बांदा: यूपी में योगी सरकार दोबारा बनने पर ‘लेटकर परिक्रमा’ करने की कसम खाने वाले बांदा के दो लोगों की सीएम योगी से मिलने की आस अधूरी रह गई है. इन दोनों को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिले बिना ही लखनऊ से अपने गांव वापस लौटना पड़ा. हालांकि इस दौरान अधिकारियों ने उनकी समस्याएं पूछी और उन्हें दोबारा 15 अप्रैल के बाद आने को कहा.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अपना भगवान मान चुके इन लोगों को उनसे न मिल पाने का मलाल है. वहीं गांव वापस लौटने पर ग्रामीणों ने इनका दिल खोलकर स्वागत किया. इनके नाम जयपाल और मुन्नीलाल बताए जा रहे हैं जो आपस में चाचा-भतीजे भी हैं. दोनों 24 मार्च को मुख्यमंत्री योगी से मिलने के लिए लेटकर परिक्रमा करते हुए लखनऊ के लिए निकले थे. दोनों ने दावा किया कि करीब 10-12 दिन के कठिन सफर के बाद वह लखनऊ स्थित सीएम दफ्तर पर मत्था टेक वापस घर लौटे हैं. हालांकि सीएम योगी से उनकी मुलाकात नहीं हुई है जिससे वह निराश हैं.
ऐसे लेटकर पहुंचे लखनऊ
गांव से मुख्यमंत्री कार्यालय की दूरी तकरीबन 250 किलोमीटर है, सिर्फ लेटकर दोनों ने यह सफर कैसे पूरा किया? इस पर दोनों का कहना है कि वह दिन और रात में सिर्फ 2-2 घंटे आराम करते थे, कोशिश यह होती थी रात में ज्यादा तय कर ली जाए. दावा किया कि 12 दिन में लखनऊ पहुंचे लेकिन लौटने पर वाहन का सहारा ले लिया. दोनों ने लखनऊ पहुंचकर सीएम से मिलने की अर्जी लगाई. लेकिन अधिकारियों ने बताया कि सीएम गोरखपुर में हैं.
हालांकि अधिकारियों ने दोनों से समस्याएं पूछी और 15 अप्रैल के बाद आने को कहा. भक्त जयपाल और मुन्नीलाल ने ‘आज तक’ से बातचीत करते हुए बताया, ‘हमारी मुख्यमंत्री से मुलाकात नहीं हुई, अधिकारियों ने बताया कि वह गोरखपुर चले गए हैं. हम बहुत गरीब हैं अगर मुख्यमंत्री के हमें दर्शन हो जाते तो हम गांव की और अपनी समस्याओं पर उनसे बात करते, लेकिन अधिकारियों ने हमें आश्वासन दिया है कि हमारी मदद करेंगे.’
दोनों भक्तों मुन्नीलाल और जयपाल अभी भी सीएम योगी से मिलने के लिए आतुर हैं, घर में उनके दीर्घायु की पूजा अर्चना भी कर रहे हैं. उन्होंने गांव के लोगों से चंदा इकट्ठा कर अभी नवरात्रि के पूजा के साथ कन्या भोजन करवाने का फैसला किया है. बस उनका मन योगी के दर्शन को बेहाल है. गांव के प्रधान प्रदीप द्विवेदी ने कहा कि योगी जी के भक्त हैं, दोनों सरकार बनने के बाद योगीजी के दर्शन के लिए यहां से लखनऊ तक लेटकर गए हैं, गांव के लोगों ने अपना सहयोग भी दिया, ये बहुत ही गरीब हैं, न इनके जमीन है न और कुछ बस मजदूरी कर अपने बच्चों का पेट पालते हैं.
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