– डॉ. वेदप्रताप वैदिक
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने लाल किले के भाषण में देशवासियों को प्रेरित करने के लिए कई मुद्दे उठाए लेकिन दिनभर टीवी चैनलों पर पार्टी प्रवक्ता सिर्फ दो मुद्दों को लेकर एक-दूसरे पर जमकर प्रहार करते रहे। उनमें पहला मुद्दा परिवारवाद और दूसरा मुद्दा भ्रष्टाचार का रहा। यद्यपि मोदी ने किसी परिवारवादी पार्टी का नाम नहीं लिया और न ही किसी नेता का नाम लिया लेकिन उनका इशारा दो-टूक था। वह था कांग्रेस की तरफ। यदि कांग्रेस मां-बेटा या भाई-बहन पार्टी बन गई है तो, जो दुर्गुण उसके इस स्वरूप से पैदा हुआ है, वह किस पार्टी में पैदा नहीं हुआ है?
यह ठीक है कि कोई भी अखिल भारतीय पार्टी कांग्रेस की तरह किसी खास परिवार की जेब में नहीं पड़ी है। मगर आज अधिकतर पार्टियां प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह काम नहीं कर रही हैं। इनमें आंतरिक लोकतंत्र लकवाग्रस्त हो चुका है। एक नेता या मुट्ठीभर नेताओं ने लाखों-करोड़ों पार्टी कार्यकर्त्ताओं के मुंह पर ताले जड़ दिए हैं। भारत की प्रांतीय पार्टियां तो प्राइवेट लिमिटेड कंपनी का मुखौटा भी नहीं लगाती हैं। वे बाप-बेटा, भाई-भाई, बुआ-भतीजा, पति-पत्नी, प्रेमी-प्रेमिका, चाचा-भतीजा, ससुर-दामाद पार्टी की तरह काम कर रही हैं। ये सब पार्टियां परिवारवादी ही हैं।
इन परिवारवादी पार्टियों का मूलाधार जातिवाद है, जो परिवारवाद का ही बड़ा रूप है। ये पार्टियां थोक वोट के दम पर जिंदा हैं। थोक वोट आप चाहे जाति के आधार पर हथियाएं, चाहे हिंदू-मुसलमान के नाम पर कब्जाएं या भाषावाद के नाम पर गटकाएं, ऐसी राजनीति लोकतंत्र का दीमक है। हमारा लोकतंत्र दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र जरूर है लेकिन बड़ा हुआ तो क्या हुआ? जैसे पेड़ खजूर! पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर !! यदि 75 साल में भी इस खजूर के पेड़ को हम आम का पेड़ नहीं बना सके तो हम अपना सीना कैसे फुला सकते हैं? इस कमजोरी के लिए हमारे इन नेताओं के साथ जनता भी जिम्मेदार है।
इस साल यदि इस बीमारी का संसद कोई इलाज निकाल सके तो 2047 में भारत दुनिया का सर्वश्रेष्ठ लोकतंत्र बन सकता है। जहां तक भ्रष्टाचार का सवाल है, यह दृष्टव्य है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर आज तक उसका एक छींटा भी नहीं लगा है लेकिन यह भी तथ्य है कि प्रशासन और जनजीवन में आज भी भ्रष्टाचार का बोलबाला है। यदि भ्रष्टाचार को जड़मूल से नष्ट करना है तो सजाएं इतनी कठोर होनी चाहिए कि भावी भ्रष्टाचारियों के रोम-रोम को कंपा डालें।
(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं)
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