लखनऊ: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सोमवार को मिर्जापुर पहुंचे और उन्होंने एक बार फिर बंटोगे तो कटोगे वाला बयान दिया. यह एक महीने में दूसरी बार था जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यह बात कही. हालांकि उन्होंने बांग्लादेश में अल्पसंख्यक मुस्लिमों पर हो रहे अत्याचार को लेकर यह सियासी बयानबाजी की, लेकिन इस पर विपक्ष की तीखी प्रतिक्रिया आई. आखिर ऐसी क्या वजह है कि मुख्यमंत्री ऐसी भाषा बोल रहे हैं.
दरअसल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इस बयान कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं. जहां एक और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं. वहीं कांग्रेस की तरफ से कहा गया कि एक मुख्यमंत्री की तरफ से ऐसी बातें ठीक नहीं हैं. लेकिन मुख्यमंत्री का यह बयान यूं ही नहीं आया है. लोकसभा चुनाव में हार और आगामी 10 सीटों पर होने वाले चुनाव को देखकर ही यह बयान दिए जा रहे हैं. भले ही निशाना बांग्लादेश हो लेकिन फ़िक्र उत्तर प्रदेश की है.’
कहा जा रहा है कि लोकसभा चुनाव में विपक्ष की रणनीति जातियों में बंटे हिंदू वोट बैंक को तोड़ने की रही. इसके लिए जातीय जनगणना और आरक्षण के साथ संविधान बचाने का नरेटिव सेट किया गया. जिसका असर यह हुआ कि समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में 37 सीट जीतकर तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई. अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इसी नरेटिव को काउंटर करने और जातियों में बंटे हिंदू वोट बैंक को एकजुट करने में जुटे हैं. वे खुलकर धर्म के नाम पर फ्रंटफुट पर आकर खले रहे हैं. बांग्लादेश हिंसा के बहाने वे हिंदुओं को एकजुट कर विपक्ष को पटखनी देना चाहते हैं.
80 बनाम 20 की राजनीति कर लगातार चुनाव में सफलता हासिल करने वाली बीजेपी 2024 के लोकसभा चुनाव में जाति की राजनीति में पटखनी खा गई. अखिलेश यादव का पीडीए वाला दांव हो या फिर आरक्षण खतरे में हैं इसका नरेटिव, खीमियाजा बीजेपी को ही भुगतना पड़ा. यही वजह है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जाति में बंटे हिंदू वोट बैंक को धर्म के नाम पर एकजुट करना चाहते हैं. अब देखना दिलचस्प होगा कि लोकसभा चुनाव में जो वोटर जातियों में बंटकर बीजेपी से छिटक गया था, वो अब उपचुनाव में धर्म के नाम पर एकजुट होकर बीजेपी को बढ़त दिलवाएगा या नहीं.
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