जेनेवा । पाकिस्तान में बलूचों पर हो रहे अत्याचार का मामला संयुक्त राष्ट्र (यूएन) में उठाया गया है। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने बलूचों के खिलाफ पाकिस्तान सरकार की बर्बरता पर रोक लगाने का आग्रह किया है। बलूच मानवाधिकार कार्यकर्ता मजदक दिलशाद बलूच ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग के 45वें सत्र से इतर एक कार्यक्रम में कहा कि बलूचिस्तान में मार्च, 1947 से रक्त बह रहा है। पाकिस्तान सेना को यहां हत्या, दुष्कर्म, अत्याचार, घरों को फूंकने और लोगों को गायब करने का लाइसेंस दे दिया गया है। यही नहीं हमारे बंदरगाहों और सोने की खदानों को चीन को बेचा जा रहा है।’
इसी कार्यक्रम में बलूच पीपुल्स कांग्रेस की अध्यक्ष नाएला कादरी बलूच ने पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में बलूच लोगों के खिलाफ हिंसा और उत्पीड़न का आरोप लगाया। उन्होंने यूएन से मामले में दखल देने और क्षेत्र में चल रहे नरसंहार पर रोक लगाने की मांग की। उन्होंने कहा, ‘वहां (बलूचिस्तान) ऐसी स्थिति है, जिसे आप नरसंहार कह सकते हैं। इसे सिर्फ मानवाधिकार हनन तक सीमित नहीं किया जा सकता है। पिछले दो दिनों में कांफ्रेंस में बलूचों ने बलूचिस्तान में नरसंहार की स्थिति को पेश किया। हम अपील करते हैं कि संयुक्त राष्ट्र दखल दे।’
वहीं, इस दौरान जर्मन मानवाधिकार कार्यकर्ता क्लाउडिया वाडलिच और जापानी कार्यकर्ता शुन फुजिकी ने भी बलूचों पर अत्याचार को लेकर पाकिस्तान को घेरा है। प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर बलूचिस्तान विकास के मामले में पाकिस्तान का काफी पिछड़ा प्रांत है। यहां पिछले कई दशकों से आजादी के लिए आंदोलन चल रहा है। सुरक्षा एजेंसियों द्वारा प्रांत में बड़ी संख्या में राजनीतिक कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवियों, महिलाओं और बच्चों को गायब कर दिया गया है।
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