– डॉ. वेदप्रताप वैदिक
इस समय यूक्रेन पर सारी दुनिया की नजर लगी हुई हैं, क्योंकि अमेरिका और रूस एक-दूसरे को युद्ध के धमकी दे रहे हैं। जैसे किसी जमाने में बर्लिन को लेकर शीतयुद्ध के उष्णयुद्ध में बदलने की आशंका पैदा होती रहती थी, वैसा ही आजकल यूक्रेन को लेकर हो रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और विदेश मंत्री खुलेआम रूस को धमकी दे रहे हैं कि यदि रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो उसके नतीजे बहुत बुरे होंगे।
सचमुच यदि यूरोप में युद्ध छिड़ गया तो इस बार वहां प्रथम और द्वितीय महायुद्ध से भी ज्यादा लोग मारे जा सकते हैं, क्योंकि इन युद्धरत राष्ट्रों के पास अब परमाणु शस्त्रास्त्रों और प्रक्षेपास्त्रों का अंबार लगा हुआ है। रूस ने यूक्रेन की सीमा पर लगभग एक लाख फौजियों को अड़ा रखा है। यूक्रेन के दोनबास क्षेत्र पर पहले से रूस-समर्थक बागियों का कब्जा है।
यूक्रेन पर लंबे समय तक रूस का राज रहा है। वह अभी लगभग दो-दशक पहले तक रूस का ही एक प्रांत भर था। सोवियत रूस के विश्व-प्रसिद्ध नेता निकिता ख्रुश्चौफ यूक्रेन में ही पैदा हुए थे। इस समय यूरोप में यूक्रेन ही रूस के बाद सबसे बड़ा देश है। लगभग सवा चार करोड़ की आबादी वाला यह पूर्वी यूरोपीय देश पश्चिमी यूरोप के अमेरिका-समर्थक देशों के साथ घनिष्ठ संबंध बनाने की कोशिश करता रहा है। वह रूस के शिकंजे से उसी तरह बाहर निकलना चाहता है, जिस तरह से सोवियत खेमे के अन्य 10 देश निकल चुके हैं। उसने यूरोपीय संघ के कई संगठनों के साथ सहयोग के कई समझौते भी कर लिये हैं।
रूस के नेता व्लादिमीर पुतिन को डर है कि कहीं यूक्रेन भी अमेरिका के सैन्य संगठन ‘नाटो’ का सदस्य न बन जाए। यदि ऐसा हो गया तो नाटो रूस की सीमाओं के बहुत नजदीक पहुंच जाएगा। यों भी एस्तोनिया, लेटविया और लिथुवानिया नाटो के सदस्य बन चुके हैं, जो रूस के सीमांत पर स्थित हैं। यूक्रेन और जार्जिया जैसे देशों को रूस अपने प्रभाव-क्षेत्र से बाहर नहीं खिसकने देना चाहता है। लेनिन के बाद सबसे अधिक विख्यात नेता जोजफ़ स्तालिन का जन्म जार्जिया में ही हुआ था। इन दोनों देशों के साथ-साथ अभी भी मध्य एशिया के पूर्व-सोवियत देशों में रूस का वर्चस्व बना हुआ है।
अफगानिस्तान से अमेरिकी पलायन के कारण रूस की हिम्मत बढ़ी है। यों भी यूक्रेन पर बाइडन और पुतिन के बीच सीधा संवाद भी हो चुका है और दोनों देशों के विदेश मंत्री भी आपस में बातचीत कर रहे हैं। मुझे नहीं लगता कि यूक्रेन को लेकर दोनों महाशक्तियों के बीच युद्ध छिड़ेगा, क्योंकि वैसा होगा तो यूरोप के नाटो देशों को मिलने वाली रूसी गैस बंद हो जाएगी। उनका सारा कारोबार ठप्प हो जाएगा और उधर रूस की लड़खड़ाती हुई अर्थ-व्यवस्था पैंदे में बैठ जाएगी।
खुद यूक्रेन भी युद्ध नहीं चाहेगा, क्योंकि लगभग एक करोड़ रूसी लोग वहां रहते हैं। इस संकट में भारत की दुविधा बढ़ गई है। इस समय भारत तो अमेरिका के चीन-विरोधी मोर्चे का सदस्य है और वह रूस का भी पुराना मित्र है। उसे बहुत फूंक-फूंककर कदम रखना होगा।
(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं।)
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved