इंदौर, प्रियंका जैन देशपांडे। जन्म के साथ ही आंखों की रोशनी लेकर पैदा नहीं हुई मासूम को भगवान के अन्याय के साथ-साथ माता-पिता के दुत्कार करने का दंश भी झेलना पड़ा। दो साल से मां के लाड़-दुलार और आंचल की छांव के लिए तरस रही दृष्टिहीन बच्ची अब यूएसए के परिवार में पलेगी-बढ़ेगी। स्टेट आफ अलवामा के दम्पति ने इंदौर की दृष्टिहीन बालिका को गोद लिया है। लगभग एक महीने बाद बच्ची को माता-पिता के साथ तीन-भाई बहनों का दुलार भी मिला।
दृष्टिहीन होने के कारण दो साल पहले जिस बच्ची को बोझ समझकर मां-बाप ने महिला एवं बालविकास विभाग के आश्रम में छोड़ दिया था, उसे अब न केवल यूएसए के परिवार ने अपना लिया है, बल्कि उसके पालन-पोषण के साथ साथ दत्तक प्रक्रिया पूरी कर लीगल गार्जियन भी बन गए हैं। जन्म से अंधत्व का शिकार बच्ची को न पाल सकने की सूरत में बाल कल्याण समिति के समक्ष जन्म देने वाले माता-पिता ने सरेण्डर कर दिया था, जिसे संजीवनी सेवा संगम आश्रम के माध्यम से दत्तक ग्रहण प्रक्रिया की अनुमति मिली। यह बच्ची 2022 से मासूम मां के आंचल के लिए तरस रही थी, लेकिन एक साल बाद ही जुलाई माह में विदेश में बैठे दम्पति ने उसे केन्द्र सरकार की दत्तक ग्रहण के लिए बनाई गई साइट कारा पर अपनाने के लिए आवेदन दिया। जिसे 27 दिसम्बर 2023 को और 1 जनवरी को इंदौर की संजीवनी सेवा संगम के माध्यम से आवेदन का कलेक्टर ने अनुमोदन किया और एडीएम रोशन राय ने आदेश जारी कर दिया।
पूरे मध्यप्रदेश में जन्म से 2 साल तक के बच्चों को गोद लेने के लिए 5 हजार से अधिक दम्पति कतार में हैं, जिसमें से 2800 दम्पतियों ने लडक़े को गोद लेने के लिए आवेदन किया है, वहीं 2200 ऐसे दम्पति हैं, जो अपने घर में लाड़ली का सपना देख रहे हैं, वहीं इंदौर जिले में 75 स्पेशल नीड (दिव्यांग) बच्चे अब भी परिवार को तरस रहे हैं। 72 बच्चे संस्था युगपुरुष धाम में निवासरत हैं। इन्हें कानूनी प्रक्रिया के माध्यम से लीगल फ्री कर दिया गया है, लेकिन अधिक उम्र होने के कारण इन बच्चों को माता-पिता नसीब नहीं हो रहे हैं। हालांकि 75 बच्चों में तीन बच्चे विभिन्न परिवारों द्वारा रिजर्व कर लिए गए हैं, वहीं एक और स्पेशल नीड दिव्यांग लडक़े को यूएसए के ही एक अन्य परिवार ने रिजर्व किया है। महिला एवं बालविकास विभाग के अधिकारियों ने अपील की है कि सामान्य बच्चों के साथ-साथ इन बच्चों को भी संरक्षण और परिवार की दरकार है।
यह है प्रक्रिया…
नि:संतान दम्पति या अपने परिवार में ही बच्चे को गोद लेने की इच्छा रखने वाले दम्पति कारा साइड पर जाकर रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं, जहां उपलब्ध बच्चों की सूची और फोटो रहते हैं। उन्हें रिजर्व करने के बाद कारा से अनुमति व एनओसी की प्रक्रिया कराई जाती है, जिसके बाद संस्था के अधीक्षक को बच्चों से मिलाने की अनुमति दी जाती है। मेडिकल टेस्ट, डाक्यूमेंटेंशन की प्रक्रिया से गुजरने के बाद प्रकरण कलेक्टर के समक्ष अनुमति के लिए पेश किए जाते हैं। वहीं यह प्रक्रिया विदेश के दम्पतियों के लिए आफा के माध्यम से पूरे किए जाते हैं। माता-पिता के संतुष्ट होने के बाद ओरिजनल डाक्यूमेंट संस्था में जमा कराने की प्रक्रिया कराई जाती है। इसके बाद ही कोई दम्पति किसी बच्चे को गोद ले सकता है।
अब तक 26 बच्चे दिए गोद
पिछले साल के आंकड़ों पर नजर दौड़ाई जाए तो तत्कालीन कलेक्टर इलैयाराजा टी ने 22 बच्चों की एडआप्शन प्रक्रिया पर मुहर लगाई थी, वहीं वर्तमन कलेक्टर आशीष सिंह ने आते ही चार बच्चों को माता-पिता दिलाए हैं। सामान्य श्रेणी के बच्चों में सबसे ज्यादा 25 बच्चे गोद लिए गए हैं। एक मासूम जो दृष्टिहीन है, उसे यूएसए के दम्पति ने अपने परिवार का हिस्सा बनाने की प्रक्रिया लगभग पूरी कर ली है। 26 बच्चों में से 25 बच्चे अपने देश में ही रहेंगे, वहीं एक मासूम विदेश में परिवार का हिस्सा बनेगा। अधिकारियों के अनुसार अब तक 15 स्पेशल लीड बच्चे विदेश जा चुके हंैं। यूएसए, इटली, स्पेन, न्यूजीलैंड, सिंगापुर के परिवारों ने भारत के इन मासूमों को गोद लिया है।
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