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उज्जैन शताब्दियों तक खगोल विज्ञान का मुख्य केन्द्र रहा, मध्य रेखा गुजरी

July 26, 2024

  • भारत सरकार द्वारा स्थापित राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद द्वारा जारी पुस्तक में माना

उज्जैन। शहर अपने प्राचीन अतीत और पवित्र मंदिरों के लिए भारत के सबसे पावन शहरों में से एक माना जाता है लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि यह शहर भारतीय खगोल विज्ञान में भी एक विशेष स्थान रखता है जिसके कारण इसे भारत का ग्रीनविच भी कहा जाता रहा है। एक समय में पूरे विश्व का समय या काल उज्जैन से ही तय होता था। हाल ही में एनसीईआरटी की नई पाठ्यपुस्तक ये भी दावा किया गया है कि भारत के पास थी अपनी मध्यरेखा थी जो मध्य प्रदेश के उज्जैन से होकर गुजरती थी।


बता दें कि कक्षा 6 के लिए नई सामाजिक विज्ञान की पाठ्यपुस्तक राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) की तरफ से प्रकाशित इतिहास, भूगोल और नागरिक शास्त्र की तीन अलग-अलग पुस्तकों का एक बहुत छोटा-सा मिश्रण है। एनसीईआरटी कक्षा-6 की नई पाठयपुस्तक सामाजिक विज्ञान के भूगोल सेक्शन में एक जानकारी को शामिल किया गया है। जिसमें लिखा गया है कि ग्रीनविच मध्य रेखा से काफी पहले भारत की अपनी प्रधान मध्य रेखा थी जो मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर से गुजरती थी। इसमें हड़प्पा सभ्यता की जगह सिंधु-सरस्वती सभ्यता या इंडस-सरस्वती सभ्यता शब्द का इस्तेमाल किया गया है जो कि नए पाठ्यक्रम के अनुसार विकसित पाठयपुस्तक में किए गए परिवर्तनों में से ही कई शताब्दियों पहले भारत के पास थी। मध्य रेखा एनसीईआरटी की पाठयपुस्तक के अनुसार, ग्रीनविच मेरिडियन पहली प्रधान मध्यरेखा नहीं है। यूरोप से कई शताब्दियों पहले भारत के पास अपनी एक प्रधान मध्य रेखा थी। इसे मध्य रेखा कहा जाता था। यह उज्जयिनी (उज्जैन) शहर से होकर गुजरती थी। जानकारी के अनुसार उज्जैन कई शताब्दियों तक खगोल विज्ञान का एक प्रतिष्ठित केंद्र था। इसमें ये भी जिक्र किया गया है कि प्रसिद्ध खगोलशास्त्री वराहमिहिर लगभग 1,500 साल पहले उज्जैन में ही रहते थे। भारतीय खगोलशास्त्रियों को अक्षांश, देशांतर, शून्य और प्रधान मध्य रेखा की जानकारियाँ थी। उज्जयिनी मध्य रेखा सभी भारतीय खगोल ग्रंथों में गणनाओं के लिए एक संदर्भ बन गई। एनसीईआरटी के निदेशक दिनेश सकलानी ने नई पाठ्यपुस्तक के परिचयात्मक अध्याय में लिखा है, हमने बड़े विचारों पर ध्यान केंद्रित करके पाठ को न्यूनतम रखने की कोशिश की है। इससे हम कई विषयों- चाहे इतिहास, भूगोल, राजनीति विज्ञान या अर्थशास्त्र से एक ही विषय में इनपुट को संयोजित करने में सक्षम हुए हैं। उज्जैन में लगभग छठी-सातवीं सदी में खगोल विज्ञान का विकास हुआ और यह खगोलीय अनुसंधान का केंद्र बन गया। प्रसिद्ध खगोलशास्त्री और बहुश्रुत वराहमिहिर उज्जैन के ही थे। उनकी सबसे उल्लेखनीय रचनाएँ बृहत्संहिता और पंच सिद्धांतिका थीं। बृहत्संहिता एक विश्वकोश है, जिसमें ग्रहों की गति, ज्योतिष, समय-पालन, ग्रहण से लेकर वास्तुकला, इत्र और कृषि तक जैसे विषय शामिल हैं। पंच सिद्धांति का एक गणितीय खगोल विज्ञान ग्रंथ है, जो पाँच प्राचीन ग्रंथों सूर्य सिद्धांत, रोमका सिद्धांत, पौलिसा सिद्धांत, वशिष्ठ सिद्धांत और पितामह सिद्धांत का सारांश है।

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