नई दिल्ली: महाराष्ट्र में मंत्री एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद उद्धव सरकार का जाना अब लगभग तय हो गया है. सियासी उठापटक के तीसरे दिन शिवसेना के 37 से ज्यादा विधायक गुवाहाटी पहुंच चुके हैं. महा विकास आघाडी सरकार के सामने आए सियासी संकट से कैसे निपटा जाए इसे लेकर कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना लगातार मंथन में जुटे हुए हैं, लेकिन कोई हल निकलता नहीं दिख रहा है. मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की कुर्सी जाने की पठकथा लिखी जा चुकी है. ऐसे में अब सीएम उद्धव के सामने सत्ता को बचाए रखने का क्या राजनीतिक विकल्प बचते हैं?
सीएम उद्धव ठाकरे ने बुधवार शाम मुख्यमंत्री आवास छोड़कर मातोश्री (अपने घर) पहुंच गए हैं. ठाकरे ने फिलहाल सीएम पद नहीं छोड़ा है, लेकिन उन्होंने इशारा दिया कि बागी अगर सामने आकर बात करें तो वह इसके लिए भी तैयार हैं. इसके बावजूद शिवसेना में मची भगदड़ थम नहीं रही है, जिससे बागी हो चुके एकनाथ शिंदे गुट की ताकत बढ़ती जा रही है. सीएम उद्धव के खुले आफर के बाद भी शिंदे का दिल नहीं पसीज रहा है. ऐसे में सीएम उद्धव ठाकरे किस तरह से सत्ता के बचाए रख पाते हैं?
शिंदे को मुख्यमंत्री बनाकर बचा सकते हैं सत्ता
एकनाथ शिंदे के साथ जिस तरह से शिवसेना के विधायक खड़े नजर आ रहे हैं, उससे उद्धव ठाकरे के सामने अपनी खुद की कुर्सी को बचाए रखने से अब ज्यादा पार्टी और सत्ता को बचाने की चुनौती खड़ी हो गई है. ऐसे में उद्धव ठाकरे ने बुधवार को भावुक संदेश भी दिया, जिसमें कहा कि अगर उनके अपने लोग उन्हें मुख्यमंत्री के पद पर नहीं देखना चाहते हैं तो उन्हें वह इसके लिए तैयार हैं. हालांकि, उन्होंने कहा कि मैं चाहता हूं कि कोई शिवसैनिक ही मुख्यमंत्री बने. इससे साफ जाहिर होता है कि उद्धव ठाकरे सत्ता को बचाने के लिए किसी भी शिवसैनिक को मुख्यमंत्री बनने का लिए भी कदम बढ़ा सकते हैं.
उद्धव ठाकरे के खिलाफ शिवसेना के विधायकों ने जिस तरह से बगावत की है, उससे साफ है कि उनकी कुर्सी जानी है. ऐसे में उनके सामने एक ही विकल्प बचता है कि वो एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाने का दांव चल दें. कांग्रेस और एनसीपी ने शिवसेना प्रमुख और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को यही सुझाव दिया है कि एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बना दिया जाए. ऐसे में उद्धव ठाकरे इस जबरदस्त सियासी संकट से सरकार और शिवसेना को बचाने के लिए क्या एकनाथ शिंदे को सीएम बनाने का कदम उठाएंगे. ऐसा होने पर यह हो सकता है कि महा विकास आघाडी और शिवसेना के सामने आया यह सियासी संकट खत्म हो जाए.
हालांकि, एकनाथ शिंदे ने बुधवार को ट्वीट कर शिवसेना के कांग्रेस और एनसीपी के साथ गठबंधन को अप्राकृतिक बताया था और इससे बाहर निकलना जरूरी बताया था. उन्होंने कहा था कि शिवसेना कार्यकर्ताओं में एनसीपी-कांग्रेस के साथ सरकार बनाए जाने को लेकर भी नाराजगी है, क्योंकि उनकी विचारधारा पूरी तरह शिवसेना के विपरित है. ऐसे में एकनाथ शिंदे जिस तरह से कांग्रेस-एनसीपी को लेकर आक्रामक है और बीजेपी के साथ सरकार बनाने का विकल्प दे रहे हैं. ऐसे में उद्धव ठाकरे के सामने शिंदे को सीएम ही नहीं बल्कि महा विकास आघाड़ी से अलग होने पर विकल्प तलाशना होना.
बीजेपी के साथ सरकार बनाने का विकल्प
शिवसेना से बागी हुए एकनाथ शिंदे जिस तरह से कांग्रेस और एनसीपी से नाता तोड़ने को लेकर सख्त रुख अख्तियार किए हुए हैं और पार्टी के तमाम विधायक उनके समर्थन में खड़े नजर आ रहे हैं. ऐसे में उद्धव ठाकरे के सामने दूसरा विकल्प यह है कि कांग्रेस-एनसीपी के साथ गठबंधन तोड़कर बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना लें, क्योंकि शिवसेना में बगावत के बाद तो उनकी कुर्सी जानी तय है. ऐसे में बीजेपी के साथ हाथ मिलाने पर सत्ता में जरूर बनेंगे रहेंगे. एकनाथ शिंदे लगातार बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाने का सुझाव दे रहे हैं.
मुख्यमंत्री के तौर पर उद्धव ठाकरे ने ढाई साल का सफर तय कर लिया है. 2019 के विधानसभा चुनाव नतीजे के बाद उद्धव ठाकरे ने बीजेपी के सामने ढाई-ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री का फॉर्मूला रखा था, जिस पर बीजेपी सहमत नहीं थी. इसी के चलते उद्धव ठाकरे बीजेपी के साथ नाता तोड़कर अपने वैचारिक विरोधी कांग्रेस-एनसीपी के साथ हाथ मिलाकर सीएम बने गए. ऐसे में उद्धव ठाकरे ने भले ही बीजेपी के बजाय कांग्रेस-एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बनाई हो, लेकिन ढाई साल के मुख्यमंत्री का कार्यकाल पूरा कर लिया. ऐसे में अगर उद्धव ठाकरे सीएम की कुर्सी छोड़ते हैं तो उनकी हार नहीं मानी जाएगी.
शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री बनने का सपना भी साकार हो गया, लेकिन एकनाथ शिंदे के बगवात से जिस तरह का सियासी संकट खड़ा है. उसमें सिर्फ सीएम कुर्सी से कहीं ज्यादा उद्धव के सामने अपनी पार्टी को बचाने की चुनौती है. शिवसेना के विधायक से लेकर सांसद तक बागी हो चुके हैं.
वहीं, शिवसेना को भविष्य में अगर महाराष्ट्र की सियासत में अपना वर्चस्व जारी रखना है तो एनसीपी और कांग्रेस के साथ संभव नहीं है, क्योंकि दोनों ही एक दूसरे के वैचारिक विरोधी रहे हैं. शिवसेना और बीजेपी दोनों ही हार्ड हिंदुत्व की राजनीति करती रही हैं, जिसके चलते 25 साल साथ रहे. ऐसे में उद्धव ठाकरे के लिए बीजेपी के साथ हाथ मिलाकर सत्ता में बने रहने और पार्टी को बचाए रखने का विकल्प है. देखना है कि उद्धव क्या सियासी कदम उठाते हैं?
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