोग स्थिति को और गंभीर बना रहे हैं। उन्होंने कहा- ‘अगर मैं भी आम इंसान होता, तो इतना ही डरा हुआ होता।’
श्रीलंका ने विदेशी कर्ज के मामले में पिछले साल मई में डिफॉल्ट कर दिया था (यानी वह कर्ज चुकाने में अक्षम हो गया था)। तब देश में विदेशी मुद्रा की कमी कारण जरूरी चीजों की भारी कमी हो गई थी और महंगाई आसमान छूने लगी थी। इससे भड़के जन असंतोष के कारण तत्काली राष्ट्रपति गोतबया राजपक्षे को देश छोड़ कर भागना पड़ा था।
मौजूदा राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे की सरकार ने आर्थिक हालत सुधारने की कोशिश में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की कड़ी शर्तों को स्वीकार किया है। इससे आईएमएफ से नया कर्ज प्राप्त हुआ है। आईएमएफ की शर्तों के मुताबिक अब श्रीलंका सरकार अपने विदेशी कर्जदाताओं से रियायत पाने की बातचीत चला रही है। इस बीच घरेलू कर्ज के मामले ने एक बड़ी समस्या का रूप ग्रहण कर लिया है।
कोलंबो स्थित थिंक टैंक एडवोकेटा इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष मुर्तजा जेफरजी के मुताबिक घरेलू कर्ज की रिस्ट्रक्चरिंग दो वजहों से जरूरी है। उन्होंने वेबसाइट निक्कईएशिया.कॉम से कहा- ‘पहला तो कर्ज को चुकाने योग्य सीमा में रखने के लिए यह आवश्यक है। दूसरी वजह कर्जदाताओं से समानता के व्यवहार के लिए यह जरूरी है। कर्ज रियायत देने वाले विदेशी कर्जदाता चाहेंगे कि घरेलू कर्ज के मामले में भी सरकार वैसी ही नीति अपनाए।’
घरेलू कर्ज की रिस्ट्रक्चरिंग का अर्थ यह है कि सरकार ने बैंकों और निवेशक संस्थानों से जो कर्ज ले रखा है, उसका एक हिस्सा ये संस्थान माफ करें और कर्ज चुकाने की समयसीमा में भी छूट दें। इससे आम जन में अंदेशा पैदा हुआ है कि बैंक सरकारी कर्ज में रियायत उनकी जमा राशि की कीमत पर देंगे।
जानकारों के मुताबिक श्रीलंका सरकार पर जितना कर्ज है, उनमें घरेलू कर्ज का हिस्सा 55 फीसदी है। इनमें से ज्यादातर रकम ट्रेजरी बिल और बॉन्ड्स बेच कर सरकार ने हासिल की है। सरकार ने बॉन्ड्स के जरिए 30.9 बिलियन डॉलर और ट्रेजरी बिल के जरिए पांच बिलियन डॉलर का कर्ज ले रखा है। इन कर्जों को अगले 12 महीनों से लेकर 30 तक की अवधि में उसे चुकाना है।
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