नई दिल्ली । महाराष्ट्र (Maharashtra)की राजनीति में उभर(emergence in politics) रहे नए समीकरणों (The new equations)से राज्य में बड़े बदलाव (Big changes in the state)आने के संकेत मिलने लगे हैं। शिवसेना के मुखपत्र सामना में संजय राउत की मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की तारीफ और एनसीपी (शरद पवार) के प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल की भाजपा अध्यक्ष चंद्रशेखर बाबनकुले से हुई मुलाकात को काफी अहम माना जा रहा है। इसके पहले हाल में ही एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शरद पवार का करीब आना भी काफी महत्वपूर्ण है।
महाराष्ट्र विधानसभा में भाजपा नेतृत्व वाली महायुति की भारी जीत के बाद विपक्ष के हौसले पस्त हो गए थे। मुख्यमंत्री बने भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस ने सरकार के दोनों सहयोगी दलों शिवसेना (शिंदे) और एनसीपी (अजित पवार) को साध के रखा हुआ है। हालांकि, शिवसेना शिंदे के नेता और उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के साथ सामंजस्य की कमी कई बार सामने आई है। इसका दोनों तरफ से खंडन तो किया गया है, लेकिन मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद शिंदे सहज नहीं दिख रहे हैं। ऐसे में शरद पवार और शिवसेना (उद्धव ठाकरे) के साथ उभर रहे नए समीकरण शिंदे के लिए और चिंता बढ़ा सकते हैं।
दोनों ही बातों पर नजर है
महाराष्ट्र में स्थानीय निकायों में महायुति को बड़ी जीत दिलाने के लिए फडणवीस कड़े कदम उठा रहे हैं, जिनमें मंत्रियों के निजी सहायकों की नियुक्ति का मामला अहम है। शिंदे गुट के कई मंत्रियों के निजी सहायकों के लिए आए विवादित नामों को फडणवीस ने रोक दिया है। इस काम की सामना में तारीफ की गई है। संजय राउत ने सामना में इस पर एकनाथ शिंदे पर निशाना भी साधा है।
सूत्रों का कहना है शिवसेना (उद्धव ठाकरे) का एक तबका भाजपा के साथ आने की कोशिश में है और वह इसके लिए शिंदे गुट को भड़काने का काम कर रहा है। फिलहाल, भाजपा भी इससे शिंदे को संदेश देकर समीकरण साध रही है। महाराष्ट्र में हाल में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा के गठबंधन महायुति ने भारी जीत दर्ज करते हुए 288 सदस्यीय विधानसभा में 234 सीट जीती थी।
शरद पवार भी कमजोर पड़ रहे
एनसीपी (शरद पवार) के नेता शरद पवार के साथ प्रधानमंत्री मोदी का बेहद सदाशयता भरा व्यवहार और उसके बाद उसके प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल की भाजपा अध्यक्ष बाबनकुले के साथ मुलाकात के भी राजनीतिक मायने हैं। इससे भाजपा कांग्रेस को झटका देने के साथ महाविकास आघाड़ी को आगामी निकाय चुनाव में और कमजोर करने में जुटा है। शरद पवार भी राज्य की राजनीति में कमजोर पड़ रहे हैं। ऐसे में उनको भी नए फैसले लेने पड़ सकते हैं।
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