इंदौर। शहर की चर्चित राजगृही कालोनी में कुछ सदस्यों को आवंटित भूखंडों की रजिस्ट्री कई बार करने के मामले में पुलिस ने संस्था के दो तत्कालीन अध्यक्षों के खिलाफ धोखाधड़ी का प्रकरण दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार किया, जिन्हें कोर्ट हाईकोर्ट ने जमानत पर रिहा कर दिया। उच्च न्यायालय ने एफआईआर में हुई देरी को जमानत का आधार माना।
जानकारी के अनुसार इंदौर में वर्ष 1980 में विकसित की जा रही जागृति गृह निर्माण सहकारी संस्था मर्या. के तत्कालीन अध्यक्षों के विरूद्ध एक शिकायत के मामले में हुए विलंब को देखते हुए माननीय उच्च न्यायालय खंडपीठ इंदौर द्वारा हाल ही में पारित अपने आदेश द्वारा रविंद्र बम एवं जयेंद्र बम को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया गया। बम बंधुओं द्वारा अधिवक्ता प्रतीक माहेश्वरी के माध्यम से उच्च न्यायालय में जमानत के लिए याचिका दायर की थी।
मामले के अनुसार रहवासी संघ द्वारा जुलाई 2017 में एक शिकायत आवेदन सीधे पुलिस महानिरीक्षक महोदय के समक्ष प्रस्तुत किया, जिसमें रहवासी संघ की ओर से यह शिकायत की गई कि ग्राम पिपल्याहाना स्थित राजगृही कालोनी में जागृति निर्माण सहकारी संस्था मर्या. के तत्कालिन अध्यक्षों के द्वारा धोखाधड़ी की गई एवं इस बाबद उनके विरूद्ध कार्रवाई करने हेतु अभ्यावेदन दिया गया।
इस अभ्यावेदन में बताया गया कि जागृति गृह निर्माण संस्था मर्या.द्वारा पिपल्याहाना में राजगृही नगर नामक कालोनी वर्ष 1990 में विकसित करना प्रारंभ की गई। संस्था के तात्कालीन अध्यक्ष शांति बम एवं गोविंद माहेश्वरी, जिनकी मृत्यु हो चुकी है एवं उनके पुत्र रविंद्र बम एवं जयेंद्र बम भी उक्त संस्था के अध्यक्ष रहे हैं। इन चारों के द्वारा कालोनी में संस्था के सदस्यों को आवंटित कुछ भूखंड दो, तीन लोगों को अलग-अलग बेच दिए गए।
पुलिस महानिरीक्षक के निर्देश पर मामले में तिलक नगर पुलिस ने जांच उपरांत 5 फरवरी 2019 को रविंद्र बम निवासी जवाहर मार्ग इंदौर और जयेंद्र बम निवासी साउथ तुकोगंज इंदौर सहित स्व. शांतिलाल बम और स्व. गोविंद माहेश्वरी के खिलाफ धोखाधड़ी की धारा 420 सहित अन्य धाराओं में प्रकरण दर्ज किया एवं उसके पश्चात रविंद्र एवं जयेंद्र को मार्च 2021 में गिरफ्तार किया गया। उनके द्वारा माननीय सत्र न्यायालय में जमानत दायर करने पर कोई राहत नहीं मिली, जिससे व्यथित होकर अपने अधिवक्ता प्रतीक माहेश्वरी के माध्यम से माननीय उच्च न्यायालय में जमानत याचिका दायर की गई।
उनके द्वारा माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष मुख्य रूप से यह तर्क किया गया कि शिकायतकर्ता को शिकायत करने का कोई अधिकार प्राप्त नहीं है, समस्त रजिस्ट्रियां जिनका आरोप लगाया जा रहा है वह लगभग 25-30 साल पुरानी घटनाओं पर आधारित है, क्योंकि रविंद्र एवं जयेंद्र वर्ष 1987 एवं 1997 से 2001 क्रमश: अध्यक्ष रहे हैं एवं सोसायटी में ही संपूर्ण पैसा जमा कराया गया है। उन्हें कोई अवैध लाभ नहीं हुआ है। केवल रजिस्ट्री कराया जाना कूटरचना नहीं होती। पुलिस द्वारा न केवल आवदेकगण अपितु दो मृत व्यक्तियों के विरुद्ध भी प्रकरण दर्ज कर लिया गया है, जो कि विधि विरूद्ध है।
शिकायत में अत्यधिक विलंब होने एवं समस्त सिविल कार्रवाई के रास्ते परिसीमा विधि में समाप्त हो जाने पर आपराधिक मामला परेशान करने की नियत से बनाया गया है एवं शिकायत पूर्ण रूप से अस्पष्ट होकर बिना किसी विधिक जांच के की गई है। वर्तमान में कोविड महामारी के चलते हुए आवेदक जो कि 50 वर्ष के उपर के व्यक्ति हैं, उन्हें जेल में रखा जाना उचित नहीं होगा। इसलिए सवोच्च न्यायालय के निर्देश अनुसार जमानत का लाभ दिया जाना उचित होगा।
माननीय उच्च न्यायालय द्वारा प्रकरण के तथ्यों एवं परिस्थिति को दृष्टिगत रखते हुए एवं प्रकरण में रजिस्ट्रियों का अवलोकन करते हुए यह पाया कि पुलिस जांच में ऐसा कोई तथ्य सामने नहीं आया है कि एक व्यक्ति द्वारा बार-बार रजिस्ट्री की गई है एवं पूर्व में अध्यक्ष रहते हुए की गई रजिस्ट्रीयों एवं तत्पश्चात दूसरे अध्यक्षों द्वारा पुन: रजिस्ट्री कराए जाने से एवं विवाद 20 से 30 वर्ष पुराना होने से आवेदकगण जो कि पूर्व में अध्यक्ष थे, उन्हें जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। वह भी इतने विलंब के बाद। वैसे भी मामला सिविल प्रकृति प्रतीत होता है।
प्रकरण के तथ्यों और परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए माननीय उच्च न्यायालय द्वारा जमानत याचिका स्वीकार करते हुए रविंद्र एवं जयेंद्र बम को जमानत का लाभ दिया गया एवं कोविड प्रोटाकाल का सख्ती से पालन किए जाने हेतु निर्देशित किया गया। आरोपीगण की ओर से पैरवी अधिवक्ता प्रतीक माहेश्वरी ने की।
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