नई दिल्ली । तुलसी विवाह (Tulsi Vivah) और प्रबोधिनी एकादशी का युगों पुराना नाता चला आ रहा है। विष्णु पुराण, पद्मपुराण सहित अनेक धार्मिक ग्रंथों में तुलसी विवाह का जिक्र मिलता है। हर साल जिस दिन भगवान विष्णु (Lord Vishnu) जिस दिन चार माह के शयन के बाद योग निद्रा से जगते हैं उस दिन शाम में तुलसी के संग भगवान विष्णु के शालिग्राम (shaligram) स्वरूप का विवाह करवाया जाता है।
इस साल प्रबोधिनी एकादशी 14 और 15 नवंबर दोनों दिन लग रही है। ऐसे में जहां एकादशी तिथि को लेकर उलझन है वहीं तुलसी विवाह की तथि को लेकर भी लोग सोच में हैं कि किस दिन तुलसी विवाह संपन्न किया जाएगा। धर्मसिंधु नामक ग्रंथ के अनुसार जिस दिन एकदशी तिथि के साथ द्वादशी लग रही हो उस दिन प्रबोधिउत्सव, प्रदोष काल में मनाना चाहिए यानी तुलसी विवाह कराना चाहिए।
धर्म सिंधु ग्रंथ में बताए गए नियम के अनुसार इस साल 15 नवंबर को तुलसी विवाह कराना और प्रबोधिनी एकादशी व्रत रखना उचित होगा।
तुलसी विवाह हर साल क्यों?
प्रबोधिनी एकादशी के अवसर पर तुलसी विवाह करवाने की परंपरा युगों से चली आ रही है। इसकी वजह यह है कि जब भगवान विष्णु और शिवजी ने मिलकर जलंधर का वध करके देवताओं को जलंधर के अत्याचार से मुक्त करवाया तो जलंधर की पत्नी सती वृंदा ने भगवान विष्णु को पत्थर का बन जाने का शाप दे दिया। वृंदा ने भगवान को शाप इसलिए दे दिया था क्योंकि जलंधर का वध करने के लिए भगवान विष्णु ने वृंदा के साथ छल किया था। भगवान को ऐसा इसलिए करना पड़ा था क्योंकि वृंदा के सतीत्व के कारण जलंधर अजेय बन गया था।
वृंदा को जब अपने साथ हुए छल और पति के वध के बारे में पता चला तो उससे क्रोध सहन नहीं हुआ और उन्होंने भगवान विष्णु को शाप दे दिया। सृष्टि का संतुलन बनाए रखने के लिए भगवान विष्णु का होना जरूरी था। ऐसे में देवताओं की प्रार्थना पर वृंदा स्वयं को अग्नि के हवाले कर दिया और भगवान को शाप मुक्त कर दिया। लेकिन भगवान ने वृंदा के शाप को कायम रखने के लिए स्वयं को एक अन्य रूप शालिग्राम के रूप में प्रकट कर लिया। जहां वृंदा ने अपने शरीर को अग्नि के हवाले किया वहां से एक तुलसी के पौधा प्रकट हुआ। भगवान विष्णु ने ही वृंदा को वरदान दिया था कि तुम्हारी राख से तुम तुलसी के रूप में प्रकट होगी और देवी लक्ष्मी के समान मुझे प्रिय रहोगी। तुम्हें मैं हमेशा अपने सिर पर धारण करूंगा।
देवी देवताओं ने कार्तिक शुक्ल एकादशी तिथि को प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप का विवाह सती तुलसी के संग करवाया। उस दिन को याद करते हुए हर साल देवी तुलसी का विवाह भगवान शालिग्राम के संग करवाने की परंपरा चली आ रही है। यह एक तरह से विवाह के वर्षगांठ का उत्सव है। कहते हैं जो जो लोग तुलसी संग भगवान का विवाह करवाते हैं उनका वैवाहिक जीवन सुखद होता है। अगले जन्म में भी उन्हें योग्य जीवनसाथी की प्राप्ति होती है।
ऐसे करवाएं तुलसी विवाह
प्रबोधिनी एकादशी के दिन देवी तुलसी के ऊपर लाल चुनरी ओढाएं। भगवान विष्णु को पीले वस्त्र पहनाएं। अगर घर में शालिग्राम है तो उन्हें पीले वस्त्र में लपेटकर तुलसी की जड़ में रखें और एक वस्त्र से दोनों का गठबंधन करवाएं। तुलसी से लेकर पूजा घर तक का रास्ता साफ करके उस पर रंगोली सजाएं। तुलसी संग भगवान विष्णु की पूज करें। भगवान विष्णु की आरती और तुलसी माता की आरती करें। तुलसी की जड़ में घी के दीप जलाएं।
तुलसी विवाह मुहूर्त 2021
15 नवंबर शाम 6 बजे से 7 बजकर 39 मिनट तक प्रदोष काल में तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त रहेगा।
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