• img-fluid

    धर्मनिरपेक्षता के मायने समझे समाज

  • May 03, 2022

    – सुरेश हिंदुस्थानी

    किसी भी देश के शक्तिशाली होने के अपने निहितार्थ हैं। इन निहितार्थों का मन, वाणी और कर्म से अध्ययन किया जाए तो जो प्राकट्य होता है, वह यही कि सबके भाव राष्ट्रीय हों, सबके अंदर एक-दूसरे के प्रति सामंजस्य भाव की प्रधानता हो, लेकिन वर्तमान में समाज के बीच सामंजस्य के प्रयास कम और समाज के बीच भेद पैदा के प्रयास ज्यादा हो रहे हैं। जिसके चलते हमारी राष्ट्रीय अवधारणाएं तार-तार हो रही हैं। कौन नहीं जानता कि भारतीय समाज की इसी फूट के कारण भारत ने गुलामी के दंश को भोगा था। अंग्रेजों की नीति का अनुसरण करने वाले राजनीतिक दल निश्चित ही भारत के समाज में एकात्म भाव को स्थापित करने के प्रयासों को रोकने का उपक्रम कर रहे हैं। समाज को ऐसे षड्यंत्रों को समझने का प्रयास करना चाहिए।

    लम्बे समय से भारत में इस धारणा को समाज में संप्रेषित करने का योजनाबद्ध प्रयास किया गया कि मुस्लिम तुष्टिकरण ही धर्मनिरपेक्षता है। इसी कारण गंगा-जमुना तहजीब की अपेक्षा केवल हिन्दू समाज से ही की जाती रही है। भारत का हिन्दू समाज पुरातन समय से इस संस्कृति को आत्मसात किए हुए है। तभी तो इस देश में सभी संप्रदाय के व्यक्तियों को पर्याप्त सम्मान दिया गया। यह सभी जानते हैं कि कांग्रेस और समाजवादी पार्टी अपने आपको धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दल मानती है और इन्हीं दलों ने मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति की। इसके कारण देश में जिस प्रकार से वर्ग भेद की खाई पैदा हुई, उससे आज का वातावरण पूरी तरह से प्रदूषित हो रहा है।

    अभी हाल ही में जिस प्रकार रामनवमी और हनुमान जन्मोत्सव की शोभायात्राओं पर पत्थरबाजी की गई, वह देश के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप की परिभाषा के दायरे में बिलकुल नहीं आता। धर्मनिरपेक्षता की सही परिभाषा यही है कि देश में धर्मों को समान दृष्टि से देखा जाए, लेकिन क्या देश में समाज के द्वारा सभी धर्मों को समान रूप से देखने की मानसिकता विकसित हुई है। अगर नहीं तो फिर धर्मनिरपेक्षता का कोई मतलब नहीं है। वस्तुत: धर्मनिरपेक्षता शब्द समाज में समन्वय स्थापित करने में नाकाम साबित हो रहा है, इसके बजाय वर्ग भेद बढ़ाने में ही बहुत ज्यादा सहायक हो रहा है। हालांकि यह शब्द भारत के मूल संविधान का हिस्सा नहीं था। इसे इंदिरा गांधी के शासनकाल में आपातकाल के दौरान जोड़ा गया। इस शब्द के आने के बाद ही देश में तुष्टिकरण की राजनीतिक भावना ज्यादा जोर मारने लगी।

    यहां हम हिन्दू और मुस्लिम वर्ग को अलग-अलग देखने को प्रमुखता नहीं दे रहे हैं। और न ही ऐसा दृश्य दिखाने का प्रयास ही करना चाहिए। बात देश के समाज की है, जिसमें हिन्दू भी आता है और मुस्लिम भी। जब हम समाज के तौर पर चिंतन करेंगे तो स्वाभाविक रूप से हमें वह सब दिखाई देगा, जो एक निरपेक्ष व्यक्ति से कल्पना की जा सकती है। लेकिन इसके बजाय हम पूर्वाग्रह रखते हुए किसी बात का चिंतन करेंगे तो हम असली बातों से बहुत दूर हो जाएंगे। आज देश में यही हो रहा है। आज का मीडिया अखलाक और तबरेज की घटना को भगवा आतंक के रूप में दिखाने का साहस करता दिखता है, लेकिन इन घटनाओं के पीछे का सच जानने का प्रयास नहीं किया जाता। संक्षिप्त रूप में कहा जाए तो इन दोनों की अनुचित क्रिया की ही समाज ने प्रतिक्रिया की थी, जो समाज की जाग्रत अवस्था कही जा सकती है। यही मीडिया उस समय अपनी आंखों पर पट्टी बांध लेता है, जब किसी गांव से हिन्दुओं के पलायन की खबरें आती हैं। जब महाराष्ट्र के पालघर में दो संतों की पीट-पीट कर हत्या कर दी जाती है।

    इसी प्रकार महाराष्ट्र में हनुमान चालीसा पढ़ने की कवायद पर सांसद नवनीत राणा और उनके पति रवि राणा पर राष्ट्रद्रोह का प्रकरण दर्ज हुआ है। हो सकता है कि राणा दंपत्ति का तरीका गलत हो, लेकिन कम से कम भारत में हनुमान चालीसा पढ़ने को गलत तो नहीं ठहराया जा सकता। जब हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात करते हैं तो हिन्दू समाज के व्यक्तियों की ओर से की गई जायज कार्यवाही को इस दायरे से बाहर क्यों रखा जाता है।

    अब फिर से हम अपने मूल विषय पर आते हैं। आज कई लोग और राजनेता यह सवाल उठाते हैं कि हिन्दू उनके क्षेत्र से यात्रा क्यों निकालता है? यह सवाल इसलिए भी जायज नहीं कहा जा सकता है कि जब देश में सभी धर्मों के धार्मिक समारोह बिना किसी रोकटोक के किसी भी स्थान से निकाले जा सकते हैं, तब हिन्दू समाज की धर्म यात्राएं क्यों नहीं निकाली जा सकती। आज अगर वे अपने मोहल्ले से रोक रहे हैं, तब कल यह भी हो सकता है कि पूरे नगर में पत्थरबाजी करके रोकने का प्रयास करें। हो सकता है कि यह घटनाएं अभी छोटे रूप में प्रयोग के तौर पर हो रही हों, लेकिन कल के दिन जब इस प्रकार की घटनाएं बड़ा रूप लेंगी, तब स्थिति हाथ से निकल जाएगी। इसलिए समाज के बीच लकीर खींचने वाले ऐसे किसी भी प्रयास का किसी भी वर्ग को समर्थन नहीं करना चाहिए। आज ऐसे प्रयासों की आवश्यकता है, जिससे समाज के बीच सामंजस्य स्थापित हो सके। इसके लिए सारे समाज को अपनी ओर से प्रयास करने चाहिए।

    आज हमें धर्मनिरपेक्षता के असली मायनों को समझने की आवश्यकता है। भारतीय समाज के सभी नागरिकों को एक-दूसरे की खुशियों में शामिल होकर ऐसा भाव प्रदर्शित करना चाहिए, जो एकता की भावना को पुष्ट कर सके। इसके लिए सबसे पहले हमारे राजनीतिक दलों के नेताओं की ओर से प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। हालांकि आज जिस प्रकार से राजनीति की जा रही है, उसको देखते हुए यह उम्मीद बहुत कम है। इसलिए यह प्रयास मुस्लिम और हिन्दू समाज की ओर से ही प्रारंभ किए जाएं, यह समय की मांग है।

    (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

    Share:

    सेबस्टियन बेज ने जीता एस्टोरिल ओपन टेनिस टूर्नामेंट का खिताब

    Tue May 3 , 2022
    एस्टोरिल। अर्जेंटीना के स्टार टेनिस खिलाड़ी (Argentine star tennis player) सेबस्टियन बेज (Sebastian Baez) ने एस्टोरिल ओपन का खिताब (Estoril Open title) जीत लिया है। खिताबी मुकाबले में बेज ने फ्रांसेस टियाफो (Frances Tiafo) को सीधे सेटों में हराकर अपना पहला एटीपी टूर खिताब जीता। अपने दूसरे टूर-लेवल फाइनल में खेल रहे 21 वर्षीय बेज […]
    सम्बंधित ख़बरें
  • खरी-खरी
    गुरुवार का राशिफल
    मनोरंजन
    अभी-अभी
    Archives
  • ©2024 Agnibaan , All Rights Reserved