अंकारा/बगदाद: भारत (India) के मिडिल ईस्ट इंडिया यूरोप (Middle East India Europe) कॉरिडोर (corridor ) में शामिल नहीं किए जाने से भड़के तुर्की (Turkey) के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगान (Erdogan) को एक बड़ी सफलता हाथ लगी है। सोमवार को इराक, तुर्की, कतर और यूएई ने बगदाद में एक नए रोड कॉरिडोर को बनाने पर एक प्रारंभिक समझौते पर हस्ताक्षर किया है। इस नए रोड प्रॉजेक्ट को बनाने पर 17 अरब डॉलर का भारी भरकम खर्च आएगा। इस समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए तुर्की के राष्ट्रपति 13 साल बाद इराक के दौरे पर पहुंचे थे। माना जा रहा है कि यह नया कॉरिडोर स्वेज नहर और भारत के बनाए जा रहे मिडिल ईस्ट कॉरिडोर को चुनौती देगा। इससे पहले भारतीय कॉरिडोर में शामिल नहीं किए जाने से भड़के खलीफा एर्दोगान ने धमकी दी थी कि तुर्की के बिना कोई भी कॉरिडोर सफल नहीं होगा। वहीं इस प्रॉजेक्ट में कुवैत को शामिल नहीं किए जाने से वह भड़क उठा है।
इस समझौते पर हस्ताक्षर के बाद अब तुर्की का सपना सच होता दिख रहा है। दो सप्ताह पहले ही इराक ने कुवैत के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किया था ताकि एक टेलिकॉम रूट को तैयार किया जा सके जो यूरोप से जोड़ेगा। इससे खाड़ी के देशों और यूरोप के बीच कनेक्शन सीधा जुड़ जाएगा। वहीं जमीनी कॉरिडोर से इस इलाके को आर्थिक गति मिलेगा जिसकी उनको जरूरत है। एक साल पहले ऐलान किया गया था कि क्रॉस बॉर्डर ट्रांसपोर्ट नेटवर्क बनेगा जो खाड़ी के देशों को तुर्की से रोड और रेल से जोड़ेगा। इस योजना के तहत इराक के बसरा प्रांत से तुर्की की सीमा के उत्तर तक 1200 किमी लंबा दोतरफा रेल ट्रैक और नया मोटरवे बनाया जाना है।
भारत बनाम तुर्की, जानें दोनों के प्रॉजेक्ट में क्या है खास?
इसका नाम द डेवलपमेंट रोड दिया गया है जिसे चीन के अरबों डॉलर के बीआरआई प्रॉजेक्ट से बड़ी चुनौती मिलेगी। बीआरआई प्रॉजेक्ट चीन को दुनिया के 150 देशों से कनेक्ट करता है। वहीं भारत मिडिल ईस्ट कॉरिडोर पर जी20 सम्मेलन के दौरान पिछले साल नई दिल्ली में हस्ताक्षर किया गया था। इस Imec प्रॉजेक्ट को अमेरिका का पूरा समर्थन मिल रहा है जो भारत को सीधे यूरोप से जोड़ेगा ताकि व्यापार को बढ़ावा दिया जा सके और ट्रांसपोर्ट में आने वाले खर्च को कम किया जा सके। तुर्की और भारतीय दोनों ही कॉरिडोर प्रॉजेक्ट में यूएई शामिल है। भारतीय कॉरिडो यूएई, सऊदी अरब, जॉर्डन, इजरायल के रास्ते यूरोप को जोड़ेगा।
पिछले साल मई महीने में इराक ने खाड़ी देशों के ट्रांसपोर्ट मिनिस्टरों को बुलाया था। इस सम्मेलन के दौरान केवल कतर, यूएई और सऊदी अरब ने इस प्रॉजेक्ट में रुचि दिखाई थी। इसके बाद तुर्की ने यूएई और कतर को इस प्रॉजेक्ट में शामिल कराया। ऐसी उम्मीद थी कि सऊदी अरब भी इसमें शामिल होगा लेकिन उसने झटका दे दिया। माना जा रहा है कि सऊदी अरब अभी भारतीय कॉरिडोर पर ही अपना फोकस करना चाहता है। इराक को पूरा भरोसा है कि क्षेत्रीय ताकतों तुर्की, यूएई और कतर के शामिल होने से यह प्रॉजेक्ट तेजी से आगे बढ़ेगा। प्लान के मुताबिक हाईस्पीड ट्रेन चलेंगी जो सामान और यात्रियों को 300 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से एक जगह से दूसरे जगह तक पहुंचाएंगी।
तुर्की के ड्रीम प्रॉजेक्ट पर पीकेके का खतरा
इराकी कॉरिडोर के रास्ते में तेल और गैस पाइपलाइन बनाने का भी प्लान है। ऐसा अनुमान है कि इस डेवलपमेंट रोड प्रॉजेक्ट से हर साल 4 अरब डॉलर का राजस्व प्राप्त होगा वहीं 1 लाख लोगों को नौकरी मिलेगी। इराक का दावा है कि भारतीय कॉरिडोर के मुकाबले इसमें कम लोडिंग और अनलोडिंग प्वाइंट होंगे जिससे खर्च कम लगेगा और समय भी बचेगा। इस प्लान में सबसे खास बात यह है कि इसमें इजरायल को बाहर कर दिया गया है जिसको लेकर पूरे खाड़ी इलाके में माहौल गरम है। वहीं भारतीय योजना में इजरायल की अहम भूमिका होगी। इजरायल की इसमें तुर्की को शामिल किया गया है जो यूरोप को जोड़ेगा।
हालांकि तुर्की और इराक की इस महायोजना की राह आसान नहीं है। इस इलाके में कई ऐसे आतंकी और विद्रोही गुट हैं जो अक्सर हिंसा को अंजाम देते रहते हैं। सबसे बड़ा खतरा तुर्की को है जो कुर्द संगठन पीकेके के हमलों से जूझ रहा है। इस बीच कॉरिडोर प्रॉजेक्ट में शामिल नहीं किए जाने से कुवैत भड़क उठा है। इस प्रॉजेक्ट को कुवैत के मुबारक पोर्ट के पास इराक के फॉ पोर्ट से शुरू किया जाना है लेकिन कुवैत को शामिल नहीं किया गया। इससे कुवैत में लोग बहुत नाराज हो गए हैं। कुवैती की संसद के एक तिहाई सांसदों ने इसे सरकार की असफलता करार दिया है। उन्होंने गंभीर कदम उठाने के लिए कहा है।
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