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    प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग के दो अलग-अलग आयोग

  • September 04, 2021

    • आरक्षण के बाद अब आयोग में नियुक्ति पर मचा घमासान
    • कोर्ट में है लंबित है पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष का मामला

    भोपाल। प्रदेश में ओबीसी (OBC) को 27 फीसदी आरक्षण को लेकर सरकार (Government) ने स्थित साफ कर दी है, इसके बावजूद भी घमासान मचा हुआ है। अब पिछड़ा वर्ग आयोग में अध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर भी विवाद शुरू हो गया है। सरकार ने दो दिन पहले राज्य पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग (State Backward Classes Welfare Commission) का अध्यक्ष भाजपा विधायक गौरीशंकर बिसेन (MLA Gaurishankar Bisen) को नियुक्त किया है। साथ ही उन्हें मंत्री का दर्जा भी दे दिया है। इस बीच मप्र राज्य पिछड़ा आयोग के अध्यक्ष जेपी धनोपिया (President JP Dhanopia) ने इस नियुक्ति पर सवाल खड़े कर दिए हैं। मप्र सरकार ने भी पिछड़ा वर्ग के दो आयोगों को लेकर स्थिति साफ की है कि मप्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग और राज्य पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग अलग-अलग हैं।



    धनोनिया ने कहा कि पिछड़ा आयोग के अध्यक्ष वे खुद हैं और यह मामला अभी कोर्ट (Court) में है। ऐसे में सरकार ने जो नियुक्ति की है वह पिछड़ा वर्ग को गुमराह करने के लिए की गई है। जेपी धनोपिया ने कहा कि सरकार ने राज्य पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग का अध्यक्ष गौरीशंकर बिसेन (Gaurishankar Bisen) को नियुक्त किया है। जबकि भाजपा और सरकार इस तरह से प्रचारित कर रही है कि बिसेन मप्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष हैं। बिसेन की नियुक्ति राज्य पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग के अध्यक्ष के लिए की गई है। जिसकी मुख्यमंत्री द्वारा 15 अगस्त को गठन की घोषणा की गई थी। यह एक सामान्य आयोग है। जबकि मप्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग एक संवैधानिक संस्था है, जिसके वे खुद अध्यक्ष्ज्ञ हैं। उच्च न्यायालय में प्रकरण चलने के दौरान शासन कोई नियुक्ति नहीं कर सकता। यह प्रयास पिछड़ा वर्ग के लोगों में भ्रम पैदा करना और असली मुद्दों से ध्यान भटकाने का हथकंडा है।

    मप्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग और राज्य पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग दोनों अलग-अलग हैं। हमारे लिए दोनों बराबर और सम्मानीय हैं। मप्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग का मामला अभी कोर्ट में विचाराधीन है।
    विनोद कुमार, अपर मुख्य सचिव, सामान्य प्रशासन विभाग

    कोर्ट के फैसले से पहले आरक्षण की क्या जल्दी क्यों: सपाक्स
    प्रदेश में ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण देने का मामला फिलहाल कोर्ट में है। जिस पर 20 सितंबर को अंतिम सुनवाई होना है। ऐसे में कोर्ट के फैसले से पहले पिछड़ा वर्ग को सरकारी नियुक्तियों में 27 फीसदी आरक्षण देने के फैसले पर सपाक्स ने सवाल उठाए हैं। सपाक्स की ओर से कहा गया है कि 1 सितंबर को प्रकरण में हुई सुनवाई में सरकार के तमाम तर्कों के बावजूद उच्च न्यायालय द्वारा अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण 14 फीसदी तक सीमित रखने के ही अंतरिम आदेश जारी रखे गए और अंतिम सुनवाई हेतु 20 सितंबर की तारीख तय की गई। सपाक्स का कहना है कि जब 20-30 दिनों में ही अंतिम फैसला हो जाना है तो फिर ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण देने पर इतनी बैचेनी क्यों। सपाक्स का दावा है कि जैसे ही 27 फीसदी के मान से भर्ती प्रक्रिया प्रारंभ होगी कोई न कोई पुन: न्यायालय की शरण लेगा और भर्तियों की प्रक्रिया बाधित होगी। पदोन्नति में आरक्षण फैसले पर कभी भी सरकार ने इतनी बैचेनी नहीं दिखाई जबकि उस फैसले से भी अन्य पिछड़ा वर्ग सीधे रूप से प्रभावित है। विगत 5 वर्षों से सामान्य, पिछड़ा व अल्पसंख्यक वर्ग के शासकीय कर्मी पदोन्नति से वंचित हैं। हालांकि सपाक्स ने ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण का विरोध नहीं किया है। सपाक्स का कहना है अन्य पिछड़ा वर्ग को तुलनात्मक रूप से कम प्राप्त हो रहे आरक्षण का वह हमेशा से विरोध करता रहा है।

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