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    चार साल में दो लाख टन से सौ लाख टन गेहूं निर्यात

  • April 22, 2022

    – डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

    पूरी दुनिया को अन्न देने की भारत की पेशकश, कोई बड़बोलापन या हवाई नहीं है। देश के अन्नदाताओं की मेहनत और सरकारी नीतियों का परिणाम है कि आज देश के गोदाम अन्न-धन से भरे हैं। दुनिया का बड़ा गेहूं उत्पादक देश होने के बावजूद गेहूं के निर्यात में चार साल पहले तक भारत की हिस्सेदारी नगण्य के बराबर रही है। पर पिछले चार साल में ही भारत गेहूं के निर्यात में लंबी छलांग लगाने की स्थिति में आ गया है।

    युद्ध और कोरोना जैसी महामारी के चलते दुनिया के देशोें के सामने खाद्यान्न का संकट आ गया है। वहीं, आबादी के हिसाब से दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश होने के बावजूद खाद्यान्न के मामले मेें आज भारत पूरी तरह आत्मनिर्भर होने के साथ दुनिया के देशों को खाद्यान्न उपलब्ध कराने की स्थिति में आ गया है। केवल चार साल में भारत ने गेहूूं निर्यात में नए आयाम स्थापित किए हैं। आज भारत दो लाख टन से सौ लाख टन, वो भी केवल चार साल में गेहूं के निर्यात के आंकड़े को छूने जा रहा है। यह सफलता किसी ऊंची उड़ान से कम नहीं। हालांकि गेहूं के निर्यात में भारत की हिस्सेदारी एक प्रतिशत से भी कम है। 2016 में 0.14 प्रतिशत की गेहूं निर्यात की हिस्सेदारी 2020 तक बढ़कर 0.54 प्रतिशत तक ही पहुंची है यानी की एक प्रतिशत से भी कम है पर हालात तेजी से बदल रहे हैं।

    पहले कोरोना और अब यूक्रेेन-रुस युद्ध ने दुनिया के सामने सारी तस्वीर बदल कर रख दी है। रूस और यूक्रेन पर पूरी तरह से निर्भर मिस्र जैसे अनेक देश आज भारत की ओर देख रहे हैं। पिछले दिनोें ही मिस्र ने भारत से गेहूं आयात करने को लेकर मंजूरी दी है। भारत ने भी मिस्र को शुरुआती दौर में 30 लाख टन गेहूं निर्यात का लक्ष्य तय किया है। देखा जाए तो भारत के पास गेहूं के भण्डार भरे हैं। इस साल भी गेहूं का रेकार्ड उत्पादन होने का अनुमान लगाया जा रहा है। मण्डियों में नए गेहूं की आवक शुरू हो गई है। हालांकि इस बार सरकारी खरीद का आंकड़ा छूने मेें परेशानी आ रही है और इसका कारण दूसरे अर्थों में सकारात्मक संकेत भी माना जाना चाहिए। क्योंकि इस साल मण्डियों में या यों कहें कि बाजार में गेहूं के भाव सरकार द्वारा घोषित एमएसपी से कहीं ज्यादा चल रहे हैं। यही कारण है कि पंजाब-हरियाणा तक में किसान सरकारी खरीद केन्द्रों के स्थान पर गेहूं सीधे बेचने या भण्डारित करने पर जोर दे रहे हैं।

    इसका एक कारण यह भी है कि अभी तो एमएसपी से अधिक भाव चल ही रहे हैं पर रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते आने वाले समय में गेहूं के भावों में और तेजी आने के कयास लगाए जा रहे हैं। माना जा रहा है कि गेहूं की विदेशों में मांग और अधिक बढ़ेगी और अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं के भाव बढ़ने का लाभ किसानों को भी मिलेगा। अमेरिकी विशेषज्ञों की मानें तो देश में 12 मिलियन टन गेहूं निर्यात के लिए मौजूद है।

    एक समय था जब अमेरिका जैसे देशों के सामने गेहूं के लिए हाथ फैलाना पड़ता था। पुरानी पीढ़़ी को आज भी याद है कि घटिया किस्म का गेहूं भारत आता था। लाल बहादुर शास्त्री जी को तो देशवासियों से एक दिन उपवास खासतौर से सोमवार को व्रत रखने का संदेश देना पड़ा था। आज भी शास्त्री जी के कोल को देखते हुए लोग सोमवार को उपवास रखते आ रहे हैं। खैर, किसानों की मेहनत, कृषि विशेषज्ञों के प्रयास और केन्द्र व राज्य सरकारों की नीतियों का ही परिणाम है कि आज भारत दुनिया के कई देशों की भूख मिटाने की स्थिति में आ गया है। यह तो आंकड़े बता रहे हैं। कोरोना के कारण देश के 80 करोड़ लोगों तक आज भी अन्न पहुंचाया जा रहा है तो कोविड की विपरीत परिस्थितियों में खाद्यान्न की कहीं भी कमी नहीं आने दी गई। यह सब अन्नदाता की मेहनत का परिणाम है।

    जहां तक गेहूं के निर्यात का प्रश्न है मिस्र द्वारा भारत से गेहूं मंगाने पर सहमति के बाद हालात और अधिक तेजी से बदलेंगे। देश में 2019 में 2 लाख टन गेहूं का निर्यात हुआ था जो 2020 में 21 लाख टन और 2021 में 70 टन पहुंच गया और इस साल सौ लाख टन यानी एक करोड़ टन गेहूं के निर्यात का लक्ष्य रखते हुए कार्ययोजना को अमली जामा पहनाया जा रहा है। भारत द्वारा गेहूं निर्यात के लिए नए देशों से संपर्क साधा जा रहा है। खासतौर से 9 देशों से संपर्क बनाया जा रहा है। इनमें मोरक्को, ट्यूनीशिया, इंडोनेशिया, फिलीपींस, थाईलैण्ड, टर्की, अल्जीरिया और लेबनान प्रमुख है। मिस्र से तो निर्यात पर सहमति भी हो गई है और करीब 30 लाख टन गेहूं निर्यात का लक्ष्य रखा गया है। इससे पहले गेहूं का सर्वाधिक निर्यात बांग्लादेश को किया जा रहा है। बांग्लादेश के अलावा संयुक्त अरब अमीरात, मलेशिया, श्रीलंका, कतर और ओमान को गेहूं का निर्यात पहले से किया जा रहा है।

    खाद्यान्न में आत्मनिर्भरता और निर्यात का सारा श्रेय अन्नदाता को जाता है तो कृषि विज्ञानियों और केन्द्र व राज्य सरकारों की नीतियों को भी कम नहीं आंका जा सकता। देश के 135 करोड़ से भी अधिक देशवासियों की जरूरत को पूरा कर विदेशों में निर्यात की स्थिति में लाना बड़ी उपलब्धि से कम नहीं है। केवल चार साल में ही दो लाख टन से 100 लाख टन का आंकड़ा छूना किसी अजूबे से कम नहीं है। इससे निश्चित रूप से भारतीय कृषि को वैश्विक पहचान मिलने के साथ विदेशी आय के नए रास्ते खुुले हैं। आज यह कहने की स्थिति में आना कि भारत पूरी दुनिया को अन्न देने को तैयार है, यह देश के लिए गर्व की बात है।

    (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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